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अचलगच्छ का इतिहास
११ जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है आर्यरक्षितसूरि और जयसिंहसूरि द्वारा रचित कोई कृति प्राप्त नहीं होती। जयसिंहसूरि के शिष्य धर्मघोषसूरि द्वारा प्राकृत भाषा में रचित शतपदी (वर्तमान में अनुपलब्ध) का ऊपर उल्लेख किया जा चुका है। ऋषिमण्डलप्रकरण भी इन्हीं की कृति है, जो उपलब्ध है। इनके पट्टधर महेन्द्रसिंहसूरि द्वारा रचित शतपदीसमुद्धार के अतिरिक्त अष्टोत्तरीतीर्थमाला, विचारसप्ततिका, मन:स्थिरीकरणप्रकरण, सारसंग्रह आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं।८
महेन्द्रसिंहसूरि के शिष्य भुवनतुंगसूरि द्वारा रचित ऋषिमण्डलस्तोत्रवृत्ति, चतुःशरणवृत्ति, आतुरप्रत्याख्यानवृत्ति, सीताचरित्र, मल्लिनाथचरित्र, आत्मबोधकुलक, ऋषभदेवचरित, संस्तारकप्रकीर्णक-अवचूरि आदि कई रचनायें मिलती हैं।९
महेन्द्रसिंहसूरि के दूसरे शिष्य और भुवनतुंगसूरि के गुरुभ्राता कविधर्म भी अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान् थे। उनके द्वारा रचित जम्बूस्वामीचरित (रचनाकाल वि० सं० १३६६/ई०स० १३१०), स्थूलिभद्ररास, सुभद्रासतीचतुष्पदिका आदि कई कृतियां प्राप्त होती हैं।१° पट्टावलियों के अनुसार महेन्द्रसिंहसूरि के पट्टधर सिंहप्रभसूरि हुए जिनके द्वारा रचित न तो कोई कृति मिलती है और न ही इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख ही प्राप्त होता है। सिंहप्रभसूरि के पट्टधर अजितसिंहसूरि और अजितसिंहसूरि के पट्टधर देवेन्द्रसूरि के बारे में भी यही बात कही जा सकती है। अजितसिंहसरि के एक अन्य शिष्य माणिक्यसिंहसरि हए जिनके द्वारा वि० सं० १३३८ में संस्कृत भाषा में ५०७ श्लोकों में रचित शकुनसारोद्धार नामक कृति प्राप्त होती हैं।११
देवेन्द्रसरि के पट्टधर धर्मप्रभसरि हए जिनके द्वारा वि०सं० १३८७/ई०स० १३३१ में रचित कालकाचार्यकथा नामक कृति प्राप्त होती है। १२ धर्मप्रभसूरि के एक शिष्य रत्नप्रभ हुए जिन्होंने वि०सं० १३९२/ई०स० १३३६ में अन्तरंगसन्धि की अपभ्रंश भाषा में रचना की।१३ वि०सं० १३९३ में धर्मप्रभसूरि का निधन हआ। इनके पट्टधर सिंहतिलकसूरि हुए जिनके द्वारा रचित कोई भी कृति नहीं मिलती; किन्तु इनके पट्टधर महेन्द्रप्रभसूरि द्वारा रचित जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तोत्र नामक एकमात्र कृति आज प्राप्त होती है,१४ जो लिंबडी के जैन भण्डार में संरक्षित है। १५ इस कृति पर उपाध्याय धर्मनन्दनगणि१६ एवं मंत्री वाडवकृत अवचूरि प्राप्त होती है। १७ वि०सं० १४४४/ई०स० १३८८ में पाटण में इनका देहान्त हुआ। ____ महेन्द्रप्रभसूरि के शिष्य परिवार में अनेक विद्वान् मुनिजन हो चुके हैं जिनमें धर्मतिलक, सोमतिलक, मुनिशेखर, मुनिचन्द्र, अभयतिलक, जयशेखरसूरि, मेरुतुंगसूरि, अभयदेव, रत्नरंग आदि उल्लेखनीय हैं। इन शिष्यों में मुनिशेखर, जयशेखर और मेरुतुंग विशेष प्रसिद्ध हैं।
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