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है, अधिक प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। राग से जन्म लेता है लोभ
और लोभ से जन्म लेती है माया। जब मन में लोभ पैदा होता है तब परिग्रह की भावना जागती है और माया उत्पन्न हो जाती है। माया के बिना संग्रह नहीं हो सकता। बिना छिपाए संग्रह नहीं हो सकता। जो छिपाना नहीं जानता वह संग्रह करना भी नहीं जानता। जो छिपाने की कला में निपुण है, वह विपुल संग्रह कर सकता है। आप रत्न, सोना, चांदी खुले में रख दें तो प्रातः सब गायब हो जाएगा। उनको टिकाए रखने के लिए उन्हें छिपाना आवश्यक है। दुनिया में छिपाने के कितने साधन हैं? जितने अधिक साधन हैं उतनी ही अधिक माया है। संग्रह को बनाए रखने के लिए, लोभ की संपूर्ति के लिए या लोभ के द्वारा प्राप्त उपकरणों की सुरक्षा के लिए माया को जन्म लेना जरूरी होता है। जैसे ही मनुष्य ने संग्रह करना सीखा, वैसे ही वह माया को भी सीखा है।
राग ने जन्म दिया लोभ को और लोभ ने जन्म दिया माया को। माया ने जन्म दिया अहंभाव को, अहंकार को। जब माया का विस्तार हुआ, मनुष्य के पास बहुत कुछ हो गया तो मनुष्य ने कुछ अपनी मान्यताएं बना लीं। मैं बड़ा हूं, मेरे पास बहुत है, मैं स्वामी हूं, मेरे पास इतना है-यह अहंकार जन्म ले लेता है। मेरे पास है, इसके पास नहीं है-इसका तात्पर्य है कि मैं बड़ा हूं, वह छोटा है। इस संग्रह ने बड़प्पन और छुटपन को भी जन्म दिया। बिना छोटों के कोई बड़ा नहीं बन सकता। अभिमान के लिए जरूरी है कि कोई नीचा हो। यदि कोई छोटा न हो, नीचा न हो, समान ही हो तो बेचारा अभिमान क्या करेगा? अभिमान हुआ तो क्या और नहीं हुआ तो क्या! समता में कभी अभिमान नहीं होता। जब ऊंचाई होती है तब गढ़े का पता चलता है। यदि गढ़ा न हो तो ऊंचाई का कोई अर्थ नहीं हो सकता। ऊंचाई हो और गढ़ा हो, तब ऊंचाई और नीचाई का कोई सापेक्ष अर्थ हो सकता है। समतल में ऊंचा-नीचा कुछ नहीं होता। यदि सब लोग समान ही हो जाएं तब फिर अभिमान को पलने का अवसर ही नहीं आता। अभिमान तब होता है जब किसी के पास कुछ हो और किसी के पास कुछ न हो। १४२ आभामंडल
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