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लेश्या का रूपान्तरण होता है, तपस्या के द्वारा, ध्यान के द्वारा, चैतन्य-केन्द्रों को जागृत करने के द्वारा या चैतन्य केन्द्रों को निर्मल बनाने के द्वारा, तब आन्तरिक शक्तियां जागती हैं और वे रसायनों को बदलती हैं और उन आवरणों को दूर करती हैं जो ज्ञान को आवृत किए हुए हैं। उसकी घनीभूत मूर्छा को तोड़ती हैं जो आनन्द को विकृत बनाए हुए हैं।
हम मंगल-भावना करें, ध्यान का ऐसा उपक्रम करें, जिससे जीवन में सरलता जागे, संतोष जागे और शान्ति जागे। रासायनिक परिवर्तनों के द्वारा बाहर के जीवन में ये सब जागें और भीतर में वे बन्द दरवाजे खलें, सारे आवरण हटें और अन्तर का ज्ञान बाहर आए। अन्तर में जो आनन्द का समद्र हिलोरें ले रहा है उसका जल बाहर आए।
चैतन्य केन्द्रों के जागरण के द्वारा जब ये दोनों काम संभव होंगे उस दिन यह प्रमाणित होगा कि केवल बाहरी रसायनों के परिवर्तन से हम जो चाहते हैं वह उपलब्ध नहीं होगा। बाहरी रसायनों के परिवर्तन के साथ-साथ मूर्छा टूटेगी, आवरण हटेंगे तब वह सब घटित होगा जो हम यथार्थ में चाहते हैं।
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आभामंडल
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