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अचलगच्छ का इतिहास
८. १९३७ माघ सुदि ५ गुरुवार अजितनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९५१
मांडवी, कच्छ ९. १९३९
मुख्य जिनालय, वही, लेखांक ९५२
भद्रेश्वर, कच्छ १०.१९३९ माघ सुदि १० शुक्रवार मुख्य जिनालय, वही, लेखांक ९५३
भद्रेश्वर, कच्छ ११.१९४७ वैशाख सुदि ६ गुरुवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९५५
ट्रॅक, शत्रुञ्जय १२.१९४८ मार्गशीर्ष सुदि ११शुक्रवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९५६
ट्रॅक, शत्रुञ्जय १३.१९४८ मार्गशीर्ष सुदि ११शुक्रवार केशवजी नायक वही, लेखांक ९५७
ट्रॅक, शत्रुञ्जय श्रीपूज्य जिनेन्द्रसागरसूरि
श्रीपूज्य विवेकसागरसूरि के निधन के पश्चात् श्रीपूज्य जिनेन्द्रसागरसूरि अंचलगच्छ के नायक बने। वि०सं० १९५१ में ये कच्छ पधारे और वहाँ विभिन्न स्थानों पर चातुर्मास किया। वि०सं० २००४ में संक्षिप्त बीमारी के कारण इनका देहान्त हो गया और इन्हीं के साथ अंचलगच्छ में शिथिलाचार के रूप में व्याप्त श्रीपूज्य और गोरजी की परम्परा भी सदैव के लिये समाप्त हो गयी। ११४ ।।
वि०सं० १९४९ से १९९० तक के कुछ लेखों में श्रीपूज्य जिनेन्द्रसागरसूरि का नाम मिलता है। इनका विवरण इस प्रकार है - १. १९४९ माघ सुदि ५ सोमवार केशवजी नायक अं.ले.सं., लेखांक
ट्रॅक, शत्रुञ्जय ९६०. २. १९४९ माघ सुदि १० शुक्रवार पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९६१
भूलेश्वर, मुम्बई ३. १९४९ श्रावण सुदि ७ बुधवार पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९६३
जखौ, कच्छ ४. १९४९ आश्विन पूर्णिमा घृतकल्लोल पार्श्वनाथ वही, लेखांक ९६४
जिनालय, सुथरी, कच्छ ५. १९५० पौष वदि ५ भृगुवार । पार्श्वनाथ जिनालय, वही, लेखांक ९६६ (शुक्रवार)
रापर,गढवारी-कच्छ
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