Book Title: Achalgaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 143
________________ अचलगच्छ की विभिन्न उपशाखायें और उनका इतिहास ११७ ८. स्थूलिभद्रनवरास ९. रामचन्द्रलेख वि०सं० १७२३/ई०स० १६६७ १०. परदेशीराजारास वि०सं० १७२४/ई०स० १६६८ ११. आषाढभूतिरास वि० सं० १७२४/ई०स० १६६८ १२. नंदिसेणरास वि०सं० १७२५/ई०स० १६६९ १३. श्रीपालरास वि०सं० १७२६/ई०स० १६७० १४. आद्रककुमारचौपाई वि०सं० १७२७/ई०स० १६७१ १५. धन्नाचरित वि०सं० १७२७/ई०स० १६७१ १६. सनत्चक्रीरास वि०सं० १७३०/ई०स० १६७४ १७. अर्बुदस्तवन १८. शाम्बप्रद्युम्नरास माणिक्यसागर के दो अन्य शिष्य मतिसागर और जयसागर हुए, जिन्होंने वि०सं० १६९९/ई०सन् १६४३ में तेजपालरास की प्रतिलिपि की। ११ ज्ञानसागरसूरि के पट्टधर प्रीतिसागर हुए, जिनके द्वारा रचित कोई कृति नहीं मिलती, किन्तु इनके गुरुभ्राता नयसागर ने वि०सं० १७१६/ई०सन् १६६० में स्वपठनार्थ कल्पसूत्र की प्रतिलिपि की। १२ प्रीतिसागर के पट्टधर उनके शिष्य ललितसागर 'द्वितीय' हुए। इनके पश्चात् धनसागर, हर्षसागर, न्यायसागर और गुलाबसागर ने इस शाखा का नायकत्त्व ग्रहण किया। चूंकि ज्ञानसागर के पश्चात् इस शाखा में कोई प्रभावशाली आचार्य नहीं हुआ अतः धीरे-धीरे इसका प्रभाव कम होने लगा और गुलाबसागर के पश्चात् नामशेष हो गया। आज इस शाखा का अस्तित्त्व केवल इतिहास के पृष्ठों तक ही सीमित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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