Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 223
________________ किसी दूसरे के प्रति नहीं, स्व के प्रति होता है। औपचारिक विनय दूसरे के प्रति किया जाता है। साध्वी मुझे हाथ जोड़ती है, यह उपचार है और मैं साध्वी को हाथ जोड़ता हूं, यह भी उपचार है। यह अधिक महत्त्व की बात नहीं है। यह मात्र उपचार है। यह झूठा उपचार बहुत निभाया जाता है। कभी आंखें नहीं मिलतीं, पर मिलते हैं तब हाथ जरूर जोड़ लेते हैं। यह लोकोपचार है। यह विनय का बड़ा सूत्र नहीं है। हमने इसको बहुत बड़ा सूत्र मान लिया। हम इसी विनय की सीमा में सारी बातें सोचते हैं और नाना प्रकार की समस्याएं पैदा करते हैं। - विनय अहंकारशन्यता की प्रक्रिया है। यह सारे मदों से अपने आपको खाली करने की प्रक्रिया है। जहां इस प्रक्रिया का आसेवन होता है, वहां रासायनिक परिवर्तन अपने आप घटित होता है। स्वाध्याय रासायनिक परिवर्तन की पृष्ट प्रक्रिया है। ध्यान से भी रासायनिक परिवर्तन होते हैं। रासायनिक परिवर्तन का बहुत बड़ा सूत्र है-ध्यान। जो कषाय के रसायन तीव्र अनुभव लेकर आ रहे हैं, हम ध्यान के द्वारा ऐसे रसायन पैदा करें कि वे तीव्र अनुभव वाले रसायन मंद हो जाएं, उनका सामर्थ्य क्षीण हो जाए। उनकी शक्ति विफल हो जाए, उनका आक्रमण नष्ट हो जाए। वे रसायन नये अनुभव उत्पन्न करें। जब हम चैतन्य-केन्द्रों पर ध्यान करते हैं, चैतन्य केन्द्रों पर जमी हुई चिकनाहट को साफ करते हैं, उसे स्वच्छ दर्पण जैसा बनाते हैं तो अपने आप भीतर से कुछ नये तथ्य प्रकट होते हैं। जब तक हमारे चैतन्य केन्द्र स्वच्छ नहीं होते, धूमिल और आवृत्त रहते हैं तब तक भीतर का प्रकाश बाहर नहीं आ सकता। हम लोग ज्ञान को जानते हैं, सुख को जानते हैं किन्तु हम उसी ज्ञान को जानते हैं जो बाहर से मिलता है। हम उसी ज्ञान को जानते हैं जिसे स्मृति-कोष्ठक ग्रहण करते हैं। हम उसी ज्ञान से परिचित हैं, जिसे हमारा नाड़ी संस्थान उद्घाटित करता है और प्रेरित करता है। हम उस ज्ञान से बिल्कुल परिचित नहीं हैं जिसका उद्गम बाहर से नहीं है। जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क से नहीं है; जिसका सम्बन्ध नाड़ी-संस्थान से नहीं है। उस ज्ञान से हम बिल्कुल परिचित नहीं हैं। हम सुख से परिचित हैं, पर केवल उसी सुख से परिचित हैं लेश्या : एक विधि है रसायन-परिवर्तन की २१३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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