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अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास १३५
वाचक वेलराज के दूसरे शिष्य वा० लाभशेखर हुए जिनके द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य कमलशेखर ने वि०सं० १६०० / ई०स० १५४४ में लघुसंग्रहणी की प्रतिलिपि की, जिनकी प्रशस्ति में इन्होंने स्वयं को लाभशेखर का शिष्य और वा० वेलराज का प्रशिष्य बतलाया है ९.
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वाचक : वेलराज I
वाचक लाभशेखर
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वाचक कमलशेखर (वि०सं० १६०० / ई०स० १५४४ में लघुसंग्रहणी के प्रतिलिपिकार)
वाचक कमलशेखर द्वारा रचित नवतत्त्वचौपाई (वि० सं० १५५३); धर्ममूर्तिसूरिफागु; प्रद्युम्नकुमारचौपाई (वि०सं० १५७०) आदि कृतियां भी मिलती हैं । १०
वाचक कमलशेखर के शिष्य वाचक सत्यशेखर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके शिष्यों - - वाचक विनयशेखर और वाचक विवेकशेखर ने अपनी कृतियों की प्रशस्तियों में अपने गुरु- प्रगुरु आदि का सादर उल्लेख किया है । कमलशेखर के दूसरे शिष्य राजू ऋषि हुए, जिन्होंने वि० सं० १६३५ / ई०स० १५७९ में शिशुपालरास की रचना की । ११
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वाचक सत्यशेखर के शिष्य वाचक विनयशेखर ने वि०सं० १६४३ / ई०स० १५८७ यशोभद्रचौपाई तथा रत्नकुमाररास की रचना की । १२ शांतिमृगसुन्दरीचौपाई भी इन्हीं की कृति मानी जाती है। १३ वाचक विनयशेखर के शिष्य रविशेखर हुए । शत्रुञ्जय से प्राप्त वि० सं० १६८३ / ई०स० १६२७ के एक शिलालेख के लेखक के रूप में इनका नाम मिलता है । १४
वा० कमलशेखर
वा० सत्यशेखर
I वा० विनयशेखर
१६०९ / ई०स० १६२६ / ई०स०
रविशेखर
(वि० सं० १६४३ / ई० स० १५८७ में यशोभद्रचौपाई तथा रत्नकुमाररास के रचनाकार)
(शत्रुञ्जय से प्राप्त वि० सं० १६८३ / ई० स० १६२७ के अंचलगच्छ से सम्बद्ध एक शिलालेख के लेखक )
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