Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 197
________________ होती है, वैसा होता है हमारा बाहर का व्यक्तित्व। हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाला सबसे शक्तिशाली तन्त्र है-भाव-तन्त्र और लेश्या-तन्त्र। हम लेश्या को बदलें। शक्ति का विकास करें। शक्ति का प्रयोग लेश्या को बदलने में करें। शक्ति विकास और उसके सही प्रयोग के लिए लेश्या को बदलना जरूरी है। लेश्या-तन्त्र को बदले बिना न शक्ति का विकास किया जा सकता है और न शक्ति का सम्यक उपयोग किया जा सकता है। लेश्या-तन्त्र को बदलें। बदलने की प्रक्रिया है। सबसे पहले हम चेतना का उपयोग करें। हम सम्यग् दृष्टि से यह विवेक करें कि अमुक भाव व्यक्तित्व के लिए अहितकर है। जब व्यक्ति के मन में निराशा का भाव जागता है, शक्ति को क्षय करने का भाव जागता है, अकर्मण्यता का भाव जागता है, वह व्यक्ति को नीचे बिठा देता है। व्यक्ति को जीवित ही मृत बना देता है। उस स्थिति में चेतना का पहला काम है कि व्यक्ति यह भाव करे-'मैं निराशावादी नहीं बनूंगा, हतोत्साह नहीं होऊंगा, अपने हाथों और पैरों को निष्क्रिय नहीं बनाऊंगा, अपनी क्षमता का उपयोग करूंगा। आशा र गा, उत्साह रखूगा और अपने लक्ष्य तक पहुंचने का प्रयास करूंगा। अब यह भाव बन जाए तब इस भाव को आकार देने के लिए हम अपनी संकल्प-शक्ति का उपयोग करें। एक ऐसा स्पष्ट मानसिक चित्र बनाएं, जिसमें यह स्पष्ट हो कि क्या बनना है?-'मैं यह बनना चाहता हूं, मैं यह करना चाहता हूं, मैं शक्तियों का विकास करना चाहता हूं। चित्र जितना स्पष्ट होगा, उतना ही जल्दी उसमें रंग आते चले जाएंगे। पहले चित्र बनाएं, फिर एकाग्रता की शक्ति का उपयोग करें। सबसे पहले संकल्प-शक्ति का उपयोग और फिर एकाग्रता की शक्ति का उपयोग करें। मन की पूरी एकाग्रता उस चित्र पर केन्द्रित करें। मन को सब विचारों से खाली कर दें। कोई विचार न करें, विकल्प न करें। पूरी एकाग्रता के साथ उस चित्र को देखें। मन में जो भी विकल्प उठे, उन विकल्पों का उत्तर न दें। केवल द्रष्टा बनकर उनको देखते जाएं। जब एकाग्रता की शक्ति का योग मिलेगा, संकल्प की शक्ति आकार लेना शुरू कर देगी फिर इच्छा-शक्ति का उपयोग करें। हमारा भाव आन्तरिक शब्दों का, आन्तरिक आभामण्डल और शक्ति-जागरण (२) १९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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