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मेरुलाभ (वि.सं. १७०४ / ई.स. १६४८ में चन्द्रलेखासतीरास के रचनाकार)
अचलगच्छ का इतिहास
कल्याणसागर सूरि 1 विनयलाभ
मेरुलाभ के एक शिष्य माणिक्यलाभ हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य सत्यलाभ द्वारा वि०सं० १७६४ / ई०स० १७०८ में प्रतिलिपि की गयी स्थूलभद्रएकबीसा और वि०सं० १७९१ / ई०स० १७३५ में माण्डवी-कच्छ में लिखी गयी चन्द्रलेखाचौपाई की प्रति प्राप्त हुई है ।
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६. विद्यासागरसूरिरास
७. नेमिनाथबारमास ११
मेरुलाभ के दूसरे शिष्य सहजसुन्दर हुए जिनके द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके शिष्य नित्यलाभ द्वारा वि०सं० १७७२ से वि०सं० १७९८ के मध्य रची गयी कई कृतियां मिलती हैं, १० जो इस प्रकार हैं
१. वासुपूज्यस्तवन
वि.सं. १७७६/ ई.स. १७२०
२. चन्दनबालासज्झाय
वि.सं. १७७२/ ई.स. १७१६
३. चौबीसी
वि.सं. १७८१ / ई.स. १७२५
४. महावीरपंचकल्याणकनुंचौढालिया वि.सं. १७८१ / ई.स. १७२५
५. सदेवंतसावलिंगारास
वि.सं. १७८२/ ई.स. १७२६
वि.सं. १७९८ / ई.स. १७४२
वि.सं. की १८ वीं शती का अन्तिम चरण ।
पद्मलाभ
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उक्त साक्ष्यों के आधार पर विनयलाभ की शिष्य परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है।
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