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अचलगच्छ का इतिहास
सन्दर्भ
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श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ४०१. २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संशोधित
संस्करण, पृ० १८७.
मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनसाहित्यनो संक्षिप्तइतिहास, कण्डिका ८८६. ४. श्रीअमृतलाल मगनलाल शाह, सम्पा०- श्रीप्रशस्तिसंग्रह, भाग २, पृ० २३१,
प्रशस्ति क्रमांक ७६७. इणि परि साधु तणा गुण गावि, सुमति सफल कहावि जी। साधु सुनंद सुं सुहावि, नामि नवनिधि पाविइ जी।।३५५।। अजर अमर हुआ अविणासी, मुगतिपुरि जिणि वासीजी। गुण गाइ जे उलासी, वयणरस प्रकासीजी।।३५६।। संवत सोल पंचागुंआ वरसि, आषाढ़ सुदि हरसिजी। श्री अंचलगछि विराजि, श्री कल्या(ण) सागरसूरि राजि जी।।३५७।। वाचकवंसविभूषण वाइ, श्री देवसागर भवताइजी। तास सीस मनि भावि, उत्तमचंद गुण गाविजी।।३५८।।
ओ चरित जे भणसइ गुणसई, मनवंछित सुख लहिस्यइजी। रिधि वृधि स्युं आणंद करस्यइ, जे गुण हीयडि धरस्यइजी।।३५९।। मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृ० ३१०-११. श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० ४६८. इति श्री ऋषिमंडलप्रकरणं ऋषिवंदनं संपूर्णमिति संवत् १६ आसाढादि ९३ वर्षे आसौ वदि ५ रबौ लिखितं श्री 'अंचलगच्छे' वा० पुन्यचंद्र : तत्पट्टालंकार वा० माणिक्यचंद्रगणि; तच्छिष्यपं० श्री सौभाग्यचन्द्रगणिः तद्विनेयमुनिरयऽणचंद्रगणिना लिपिकृतं(त) मिदं स्तोत्रं मरुस्थल्यां 'राडद्रह' नगरे श्रेयो(5) स्तु। H.R. Kapadia, Descriptive Catalogue of the govt. Collections of Manuscripts deposited at the Bhandarkar Oriental Research Institute,
Volume XIX, Part I, Poona 1957; p. 82. ८. देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, पृ० २६४-६६ ९-१०.श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० ४००-४०१ ११-१८. वही, पृ० ४९८.
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