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को बदलना हो तो उपशम के चित्त का निर्माण करो। अभिमान को बदलना हो तो मृदुता के चित्त का निर्माण करो । माया को बदलना हो तो ऋजुता की प्रतिमा का निर्माण करो और लोभ से छुटकारा पाना हो तो संतोष की प्रतिमा को उभारो ।
हम प्रेक्षा ध्यान के प्रारम्भ में कायोत्सर्ग के पश्चात् एक ध्येय का निर्माण करते हैं कि मैं अपने मन को निर्मल बनाना चाहता हूं और मन की मलिनता के कारण होने वाली आदतों को समाप्त करना चाहता हूं। इस ध्येय की प्रतिमा के पश्चात् कायोत्सर्ग, प्रेक्षा- ध्यान में प्रवेश करते हैं तो हमारी सारी ऊर्जा उन आदतों को बदलने में, मन की निर्मलता को विकसित करने में अपने आप सक्रिय हो जाती है और एक दिन ऐसा आता है कि इस प्रयोग से गुजरने वाला व्यक्ति सचमुच एक नया जन्म ले लेता है और एक नया व्यक्ति बन जाता है ।
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स्वभाव - परिवर्तन का दूसरा चरण
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