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३. तनाव
और ध्यान (२)
१. • तनाव का आदि-बिन्दु राग-लोभ या प्रियता की ग्रन्थि । २. • प्रिय का वियोग न हो-यह बिन्दु है जहां से भय और आर्त्तध्यान
का प्रारंभ होता है। ३. • प्रियता से द्वेष, द्वेष से मान और मान से क्रोध का जन्म होता है। ४. • तनाव से बचने के लिए ज्ञाता-द्रष्टाभाव का अभ्यास।। • चेतना का कुआं खोदें और खोजें कहां है चैतन्य और कहां है
आत्मा? ६. . स्व-सम्मोहन या भावना का प्रयोग करें। ७. • कायोत्सर्ग का अभ्यास करें, भावों को बदलें, लेश्या का विशोधन
करें। ८ . क्रोध, भय आदि का दमन न करें। निर्जरा करें, रेचन करें।
हमारे सामने दो जगत् हैं। एक है व्यक्त-जगत् और दूसरा अव्यक्त-जगत्। एक है स्थूल-जगत् और दूसरा है सूक्ष्म जगत्। हम दोनों जगत् की अवस्थाओं में जीते हैं। कभी हम व्यक्त से अव्यक्त की ओर आते हैं और कभी अव्यक्त से व्यक्त की ओर आते हैं। कभी स्थूल अवस्थाओं की अनुभूति करते हैं और कभी सूक्ष्म अवस्थाओं में विहरण करने लग जाते हैं। जब व्यक्ति अव्यक्त से व्यक्त की ओर आता है तब एक नई अवस्था घटित होती है। व्यक्ति सामाजिक बन जाता है। जब व्यक्ति अव्यक्त अवस्था में ही रहता है तब वह व्यक्ति ही रहता है, सामाजिक नहीं बनता। हमारा कर्म शरीर, हमारी मूर्छा और हमारा भाव-यह अव्यक्त जगत् है। वहां दूसरे का कोई सम्पर्क नहीं होता।
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