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अचलगच्छ का इतिहास
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सहजरत्न द्वारा रचित बीसविहरमानजिनस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १६१४/ई०स० १५५८) और चौदहगुणस्थानकगर्भितवीरस्तवक नामक कृतियां भी प्राप्त होती हैं। Vidhatri Vora, Ed. Catalogue of Gujarati Manuscripts Muniraja Shree PunyavijayaJis Collection, L.D. Series, No-71, Ahmedabad 1978 A.D. P. 239. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, द्वितीय संशोधित संस्करण, पृ० ३६२-६३.
अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३६३. ६१. जैनगूर्जरकविओ, भाग २, पृ० १८९-९०. ६२-६३. वही ६४. अगरचन्द भँवरलाल नाहटा, “जसकीर्तिकृत सम्मेतशिखरास का सार"
जैनसत्यप्रकाश, वर्ष ७, अंक १०-११, पृष्ठ ५१७, ५४८. आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, भाग ३, हिन्दी विभाग, पृ० ५७-६५. जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, नवीन संस्करण, पृ० ३०१-३०६. ज्ञानमूर्ति द्वारा रचित बाइसपरीषहचौपाई, संग्रहणीबालावबोध, प्रियंकरचौपाई आदि कृतियां भी मिलती हैं। अंचलगच्छे दिन दिन दीपे, श्रीधर्ममूरति सूरिराया। तास तणे पखे महीयल विचरें, भानुलब्धि उवझाया रे। ताससीस मेघराज पयपे चिरनंदो जा चंदा रे। ओ पूजा जे भणसे बाणसे, तस घर होइ अणंदा रे। जैनगूर्जरकविओ, भाग ३, द्वितीय संशोधित संस्करण, संपा० डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई १९८७ ई०, पृ० १६४-६५.
हिन्दीजैनसाहित्यकाइतिहास (मरु-गूर्जर), भाग २, पृ० ३६५-६६. ६७. अंचलगच्छदिग्दर्शन, पृ० ३९१. ६८-६९-७०. भंवरलाल नाहटा, “राजसीरास का सार", आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ,
भाग ३, हिन्दी विभाग, पृ० ४-१०. ७१. लघुपट्टावली, पृ० १२६. ७२. वही, पृ० १३९. ७३. अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २८७-३०८; ७६६-७७८.
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