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वि.सं. १४९५
वि.सं. १४९८
वि.सं. १४९८
वि॰सं॰ १४९९
वि.सं. १४९९
वि.सं. १५०१
वि.सं. १५०१
वि.सं. १५०१
अचलगच्छ का इतिहास
ज्येष्ठ सुदि १४
पौष सुदि १२
शनिवार
फाल्गुन सुदि ७ शनिवार
वैशाख वदि ५
गुरुवार
कार्तिक सुदि १२ सोमवार
वि०सं० १५०१ फाल्गुन सुदि १२
शुक्रवार... ?
वैशाख वदि ९ शनिवार
फाल्गुन सुदि १२
गुरुवार
फाल्गुन सुदि १२
गुरुवार
बी.जे.ले.सं.
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-
अं.ले.सं.
जै. धा. प्र.ले.सं.
भाग १ एवं
अं.ले.सं.
जै. धा. प्र.ले.सं.
भाग २ एवं
अं.ले.सं.
श्री. प्र.ले.सं.
एवं
अं.ले.सं.
अं.ले.सं.
बी. जै. ले.सं.
प्रा.ले.सं.
लेखांक १९५९
लेखांक ८०२
लेखांक ५६
लेखांक ६९
लेखांक ५८
लेखांक ७१
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लेखांक ५७
लेखांक १६
१९
लेखांक ५९
लेखांक ६०
लेखांक ८५५
जैसा कि पीछे हम देख चुके हैं, पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १५०० में आचार्य जयकीर्तिसूरि का देहान्त हुआ, जबकि अभिलेखीय साक्ष्यों के अनुसार वि०सं० १५०१ फाल्गुन सुदि १२ को उनके उपदेश से जिनप्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई है । इस आधार पर पट्टावलियों के उक्त विवरण को स्वीकार करने में कठिनाई उत्पन्न होती है।
लेखांक १८२
आचार्य जयकीर्तिसूरि के विभिन्न शिष्यों का उल्लेख प्राप्त होता है जिनके बारे में संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
१. महीतिलकसूरि
वि०सं० १४७१ के तीन प्रतिमालेखों में इनका नाम मिलता है । इन लेखों की वाचना निम्नानुसार है
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