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अचलगच्छ का इतिहास
६९ सिद्धान्तसागरसूरि के दूसरे शिष्य सुमतिसागर से अंचलगच्छ की गोरक्ष शाखा अस्तित्व में आयी। इस शाखा में भी कई विद्वान् मुनि हो चुके हैं जिनके बारे में यथास्थान प्रकाश डाला गया है।
भावसागरसूरि के पट्टधर गुणनिधानसूरि हुए। इनके द्वारा रचित न तो कोई साहित्य प्राप्त होता है और न ही किन्हीं अन्य साक्ष्यों में इनके किसी कृति का उल्लेख ही मिलता है। इनके उपदेश से श्रावकों द्वारा प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी अंचलगच्छीय पूर्वाचार्यों की तुलना में कम हैं। ये प्रतिमायें वि०सं० १५७९ से वि०सं० १६०० तक की हैं। इनका विवरण इस प्रकार है -
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