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नया व गुणा बन
सूंघने की आदत थी। पास में तम्बाकू पूरी हो गई। उस व्यक्ति का शरीर टूटने लगा। उसे शक्तिहीनता का अनुभव होने लगा। वह मार्ग में ही बैठ गया। भिक्षु ने पूछा- 'क्या बात है? निढाल होकर कैसे बैठ गए?' उसने कहा-'भीखणजी! मैं अब आगे एक कदम भी नहीं चल सकता। तम्बाकू पूरी हो गई है। उसका नशा उतर गया है। जब तक तम्बाकू न सूंघ लूं तब तक चल पाना कठिन है।' भिक्षु ने कहा- 'मैं इधर-उधर जाकर किसी राहगीर से तम्बाकू ले आता हूं। चिन्ता मत करो।' वे गए। वहां कौन राहगीर आता! एक सूखा उपला लिया। उसका बारीक चूर्ण किया। एक पुड़िया बांधकर ले आए। आकर बोले-'भई! तुम्हारा भाग्य था कि एक पथिक मिल गया। उसके पास तम्बाकू थी। यह ज्यादा अच्छी तो नहीं है, फिर भी काम आ जाएगी। उसने पुड़िया खोली। तम्बाकू सूंघी। दो क्षण बाद वह बोला-'अब चलो, तम्बाकू का नशा चढ़ गया। अब आराम से घर पहुंच जाएंगे। यह क्या है? केवल उपले का चूर्ण तम्बाकू बन गया। भाव को बदल देने की शब्द में इतनी बड़ी शक्ति है कि जिस व्यक्ति का शब्द दूसरे व्यक्ति के भाव तक पहुंच जाता है, सारी स्थिति बदल जाती है।
एक घटना याद आ रही है। बहू को गुस्सा बहुत आता था। सारे घर वाले हैरान थे। एक बार सास बहू को लेकर एक व्यक्ति के पास गई। वह शरीर की चिकित्सा के साथ-साथ मन और भावों की चिकित्सा करना भी जानता था। बहू ने कहा-'मुझे गुस्सा बहुत आता है। इसकी दवा दो।' उसने एक बोतल देते हुए कहा-'जब गुस्सा आता दिखाई दे तब इस दवा को मुंह में भर लेना और दस-पन्द्रह मिनट बाद निगल लेना। यह रामबाण दवा है। बहुत कीमती है।' उसने इस विश्वास की बात को बहू के भाव-संस्थान तक पहुंचा दिया। वह दवा क्या, केवल पानी था। बहू ने उसका प्रयोग किया। दस दिन में उसका गुस्सा समाप्त हो गया।
गुर्जियाफ रूस का बहुत बड़ा साधक था। एक बार उसके पिता ने कहा-'बेटा, मेरी एक बात मानना, जब गुस्सा आए तो चौबीस घण्टे बाद गुस्सा करना, पहले नहीं।' इस एक बात ने गुर्जियाफ को महान
लेश्या : एक विधि है चिकित्सा की २०५
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