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अचलगच्छ का इतिहास
प्रभावक और विद्वान् जैनाचार्य और मुनिजन हो चुके हैं। जैन परम्परा में समय-समय पर अस्तित्त्व में आये अनेक गच्छ जहां विलुप्त हो गये, वहीं अंचलगच्छ आज भी न केवल विद्यमान है, बल्कि उत्तरोत्तर उसके प्रभाव में वृद्धि ही होती जा रही है, जिसका श्रेय इस गच्छ के क्रियासम्पन्न मुनिजनों को है। इसी गौरवशाली अचलगच्छ का सम्यक्, प्रामाणिक और सुव्यवस्थित विवरण प्रस्तुत पुस्तक में सन्निहित है ।
अंचलगच्छ इस तरह एक जीवन्तगच्छ है और इससे सम्बद्ध पर्याप्त संख्या में ग्रन्थ और पुस्तक प्रशस्तियां एवं पट्टावलियां-गुर्वावलियां आदि प्राप्त होती हैं। ठीक इसी प्रकार इस गच्छ के मुनिजनों की प्रेरणा से प्रतिष्ठापित अनेक प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लेख प्राप्त होते हैं जो वि०सं० १२६३ से लेकर प्रायः वर्तमान काल तक के हैं।
साम्प्रत लेख में हम सर्वप्रथम पट्टावलियों तत्पश्चात् ग्रन्थप्रशस्तियों एवं पुस्तकप्रशस्तियों और अन्त में अभिलेखीय साक्ष्यों का विवरण प्रस्तुत करेंगे।
अंचलगच्छ से सम्बद्ध बड़ी संख्या में पट्टावलियां मिलती हैं जो वि०सं० की १५वीं शती से लेकर प्रायः वर्तमान काल तक की हैं। इनमें अपने-अपने समय तक की आचार्य परम्परा का इनके रचनाकारों ने उल्लेख किया है। चूंकि इस गच्छ के पट्टधर आचार्यों के क्रम में कभी कोई विवाद नहीं रहा है अतः इन सभी पट्टावलियों में अपने-अपने समय तक का समान विवरण मिलता है। अंचलगच्छ से सम्बद्ध पट्टावलियों
में कुछ तो प्रकाशित हैं और कुछ अप्रकाशित। इस गच्छ के विद्वान् श्रावक सोमचन्द्र धारसी, कच्छ-अंजार वालों ने वि०सं० १९८५ में अंचलगच्छम्होटीपट्टावली प्रकाशित की है जिसमें कुछ पट्टावलियों का गुजराती भाषान्तर दिया गया है, जो इस प्रकार हैं
१- मेरुतुंगसूरि द्वारा रचित पट्टावली (संस्कृत) वि०सं० १४३८ २- धर्ममूर्तिसूरि द्वारा रचित पट्टावली (संस्कृत) वि०सं० १६१७ ३- अमरसागरसूरि द्वारा रचित पट्टावली (संस्कृत) वि०सं० १७४३ ४- ज्ञानसागर द्वारा रचित पट्टावली (संस्कृत) वि०सं० १८२४ ५- धर्मसागर द्वारा रचित पट्टावली (गुजराती) वि०सं० १९८४
इसी प्रकार विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह में मुनि जिनविजय ने अंचलगच्छीय आचार्य भावसागरसूरि द्वारा संस्कृत भाषा में रचित पट्टावली वीरवंशपट्टानुक्रमगुर्वावली प्रकाशित की है। ३ इस पट्टावली में रचनाकार ने सुधर्मास्वामी से लेकर अपने गुरु सिद्धान्तसागरसूरि तक का २३१ श्लोकों में विवरण प्रस्तुत किया है, जो इस गच्छ के इतिहास के अध्ययन के लिये अत्यन्त उपयुक्त है।
श्री मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने स्वलिखित जैनगूर्जरकविओ, भाग २, खण्ड
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