Book Title: Achalgaccha ka Itihas
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 126
________________ १०० ४. ५. P. Peterson, Ed. A Fifth Report on Operation in the Search of Sanskrit Mss. in the Bombay circle, April 1892-March 1895, Bombay 1896 A.D. No. 44, pp. 65-66. ६-७. रूपेन्द्रकुमार पगारिया, “शतपदीप्रश्नोत्तरपद्धति में प्रतिपादित जैनाचार", जैन विद्या के आयाम, भाग ४, सम्पा०— - प्रो० सागरमल जैन, पार्श्वनाथ विद्याश्रम, वाराणसी, १९९४ ई०स०, पृ० ३१-४२. श्रीपार्श्व, अंचलगच्छदिग्दर्शन, मुम्बई, १९६८ ई०स०, पृ० ११९-२१. वही, पृ० ११२-१४. वही, पृ० ११६, एवं मोहनलाल दलीचन्द देसाई, जैनगूर्जरकविओ, भाग १, द्वितीय संशोधित संस्करण, सम्पा० डॉ० जयन्त कोठारी, मुम्बई, १९८६ई०स०, पृ० ७. C.D. Dalal, Ed. Catalogue of Manuscripts in the Jaina Grantha Bhandars at Pattan, G.O.S. No. LXXVI, Baroda, 1937. A.D. Introduction, p. 56. -- Jinaratnakosha, p. 368-69. पं० अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, सम्पा० कालकाचार्यकथासंग्रह, श्री जैन कला साहित्य संशोधक कार्यालय सिरीज नं० ३, अहमदाबाद, १९४९ ई०, पृ० १२-१३. ८. ९. १०. ११. १२. १३. १४. १५. अचलगच्छ का इतिहास The Indian Antiquary, Vol. XXIII, July 1894 A.D., pp. 169-183. H.D. Velankar, Jinaratnakosha, Government Oriental Series, Class C, No. 4, Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona 1944 A.D., p. 59. १८. P. Peterson, Ibid, Vol. V, p. 127. C.D. Dalal, Ibid, p. 402. --Jinaratnakosha, p. 11. श्रीपार्श्व, पूर्वोक्त, पृ० १९५. मुनि चतुरविजय जी, सम्पा० लींबडी जैन ज्ञानभण्डारनी हस्तलिखित प्रतिओनुं सूचीपत्र, श्रीआगमोदय समिति ग्रन्थमाला, ग्रन्थांक ५८, मुम्बई १९२८ई०स०, क्रमांक ९८३, पृ० ५९. १६-१७. मुनिश्री कलाप्रभसागर, सम्पा० - श्री आर्यकल्याणगौतमस्मृतिग्रन्थ, मुम्बई वि०सं० २०३९, भाग १, विभाग २, पृ० ७९. श्रीपार्श्व, सम्पा०, अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, मुम्बई १९६४ई० स०, लेखांक ४६३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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