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अचलगच्छ-पालिताना शाखा
अंचलगच्छ से समय-समय पर उद्भूत विभिन्न अवान्तर शाखाओं में पालिताना शाखा भी एक है। इस शाखा में मुनि वेलराज, लाभशेखर, कमलशेखर, विवेकशेखर, विनयशेखर, विजयशेखर, मेघराज, भावशेखर, रत्नशेखर, नयनशेखर आदि विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं।
विक्रम संवत् की १६वीं शती के मध्य अथवा उत्तरार्ध में अंचलगच्छ में वाचक वेलराज नामक एक मुनि हुए हैं। इनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में किन्हीं साक्ष्यों से कोई जानकारी ही प्राप्त हो पाती है। वासुपूज्य जिनालय, बीकानेर में संरक्षित चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा पर वि०सं० १६०१ ज्येष्ठ वदि ८ का एक लेख उत्कीर्ण है। इस लेख में वाचक वेलराज के प्रशिष्य और उपाध्याय पुण्यलब्धि के शिष्य भानुलब्धि द्वारा स्वपूजनार्थ उक्त प्रतिमा की (प्रतिष्ठापना) का उल्लेख है। श्री अगरचन्द भंवरलाल नाहटा ने इस लेख की वाचना दी है, २ जो इस प्रकार है :
सं० १६०१ व० ज्येष्ठ सुदि ८ श्री अंचलगच्छे वा० वेलराज ग०शि० उपा० श्रीपुण्यलब्धि शि० श्रीभानुलब्धि उपाध्यायै स्वपूजन श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ:
___ श्रीपार्श्व ने भी उक्त लेख की इसी प्रकार वाचना दी है।३ वाचक भानुलब्धि के उपदेश से वि०सं० १६०५/ई०स० १५४९ में नागपुर (नागौर) में कालकाचार्यकथा की एक प्रति लिखी गयी। वि०सं० १६१९/ई०स० १५६३ में जलालुद्दीन अकबर के राज्यकाल में लिखी गयी ज्ञानपंचमीचौपाई की प्रति में उपाध्याय भानुलब्धि की शिष्या साध्वी चन्द्रलक्ष्मी और उनकी शिष्या करमाई, प्रतापश्री आदि का नामोल्लेख प्राप्त होता है। ५ वि०सं० १६३०/ई०स० १५७४ में उपाध्याय भानुलब्धि के पठनार्थ
औपपातिकसूत्र की प्रतिलिपि की गयी। इसी प्रकार वि०सं० १६३३ भाद्रपद सुदि १५ शुक्रवार/ई०स० १५७७ को उपाध्याय भानलब्धि की शिष्या करमाई के पठनार्थ खेमराज ने ऋषभदेवविवाहलो की प्रतिलिपि की। उपा० भानुलब्धि के शिष्य मेघराज हुए जिनके द्वारा रचित सत्तरभेदीपूजा और ऋषभजन्म नामक कृतियां मिलती हैं।८
इसे तालिका के रूप में निम्नप्रकार से दर्शाया जा सकता है :
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