Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 227
________________ पुष्पों की गंध से अनन्तगुना गंध, खजूर दाख से अनन्तगुना मीठा रस और नवनीत तथा सिरीष पुष्पों से अनन्तगुना मृदु स्पर्श होता है। रसों के परिवर्तन की दिशा में वैज्ञानिक जगत् में अनेक अनुसंधान चल रहे हैं। वैज्ञानिक एक ऐसे रासायनिक पदार्थ के अन्वेषण में लगे हैं जिसके प्रयोग से व्यक्ति में क्रोध का रसायन समाप्त हो और क्षमा स्वयं घटित होने लगे। फिर क्षमा घटित करने वाले इंजेक्शन, टिकिया प्रयोग में आने लगेगी। आज काम-वासना की बहुत बड़ी समस्या है। किन्तु वैज्ञानिक चिन्तित नहीं हैं। वे इस दिशा में प्रयोग कर रहे हैं। वे ऐसे रसायनों के निर्माण में लगे हुए हैं कि उन रसायनों के सेवन से काम की ग्रन्थियां ही समाप्त हो जाती हैं। सेक्स-ग्रन्थियां प्रभावहीन हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में न आहार को कम करने की आवश्यकता है और न ऊनोदरी करने की जरूरत है। न ध्यान-आसन करने की जरूरत है और न चैतन्य-केन्द्रों को जागृत और सक्रिय करने की आवश्यकता है। उन रासायनिक गोलियों से काम-वासना समाप्त हो जाएगी। इसी प्रकार क्रोध, मान, अहंकार, लोभ और सारी उत्तेजनाओं को कम किया जा सकता है। ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे ये आविष्कार आगे बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे अध्यात्म और ध्यान की आवश्यकता अपने आप कम होती जाएगी। सारा काम वैज्ञानिक के हाथ में आ जाएगा। फिर लोग अध्यात्म-शिविरों में नहीं जाएंगे; वैज्ञानिक की प्रयोगशाला में जाएंगे। बात ठीक है। दिशा गलत नहीं है। इस सचाई को हम अस्वीकार नहीं करेंगे कि यह सारा रसायन-परिवर्तन का प्रयोग है। अध्यात्म साधक उपवास और ध्यान के द्वारा, स्वाध्याय के द्वारा रसायनों का परिवर्तन करता है और वैज्ञानिक या डॉक्टर कृत्रिम रसायनों के द्वारा रसायनों में परिवर्तन करता है। घटना एक ही घटित होगी-रसायनों का परिवर्तन। लेश्या का प्रयोग रसायन के परिवर्तन का प्रयोग है। जब हम लेश्या के परिवर्तन के प्रयोग को समझ लेते हैं तब अपने भीतर के रसायनों को बदलना प्रारंभ कर देते हैं। लेश्या के रसायनों को बदलने का एक माध्यम है-तप। तप में उपवास भी आता है, स्वाध्याय भी आता है और ध्यान भी आता है। दूसरा माध्यम है-पदार्थ। आप यह मत मानें कि इस दिशा में आज लेश्या : एक विधि है रसायन-परिवर्तन की २१७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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