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अंचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास
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की प्रतिलिपि की।
वि०सं० १७३०/ई०स० १६७४ में वाचक भावशेखर द्वारा लिखी गयी रत्नपरीक्षासमुच्चय, जिसका ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, की प्रतिलेखन प्रशस्ति में इनके दूसरे शिष्य बुद्धिशेखर और प्रशिष्य वाचक रत्नशेखर का भी नाम मिलता है। वाचक रत्नशेखर द्वारा वि०सं० १७६१/ई०स० १७०५ में रचित रलपरीक्षा नामक एक कृति प्राप्त होती है। १९
बुद्धिशेखर के दूसरे शिष्य राजशेखर हुए। इनके द्वारा रचित या प्रतिलिपि की गयी कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके पट्टधर लक्ष्मीशेखर द्वारा वि०सं० १७५० में लिखी गयी चित्रसंभ्रतिचौपाई की प्रति मिलती है। १९अलक्ष्मीशेखर के शिष्य लावण्यशेखर द्वारा वि०सं० १७६५/ई०स० १७०९ में लिखी गयी शांतिनाथधरित की एक प्रति प्राप्त होती है।२० लावण्यशेखर के शिष्य अमृतशेखर हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके पट्टधर मुनि ज्ञानशेखर ने वि०सं० १८१३/ ई०स० १७५७ में शिवमहिम्नस्तोत्र की प्रतिलिपि की।२१ श्रीपार्श्व के अनुसार ज्ञानशेखर के पट्टधर मुनि जीवा हुए जिन्होंने शांतिनाथचरित की प्रतिलिपि की। २२ उनके इस कथन का आधार क्या है, यह ज्ञात नहीं होता है।
उक्त सभी प्रशस्तियों के परस्पर समायोजन से अचलगच्छ की पालिताना शाखा के मुनिजनों के गुरु-परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है : द्रष्टव्य - तालिका-२
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