Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 199
________________ जो सोचते हैं वे सब हमारे विचार होते हैं। वे हमारे विचार नहीं होते, वे दूसरों के विचार होते हैं। हम दूसरों के विचारों का भार ढोते हैं। ऐसे-ऐसे विचार हमारे मस्तिष्क में आ घुसते हैं, जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह निर्णय करना हमारे लिए बहुत कठिन होता है कि हमारा अपना विचार कौन-सा है और दूसरों के विचार कौन-से हैं? मैं क्या सोचना चाहता हूं और क्या सोच बैठता हूं। न जाने किन-किन व्यक्तियों के विचार मेरे मन में घुस आते हैं। बहुत बड़ी कठिनाई है। हमारा यह संसार इतना संक्रमणशील है कि कोई भी व्यक्ति अकेला नहीं है, अकेला कोई रह नहीं सकता। व्यक्ति जंगल में चला जाए, किसी का मुंह न देखे, किसी पक्षी को भी न देखे, फिर भी वह अकेला नहीं, क्योंकि सूक्ष्म लोक की यात्रा करने वाले सूक्ष्म पदार्थ इतने चक्कर लगाते हैं कि वह व्यक्ति अकेला नहीं रह पाता। वह उनसे संक्रान्त रह जाता है। विचारों का जबरदस्त संक्रमण होता है। ये विचार खाली जगह में नहीं घुसते। ये घुसते हैं भरी जगह में जब व्यक्ति भरा हुआ होता है तब ये ज्यादा घुसते हैं। पता नहीं उनका क्या स्वभाव है। यदि व्यक्ति अपने मन को खाली कर देता है तो वे विचार उनको आक्रान्त नहीं करते। यदि व्यक्ति के मस्तिष्क में विचारों की भीड़ है तो दूसरे विचार भी आकर इसी भीड़ को बढ़ायेंगे। वे भीड़ को ही पसन्द करते हैं। खालीपन उन्हें पसन्द नहीं है। यह विचारों का द्वन्द्व चलता रहता है। हम इन विचारों के आक्रमण को नहीं रोक सकते, जब तक कि हमारा आभामण्डल शक्तिशाली नहीं बन जाता। जब तेजोलेश्या का आभामण्डल बनता है तब विचारों के लिए दरवाजे बन्द हो जाते हैं। कोई बाहरी विचार भीतर नहीं जा सकता। जब पद्मलेश्या का आभामण्डल बनता है तब बुरे विचार अन्दर प्रवेश नहीं पा सकते। जब शुक्ल-लेश्या का आभामण्डल बनता है तब सारी बातें समाप्त हो जाती हैं। बाहर का संक्रमण बन्द हो जाता है। इस स्थिति में ही व्यक्ति अकेला बनता है। समूह में रहते हुए भी वह अकेला बन जाता है। इस संक्रमण के जगत् में जीने वाला कोई अकेला नहीं बन सकता। वह भले ही अकेला रहे, पर इन सूक्ष्म परमाणुओं के लिए अकेला नहीं रह जाता। वह उनकी आभामण्डल और शक्ति-जागरण (२) १८६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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