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अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास
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उक्त साक्ष्यों के आधार पर गजलाभ के शिष्यों की एक तालिका बनायी जा
सकती है :
जयलाभ
(वि.सं. १६४२ में
शाम्ब-प्रद्युम्नरास के प्रतिलिपिकार)
माणिक्यलाभ
(वि.सं. १७१८..?
में शांतिनाथचरित
के प्रतिलिपिकार)
चारित्रलाभ
गजलाभ
ऋषि वरन (इनके पठनार्थ वारव्रतटीपचौपाई की रचना की गयी)
(वि.सं.१५९७/ई.स. १५४१ में वारव्रतटीपचौपाई एवं वि.सं. १६१०/ ई.स. १५५४ में जिना हुण्डी के रचनाकार)
ऋषि शंकर समयलाभ गणि
(वि.सं. १६११ में मुनिपतिचरित्र के प्रतिलिपिकार)
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उपा. हर्षलाभ
(वि.सं. १६१३ के
लाभशाखा में वि०सं० की १८वीं शती के प्रारम्भिक दशक में मेरुलाभ नामक विद्वान् हुए जिन्होंने वि०सं० १७०४ / ई०स० १६४९ में चन्द्रलेखासतीरास की रचना की। इसकी प्रशस्ति' में उन्होंने अपने प्रगुरु, गुरु, गुरुबन्धु आदि का उल्लेख किया है
आसपास
अंचलमतचर्चा के रचनाकार)
विधिपक्ष गच्छ विद्या वयरागर, मानई जन महाराओ; वादी गजघट-सिंह वदीतो, कल्यानसूरीश कहाओ । वाचक जास आज्ञाईं विराजईं, विनयलाभ वरराओ; वदति तास सीस दो बांधव, मेरु पदम मन भाओ । चन्द्रकला नामहं अह चउपर, सगवटि कीओ समुदाओ; पढ गुणई सुई नर-प्रमदा लीला तासु लहाओ । संवत सतर सय ऊपरि सारइं, वेद संख्याब्द विधाओ; मरशिर मास वदि अठसि मांहि, सुरगुरु दिनईं सुहाओ ।
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