Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 228
________________ के वैज्ञानिकों ने ही अनुसंधान किया है, खोज की है। यदि हम मानेंगे तो भूल होगी, भ्रान्ति होगी। प्राचीनकाल में साधकों ने इस दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण खोजें की हैं। तंत्र-साधकों ने तथा अध्यात्म के साधकों ने रसायनों को बदलने की बड़ी-बड़ी खोजें की हैं। उन्होंने ऐसी औषधियां खोज निकालीं जिनके सेवन से रसायनों का परिवर्तन घटित हो जाता था। डर लगता है। औषधि का सेवन किया और भय समाप्त। एक आदमी सोते-सोते बड़बड़ाता है। उसे भयंकर स्वप्न आते हैं। सिरहाने एक जड़ी रख ली और स्वप्न समाप्त, बड़बड़ाना समाप्त। एक आदमी काम-वासना से उत्तेजित होता है। एक औषधि का प्रयोग किया और वासना की उत्तेजना समाप्त हो गई। बहुत वर्षों पूर्व मेरे मन में एक प्रश्न उठा-क्या ब्रह्मचर्य की साधना में वनस्पति का सहयोग हो सकता है? अनेक अनभवी वैद्यों से पूछ-ताछ की। प्राचीन ग्रन्थ देखे। उनका पारायण किया। अनेक रहस्य उद्घाटित हुए। यह निश्चय हो गया कि वनस्पति के विभिन्न प्रयोगों से लाभ उठाया जा सकता है। ये खोजें बहुत प्राचीनकाल में हुई थीं। हजारों साधक उनसे लाभान्वित हुए थे। वनस्पति का एक कल्प है जितेन्द्रिय के लिए। अमुक वनस्पति का सेवन करने पर, बिना कुछ साधना किए ही, मनुष्य जितेन्द्रिय बन जाता है। मनोभावों को बदलने के लिए वनस्पति का बहुत बड़ा उपयोग है। 'अचिन्त्यो मणिमन्त्रौषधीनां प्रभावः' । मणि, मन्त्र और औषधियों का प्रभाव अचिन्त्य होता है। उनके प्रभाव की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रभाव की कोई सीमा नहीं है। जितना मन्त्रों का प्रभाव है, उतना ही वनस्पति का प्रभाव है। जितना रत्नों का प्रभाव है उतना ही वनस्पति का प्रभाव है। वनस्पति के द्वारा शारीरिक और मानसिक रसायनों का परिवर्तन किया जा सकता है। वैज्ञानिक आज जो परिवर्तन की खोजें कर रहे हैं, वह कोई नयी बात नहीं है। इतना हो जाने पर भी, वनस्पतियों के द्वारा रसायन परिवर्तन की प्रक्रिया या कृत्रिम रसायनों द्वारा रसायन-परिवर्तन की प्रक्रिया हस्तगत हो जाने पर भी हम अपनी स्वतन्त्रता खोना नहीं चाहेंगे। स्वतन्त्रता को खो देना खतरनाक होता है। हम ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन चाहते हैं। हम अपनी ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी २१८ आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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