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अचलगच्छ का इतिहास भणइ गणइ जे स भलई, तेहनी पुहतुवई आस रे। संवत सोल ते जाणज्यो साडत्रीसउ ते सार रे, वैशाख वदि भला पंचमी, रास रच्चउ रविवार रे।
सुधर्मास्वामीरास की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह कृति वि०सं० १६४०/ ई०सन् १५८४ में रची गयी थी।
पुण्यरत्न के शिष्य मुनि गुणरत्न हुए। यद्यपि इनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती है तथापि मुनि कान्तिसागर ने इनके द्वारा रचित तीर्थङ्करोना दोहा नामक कृति का उल्लेख किया है। ५ गुणरत्न के किसी शिष्य ने गुणरत्नसूरिसवैया नामक कृति की रचना की है। इस कृति से इनके बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है। इससे ज्ञात होता है कि इनके पिता का नाम शिवा शाह और माता का नाम कुंवरी था।
गुणरत्नसूरि के शिष्य क्षमारत्न हुए, जिन्होंने वि०सं० १७२१/ई०सन् १६६५ में चित्रभूतसंभूतचौपाई की रचना की।
गजसागरसूरि के शिष्यों में हेमकान्ति भी एक थे। इन्होंने वि०सं० १५८९ अथवा १५९८ में श्रावकविधिचौपाई की रचना की।८
गजसागरसरि के एक शिष्य ललितसागर हए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, ठीक यही बात इनके गुरुभ्राता और पट्टधर माणिक्यसागर के बारे में भी कही जा सकती है। माणिक्यसागर के शिष्य ज्ञानसागर हुए जिनके द्वारा वि०सं० १६९७-१७२७ के मध्य रची गयी १८ रचनायें उपलब्ध होती हैं। ज्ञानसागर ने वि०सं० १६९७/ई०स० १६४१ में ईलाचीकेवलीरास और वि०सं० १७००/ ई०स० १६४४ में चारप्रत्येकबुद्धचौपाई की प्रतिलिपि की।९
ज्ञानसागर द्वारा रचित कृतियों की सूची इस प्रकार है१० - शुकराजरास
वि०सं० १७०१/ई०स० १६४५ धम्मिलरास
वि०सं० १७१५/ई०स० १६५९ ईलाचीकुमारचौपाई वि०सं० १७१९/ई०स० १६६३ शांतिनाथरास वि०सं० १७२०/ई०स० १६६४ नलायन
वि०सं० १७२०/ई०स० १६६४ के आसपास चित्रसंभूतचौपाई वि०सं० १७२१/ई०स० १६६५ धनाअणगारस्वाध्याय
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