Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 210
________________ प्रयोग है। भाव को निर्मल रखने का प्रयोग भी जागरूकता का प्रयोग है। जब भाव शुद्ध नहीं होगा तब विचार शुद्ध नहीं होंगे, तब शरीर शुद्ध नहीं होगा। हम विचारों की इतनी चिन्ता न करें। विचार की चिन्ता मनोवैज्ञानिक बहुत करते हैं। वह उनका विषय है। किन्तु अध्यात्म का साधक सबसे पहले भाव की चिन्ता करता है, लेश्या की चिन्ता करता है। भाव और विचार दो बातें हैं। दोनों भिन्न हैं। भाव का सम्बन्ध है कषाय के स्पन्दनों से और विचार का सम्बन्ध है मस्तिष्क के आवरणों से। हमारे सूक्ष्म-शरीर के अन्दर दो प्रकार के स्पन्दन समान्तर रेखा में चलते हैं। एक है मोह का स्पन्दन और दूसरा है मोह के विलय का स्पन्दन। दोनों स्पन्दन चलते हैं और वे भाव बनते हैं। कषाय जितना क्षीण होगा, मोह का स्पन्दन उतना ही निर्वीर्य बन जाएगा। शक्तिशून्य बन जाएगा, निष्क्रिय बन जाएगा। वह समाप्त नहीं होगा किन्तु उसकी सक्रियता कम हो जाएगी। उसका प्रभाव क्षीण हो जाएगा। जब मोह के विलय का स्पन्दन शक्तिशाली होगा तब भाव मंगलमय और कल्याणकारी होंगे। जब-जब कषाय के स्पन्दन कम होते हैं, तब-तब तेजो-लेश्या, पद्म-लेश्या और शुक्ल-लेश्या के स्पंदन तथा भाव शक्तिशाली बनते जाएंगे। जब-जब मोह के स्पंदन शक्तिशाली होते हैं, नील और कापोत-लेश्या के स्पंदन शक्तिशाली होते हैं तब-तब तेजो-लेश्या और पद्म-लेश्या के स्पंदन क्षीण हो जाते हैं। दो धाराएं हैं। एक ओर तीन काली लेश्याएं हैं। एक ओर तीन प्रकाशमय लेश्याएं हैं। महावीर ने कहा-'तीन लेश्याएं प्रशस्त हैं और तीन लेश्याएं अप्रशस्त हैं। तीन लेश्याए रूखी हैं और तीन लेश्याएं चिकनी हैं। तीन लेश्याएं ठण्डी हैं और तीन लेश्याएं गर्म हैं।' कितना महत्त्वपूर्ण सूत्र है भावों को समझने का। आज के रंग विज्ञान में इसका संभावी सूत्र हमें उपलब्ध हो जाता है। अभी मैंने 'कलर थेरापी' की एक पुस्तक देखी। उसमें कलर के दो डिवीजन किए गए हैं। एक है लाइट कलर और दूसरा है डार्क कलर। फीका रंग और गहरा रंग। एक है गर्म रंग और दूसरा है ठण्डा रंग। वलय है ठोस। रंग की चार छायाएं होती हैं। गर्म रंग और प्रकाशमय छाया, गर्म रंग और अन्धकारमय छाया, प्रकाश ठण्डा और अन्धकार गर्म । हमारी २०० आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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