________________
अचलगच्छ का इतिहास
९३
बचपन का नाम बेलजी भाई था। बचपन से ही ये रत्नसागरसूरि के साथ-साथ रहे और वि० सं० १९२८ में उनके निधनोपरान्त यति दीक्षा ली और मांडवी में आचार्य एवं गच्छनायक पद प्राप्त किया। इन्होंने यति समुदाय के साथ पावागढ़ तथा अन्य तीर्थों की यात्रा की तत्पश्चात् मुम्बई आये और वहाँ चातुर्मास किया। वि०सं० १९३२ में केशरिया जी तीर्थ की संघ के साथ यात्रा की। विवेकसागरसूरि और इनके आज्ञानुवर्ती यतिजन यात्रा में वाहन का उपयोग करने लगे थे।
अंचलगच्छीय प्रमुख श्रेष्ठियों ने इनके उपदेश से ग्रन्थ भण्डारों की स्थापना की, जिनमें अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों का संग्रह किया गया। इसके अतिरिक्त इसी समय अनेक ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ भी करवायी गयीं।
इस समय के प्रमुख श्रेष्ठियों में वसन जी त्रिकम जी, खेतसी धुल्ला, खेबंशीशाह, हीरजीशाह आदि का नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने विभिन्न स्थानों पर नूतन जिनालयों का निर्माण कराया तथा प्राचीन जिनालयों का जीर्णोद्धार कराया। जैन धर्म विद्या प्रसारक वर्ग द्वारा इस गच्छ का साहित्य बड़े पैमाने पर प्रकाशित कराया गया। वि०सं० १९४८ में इनका मुम्बई में निधन हुआ।११३
वि०सं० १९२८ से १९४८ तक के कुछ अभिलेखीय साक्ष्यों में इनका नाम मिलता है। इनका विवरण निम्नानुसार है। १. १९२८ माघ सुदि १३ गुरुवार केशवजी नायक अं.ले.सं., लेखांक
ट्रॅक, शत्रुञ्जय ९४१ २. १९२८ माघ सुदि १३ गुरुवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९४२
ट्रॅक, शत्रुञ्जय ३. १९२८ माघ सुदि १३ गुरुवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९४३
ट्रॅक, शत्रुञ्जय ४. १९२८ माघ सुदि १३ गुरुवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९४४
ट्रॅक, शत्रुञ्जय ५. १९२९ वैशाख सुदि १४ शनिवार महाजन बाड़ी, वही, लेखांक ९४५
सुथरी-कच्छ ६. १९३४ फाल्गुन सुदि २ गुरुवार जीरावला पार्श्वनाथ वही, लेखांक ९४९
जिनालय, तेरा, कच्छ ७. १९३४ फाल्गुन सुदि २ गुरुवार जीरावाला पार्श्वनाथ वही, लेखांक ९५०
जिनालय, तेरा, कच्छ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org