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अचलगच्छ का इतिहास
सम्वत् १४७१ वर्षे आषाढ़ सुदि २ शनौ श्रीमाली श्रे० सूरा चांपाभ्यां भगिनी काउं भगिनीपुत्री वइराकयोः श्रेयोर्थं तयोरेव द्रव्येन।। श्री अंचलगच्छे ।। श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन श्रीधर्मनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च।
धर्मनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, मुनिसुव्रत जिनालय, सैलाना - अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक ४०५।।
सं० १४७१ वर्षे माघ सुदि १० शनौ प्राग्वाटवंशे विसा २० व्य० दोणशाखा उ० सोला पु०ठ० षीमा पु०ठ० उदयसिंह पु०ठ० लडा भा० हकू पु०सा० झांबटेन श्रीअंचलगच्छे श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन पित्रोः श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामिमुख्यश्चतुविंशतिपट्टः कारित: प्रतिष्ठितश्च।
मुनिसुव्रत की धातु की चौबीसी प्रतिमा पर उत्कीर्ण लेख, मनमोहन पार्श्वनाथ जिनालय, बड़ोदरा -अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २५.
सं० १४७१ वर्षे माघ सुदि १० शनौ श्रीमाली सा० आसघर (आसधर) भा० तिलू पुत्रेण सा० हांसाकेन पितुः श्रेयसे श्रीअंचलगच्छे श्रीमहीतिलकसूरीणामुपदेशेन श्रीअजितनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च।।
अजितनाथ की धातुप्रतिमा का लेख, चिन्तामणिपार्श्वनाथ जिनालय, खम्भात - अंचलगच्छीयलेखसंग्रह, लेखांक २६. २. मेरुनन्दनसूरि : इन्होंने बीसविहरमानस्तवन की रचना की।३० ३. पं० महीनन्दनगणि : वि०सं० १४६३/ई०स० १४०७ में इनके पठनार्थ
कालकाचार्यकथा३१ की प्रतिलिपि की गयी। लावण्यकीर्ति : इनसे अंचलगच्छ की कीर्तिशाखा अस्तित्त्व में आयी।३२ पं० क्षमारत्न रत्नसिंहसूरि : पायधुनी- मुम्बई स्थित गौडीजी जिनालय में रखी शीतलनाथ की प्रतिमा पर उत्कीर्ण वि०सं० १४९६ के लेख में प्रतिमाप्रतिष्ठापक के रूप में इनका नाम मिलता है।३३ यह प्रतिमा आचार्य जयकीर्तिसूरि के उपदेश से प्रतिष्ठापित की गयी थी। श्रीपार्श्व ने इस लेख की वाचना दी है, जो इस प्रकार है : सम्वत् १४९६ वर्षे फागुण सुदि २ शुक्रे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय मं० कडूया भार्या गउरी पुत्र श्रे० पर्वतेन भा० अमरी युतेन श्रीअंचलगच्छेश श्रीश्री जयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन स्वमातु श्रेयसे श्री शीतलनाथबिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरत्नसिंहसूरिभिः।।
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