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अचलगच्छ का इतिहास
आचार्य कलाप्रभसागर
वर्तमान समय में सम्पूर्ण श्वेताम्बर श्रमण संघ के शीर्षस्थ विद्वानों एवं प्रभावक आचार्यों में आचार्य कलाप्रभसागर जी का नाम अत्यन्त आदर के साथ लिया जाता है। आपका जन्म वि०सं० २००९ में नवावास नामक स्थान में हुआ। आपके पिता का नाम श्री रतनजी टोकरजी सावला और आपके बचपन का नाम किशोर कुमार था। वि०सं० २०२६ कार्तिक वदि १३ को भुजपुर में आचार्य गुणसागरसूरि से दीक्षा ग्रहण की और कलाप्रभसागर नाम प्राप्त किया। बचपन से ही ये अध्ययनशील प्रवृत्ति के थे। दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात् आपने व्याकरण, छंद, अलंकार, न्याय आदि के साथ-साथ जैन आगमों का विशद् अध्ययन किया। आप संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, गुजराती, अपभ्रंश आदि भाषाओं में निष्णात हैं। वि०सं० २०३९ में श्री आर्य जयकल्याण केन्द्र मुम्बई द्वारा प्रकाशित श्री आर्य कल्याण गौतमस्मृतिग्रन्थ आपकी गम्भीर विद्वत्ता का सहज ही परिचय देता है। सम्पूर्ण महाग्रन्थ का अकेले आपने सम्पादन किया है। अपने दीक्षा गुरु गुणसागरसूरि की भाँति आपने भी साहित्य सर्जन में विशेष रुचि लेते हए अनेक नूतन ग्रन्थों का प्रणयन किया है। अब तक आपकी निश्रा एवं मार्गदर्शन में आर्य जयकल्याण ट्रस्ट द्वारा १०७ से अधिक ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है और कई ग्रन्थ अभी यंत्रस्थ हैं। इनमें से अनेक ग्रन्थों की रचना और सम्पादन आपने स्वयं किया है। अंचलगच्छ से ही सम्बद्ध अन्य प्रकाशन संस्थाओं से भी आप द्वारा प्रणीत एवं सम्पादित ५० से अधिक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इन सभी की तालिका परिशिष्ट-२ में दी जा रही है। अपने वि०सं० २०४५ से वि०सं० २०५४ के मध्य लगभग १०-११ मुमुक्षुओं को भागवती दीक्षा प्रदान की है। वर्तमान में इस गच्छ में कुल ३० मुनि और २१७ साध्वियाँ हैं जो कच्छ एवं मुम्बई के अलावा गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र व आन्ध्रप्रदेश के विभिन्न स्थानों पर विचरण कर रहे हैं।११७ सन्दर्भ-सूची १-२. सोमचन्द्र धारसी, सम्पा०- अंचलगच्छम्होटीपट्टावली, जामनगर वि० सं०
१९८५, पृ० १४०-१४४. २अ. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, मुम्बई १९६८ई०स०, पृ० ४९. ३. मुनि जिनविजय, सम्पा०- विविधगच्छीयपट्टावलीसंग्रह, सिंघी जैन
ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५३, मुम्बई १९६१ई०स०, पृ० १०५-१२०. मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग २, मुम्बई, १९३१
ई०स०, पृ० ७६५-७७९. ३ब. Johannes Klatt, "The Samachari-Satakam of Samaya Sundara ____and Pattavalis of the Anchala-Gachchha and other gachchhas". For Private & Personal Use Only
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