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________________ १४६ मेरुलाभ (वि.सं. १७०४ / ई.स. १६४८ में चन्द्रलेखासतीरास के रचनाकार) अचलगच्छ का इतिहास कल्याणसागर सूरि 1 विनयलाभ मेरुलाभ के एक शिष्य माणिक्यलाभ हुए जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके शिष्य सत्यलाभ द्वारा वि०सं० १७६४ / ई०स० १७०८ में प्रतिलिपि की गयी स्थूलभद्रएकबीसा और वि०सं० १७९१ / ई०स० १७३५ में माण्डवी-कच्छ में लिखी गयी चन्द्रलेखाचौपाई की प्रति प्राप्त हुई है । ९ ६. विद्यासागरसूरिरास ७. नेमिनाथबारमास ११ मेरुलाभ के दूसरे शिष्य सहजसुन्दर हुए जिनके द्वारा भी रचित कोई कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके शिष्य नित्यलाभ द्वारा वि०सं० १७७२ से वि०सं० १७९८ के मध्य रची गयी कई कृतियां मिलती हैं, १० जो इस प्रकार हैं १. वासुपूज्यस्तवन वि.सं. १७७६/ ई.स. १७२० २. चन्दनबालासज्झाय वि.सं. १७७२/ ई.स. १७१६ ३. चौबीसी वि.सं. १७८१ / ई.स. १७२५ ४. महावीरपंचकल्याणकनुंचौढालिया वि.सं. १७८१ / ई.स. १७२५ ५. सदेवंतसावलिंगारास वि.सं. १७८२/ ई.स. १७२६ वि.सं. १७९८ / ई.स. १७४२ वि.सं. की १८ वीं शती का अन्तिम चरण । पद्मलाभ Jain Education International उक्त साक्ष्यों के आधार पर विनयलाभ की शिष्य परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है। --- For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003612
Book TitleAchalgaccha ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2001
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size8 MB
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