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अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास
कल्याणसागरसूरि
विनयलाभ
पद्मलाभ
मेरुलाभ (वि.सं.१७०४/ई.स. १६४८ में चन्द्रलेखासतीरास के कर्ता)
माणिक्यलाभ
सत्यलाभ (वि.सं.१७६४ में स्थूलिभद्रएकबीसा
एवं वि.सं.१७९१ में चन्द्रलेखाचौपाई
के प्रतिलिपिकार)
सहजसुन्दर
नित्यलाभ (वि.सं.१७७२ से १७९८ के मध्य चन्दनबालासज्झायः वासुपूज्यस्तवन, चौबीसी, विद्यासागरसूरिरास आदि
के कर्ता)
गजलाभ की शिष्यपरम्परा का विनयलाभ तथा उनकी शिष्य परम्परा से क्या सम्बन्ध था, साक्ष्यों के अभाव में यह ज्ञात नहीं हो पाता।
अचलगच्छ की लाभशाखा के प्रवर्तक कौन थे? यह शाखा कब और किस कारण अस्तित्त्व में आयी? साक्ष्यों के अभाव में इन सभी प्रश्नों का उत्तर दे पाना कठिन है
और ये सभी प्रश्न आज भी अनुत्तरित ही रह जाते हैं। सन्दर्भ १-२. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, सम्पा०- जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय
संशोधित संस्करण, पृ० ३६१-६३. ३. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३७६. ४. वही, पृ० ३७६. एवं
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संशोधित
संस्करण, पृ० ६६. ५. श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० ३७६. ६. वही, पृ० ४०८. ७. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ४, द्वितीय संशोधित
संस्करण, पृ० ८०-८२.
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