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अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास
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रत्नसागर के एक शिष्य मेघसागर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, यही बात इनके शिष्य ऋद्धिसागर, कनकसागर और मनरूपसागर के बारे में भी कही जा सकती है । १८ ऋषिसागर के शिष्य हीरसागर, पद्मसागर 'द्वितीय' और अमीसागर | १९ हीरसागर अपने गुरु के पट्टधर बने। 1२° ये मन्त्रवादी के रूप में प्रसिद्ध हुए । ' वि०सं० १७८२/ई०सन् १७२६ में इनका निधन हुआ । २२ हीरसागर के शिष्य सहजसागर हुए जिन्होंने वि० सं० १७८१ / ई० सन् १७२५ में शीतलनाथस्तवन २३ और वि० सं० १८०४ / ई० सन् १७४८ में हीरसागरनीजीवनी की रचना की । २४ सहजसागर के शिष्य मानसागर हुए, जिनके द्वारा वि० सं० १८४६ / ई० सन् १७९० में रचित रहस्यशास्त्र नामक कृति प्राप्त होती है । २५ मानसागर के पश्चात् क्रमशः रंगसागर, फतेहसागर, देवसागर और स्वरूपसागर ने इस शाखा का नायकत्व सम्भाला। २६ स्वरूपसागर जी के पास वि० सं० १९४० / ई० सन् १८८४ में गुलाबमल अपरनाम ज्ञानचन्द्र ने यति दीक्षा ग्रहण की और गौतमसागर नाम प्राप्त किया । २७ वि०सं० १९४६ / ई० सन् १८९० में इन्होंने संवेगी दीक्षा ग्रहण की २८ और अंचलगच्छ में व्याप्त शिथिलाचार को दूर कर उसे पुनः शास्त्रोक्त मार्ग पर चलाया।
प्रसिद्ध विद्वान् श्रीपार्श्व ने विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर महोपाध्याय रत्नसागर के कुछ अन्य शिष्यों का भी नामोल्लेख किया है, २९ जो इस प्रकार है :
१. उदयसागर
३. सौभाग्यसागर
५. देवसागर
७.
२.
४.
६.
सहजसागर
९. समयसागर
१०. चन्द्रसागर
उक्त साक्ष्यों के आधार पर महोपाध्याय रत्नसागर की शिष्य-प्रशिष्य परम्परा की एक तालिका संकलित होती है, जो इस प्रकार है
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लब्धिसागर
विबुधसागर
सूरसागर
कमलसागर
८.
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