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करना । यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण उपाय है। चिकने रंगों का ध्यान भावों को निर्मल बनाने में उपयोगी होता है। पीला, लाल और सफेद - ये तीन रंग भाव-शुद्धि के कारण हैं ।
तन्त्रशास्त्र के विषय में लोगों में बहुत भ्रान्तियां हैं । भ्रान्तियां होने का कारण भी है कि तन्त्र के आधार पर भैरवीचक्र जैसी पद्धतियां चल पड़ीं और वाममार्ग प्रचलित हो गया । इन पद्धतियों ने भ्रान्तियां फैलाईं किन्तु मैं मानता हूं कि तन्त्रशास्त्र ने साधना के महत्त्वपूर्ण प्रयोग प्रस्तुत किए। उन्हें हम शुद्ध आध्यात्मिक प्रयोग कह सकते हैं । कहीं कोई दोष नहीं, कहीं कोई त्रुटि नहीं ।
तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है - साधक पूरे शरीर को लाल सूर्य जैसे लाल रंग में देखे, ध्यान करे। छह महीने के इस प्रयोग से वीतरागता सिद्ध हो सकती है।
तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है-साधक अपने शरीर को आकाश में स्थित देखे और शरद ऋतु की संध्या जैसे रंग का ध्यान करे। छह महीने तक ऐसा निरन्तर ध्यान करने पर वीतराग भाव घटित होने लगता है।
तन्त्रशास्त्र का एक प्रयोग है- नासाग्र पर स्वर्ण के रंग का या श्वेत वर्ण का ध्यान करने से दूषित भावना से मुक्ति मिल जाती है। चेतना के विकास के, इन्द्रिय जय के, ज्ञानशक्तियों के और वीतरागता के अनेक प्रयोग तन्त्रशास्त्र ने प्रस्तुत किए। वे सारे महत्त्वपूर्ण प्रयोग लेश्या के सिद्धान्त से संबद्ध हैं। रंगों का महत्त्व कम नहीं है । हमारे समूचे भाव - तन्त्र पर रंगों का प्रभुत्व है। रंगों के द्वारा शारीरिक बीमारियां मिटाई जा सकती हैं, मानसिक दुर्बलताओं को मिटाया जा सकता है और आध्यात्मिक मूर्च्छा को तोड़ा जा सकता है । लेश्या-पद्धति आध्यात्मिक मूर्च्छा को मिटाने की महत्त्वपूर्ण चिकित्सा पद्धति है। दूषित भावों और विकृत विचारों द्वारा जो जहर शरीर में पैदा होता है, जो विष एकत्रित होता है, उसे बाहर निकालने की यह अभूतपूर्व पद्धति है । रंगों के ध्यान से या रंग चिकित्सा से संचित विष बाहर निकलते हैं और भावों तथा विचारों को निर्मल बनाते हैं।
कोई व्यक्ति बुरी भावना करता है। भावना चली जाती है,
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