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बनाना चाहते हैं। केवल रसायन-परिवर्तन की बात ही पूरी नहीं है। ऊर्जा का ऊर्ध्वागमन अन्तर्ज्ञान को खोलने का द्वार है। यह बिना पराक्रम के उद्घाटित नहीं होता। इन्जेक्शनों के द्वारा यह तो हो सकता है कि एक इन्जेक्शन लिया या एक गुटिका ली और क्रोध समाप्त हो गया या काम-वासना समाप्त हो गई या अन्य उत्तेजनाएं नष्ट हो गईं। यह संभव है। वैज्ञानिक इस दिशा में सफल भी हुए हैं। किन्तु हम जिस अन्तर्ज्ञान या आन्तरिक आनन्द को उपलब्ध करना चाहते हैं, जीवन में नयी दिशा का उद्घाटन करना चाहते हैं, वह इन कृत्रिम उपायों, इन्जेक्शनों या गुटिकाओं से नहीं होगा। यह नेगेटिव एप्रोच है। यह निषेधात्मक तरीका है। क्रोध नहीं आएगा। काम-वासना नहीं जागेगी। किन्तु जिस स्थिति में जाकर हमें एक विस्फोट करना है, वह नहीं होगा। आन्तरिक ज्ञान और आनन्द का जो द्वार बन्द पड़ा है, वह नहीं खुलेगा। उसे खोलने के लिए पोजिटिव एप्रोच होना चाहिए। हमारा कोई विधायक उपाय होना चाहिए। वह विधायक उपाय है अपने मन को शक्तिशाली बनाने का, भावों के संशोधन का, तपस्या का, ध्यान का और चैतन्य केन्द्रों को निर्मल बनाने का। चैतन्य केन्द्रों को निर्मल बनाने से दो काम होते हैं। एक ओर रसायनों का परिवर्तन होता है और उससे क्रोध समाप्त हो जाता है, व्यसन और बुरी आदतें समाप्त हो जाती हैं, दूसरी ओर हमारी स्वच्छता की रश्मियां, निर्मलता की किरणें आगे बढ़ती हैं और उन दरवाजों को उद्घाटित करती हैं। जिनसे अन्तर्ज्ञान प्रकट होता है। आन्तरिक आनन्द अभिव्यक्त होता है। भगवान महावीर की वाणी में बार-बार यह उद्घोषणा मिलती है___ लेश्या की शुद्धि हुए बिना जातिस्मृति ज्ञान नहीं हो सकता। लेश्या की शुद्धि हुए बिना अवधि ज्ञान नहीं हो सकता। लेश्या की शुद्धि के बिना मनःपर्यवज्ञान नहीं हो सकता और लेश्या की शुद्धि के बिना केवल ज्ञान नहीं हो सकता। जो भी अन्तर्ज्ञान उत्पन्न होता है, वह लेश्या की विशुद्धि में ही होता है। लेश्या की शुद्धि के बिना आनन्द का अनुभव नहीं हो सकता। ध्यान आदि के द्वारा जो हम पराक्रम करते हैं वह इसीलिए करते हैं कि भावों का संशोधन हो, लेश्या की शुद्धि हो। जब
लेश्या : एक विधि है रसायन-परिवर्तन की २१६
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