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अंचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास
वाचक पुण्यचन्द्र
वाचक कनकचन्द्र
वाचक वीरचन्द्र
स्थानसागर
ज्ञानसागर
धनसागर (वि.सं. १६७८ आश्विन सुदि ९ को सिंहासनद्वात्रिंशिका
के प्रतिलिपिकार)
वि० सं० १८१५ वैशाख सुदि ३ रविवार को लिखी गयी रमलशास्त्र की एक प्रति प्राप्त हुई है। इसकी प्रशस्ति में प्रतिलिपिकार मलूकचन्द्र ने अपनी लम्बी गुरु-परम्परा१° दी है, जो इस प्रकार है :
गुणनिधानसूरि
वाचक पुण्यचन्द्र
माणिक्यचन्द्र
विनयचन्द्र
रविचन्द्र
कल्याणचन्द्र
वीरचन्द्र
मलूकचन्द्र
(वि.सं. १८१५ में अपने शिष्य के पठनार्थ रमलशास्त्र के प्रतिलिपिकर्ता)
हेमचन्द्र (इनके पठनार्थ उक्त ग्रन्थ की प्रतिलिपि की गयी) उक्त छोटी-छोटी प्रशस्तियों के आधार पर इस शाखा के मुनिजनों के गुरु-शिष्य परम्परा की एक तालिका संगठित की जा सकती है, जो इस प्रकार है :
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