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आत्म सूचनाओं का योग पाकर इच्छा-शक्ति के रूप में बदल जाता है। भावना के द्वारा इच्छा-शक्ति के रूप में बदल जाता है। हमने एक भाव लिया, चित्र बनाया, एकाग्रता की ओर फिर भावना का प्रयोग किया-आत्म-सूचन (ऑटो सजेशन) का प्रयोग किया-'मैं यह होना चाहता हूं', 'मैं यह करना चाहता हूं', 'मैं अपनी तैजस्-शक्ति का विकास करना चाहता हूं।' इस आत्म-सूचन से भाव इच्छा-शक्ति में बदलने लगे। वह दृढ़-निश्चय में बदल जाए और पूरा स्पष्ट आकार लेना प्रारम्भ कर दे। __संकल्प-शक्ति का प्रयोग, एकाग्रता की शक्ति का प्रयोग और इच्छा-शक्ति का प्रयोग-जब ये तीनों प्रयोग एक साथ मिलते हैं तब लेश्या का रूपान्तरण हो जाता है। जब लेश्या बदलती है तब आभामंडल भी बदलता है। हमारे अन्तःकरण में सूक्ष्म-शरीर के भीतर छह लेश्या, भाव का मंडल और उसका संबादि अंग है आभामंडल। यह हमारे शरीर के चारों ओर गोलाकार रूप में होता है। जैसी लेश्या, वैसा आभामंडल। जैसा भावमण्डल वैसा आभामण्डल । भाव बदलता है, साथ-साथ आभामण्डल बदल जाता है। जब भाव उदात्त होता है, पवित्र होता है तब आभामण्डल के रंग बदल जाते हैं। रस बदल जाते हैं। स्पर्श बदल जाते हैं। जब भाव खराब होता है तब आभामण्डल का रंग काला हो जाता है। जब भाव अच्छा होता है तब आभामण्डल का रंग पीला हो जाता है, लाल या सफेद हो जाता है। सारे धब्बे समाप्त हो जाते हैं। दोनों साथ-साथ चलते हैं। भावमण्डल हमारी शक्ति को विकसित करता है और आभामण्डल बाहर से आने वाली बाधाओं को रोकता है। बहुत बार ऐसा होता है कि आदमी शान्त बैठा है, अकस्मात् उसके मन में ऐसे विचार आ जाते हैं जिनको वह कभी लाना नहीं चाहता। वह एक विचार को लेकर बैठता है। दूसरे ही क्षण दूसरा विचार आ जाता है। ये विचार क्यों आते हैं? ये विचार कहां से आते हैं? यह खोजना चाहिए। विचार के परमाणु आकाशमण्डल में चक्कर लगाते रहते हैं। अरबों-खरबों व्यक्तियों के विचार आज भी आकाशमण्डल में व्याप्त हैं। जब व्यक्ति इन विचारों की रेन्ज में आता है तब उसके मन में भी यह विचार उत्पन्न हो जाता है और वह विचार उस व्यक्ति का बन जाता है। हम यह न मानें कि हम
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आभामंडल
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