Book Title: Abhamandal
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 160
________________ भी नहीं हैं, वैसे भी कुछ लोग इसी भाषा में सोचते हैं। यह सोचना मात्र भूल का सुधार माना जा सकता है। किन्तु उससे अगली भूल ज्यों की त्यों बनी रहती है। जब तक उस भूल का सुधार नहीं होगा; समस्या नहीं सुलझेगी। आज समाजवाद की स्थापना के बाद भी, साम्यवाद के प्रचलित हो जाने के बाद भी, समस्याएं सुलझी नहीं हैं, व्यक्ति सुलझा नहीं है। आज साम्यवादी देश का नागरिक भी बड़ी अनैतिकता करता है। लाखों-करोड़ों का घोटाला करता है। यह इसीलिए होता है कि साम्यवादी धारणा से एक भूल का सुधार अवश्य हुआ है। किन्तु दूसरी भूल का सुधार नहीं हो पाया। जब तक व्यक्ति यह नहीं मान लेगा, जान लेगा कि पदार्थ पदार्थ है, वह किसी का नहीं है; तब तक वे घोटाले बन्द नहीं होंगे। अनैतिकता या अप्रामाणिकता रुकेगी नहीं। हम जो दिशा-परिवर्तन चाहते हैं, वह यह है-पदार्थ पदार्थ रहे, व्यक्ति व्यक्ति रहे। पदार्थ और व्यक्ति के बीच सम्बन्ध स्थापित न हो, परस्पर घनिष्ठता न हो। हमारी सम्यग्-दृष्टि जागे। हमारा द्रष्टाभाव जागे। हम पदार्थ को पदार्थ की ही दृष्टि से देखें, उसकी उपयोगिता को समझें, उसका उपयोग मात्र करें; किन्तु उसके साथ ममत्व न करें, एकता की अनुभूति न करें। __ द्रष्टाभाव का विकास तनाव-विसर्जन का पहला सूत्र है और दूसरा सूत्र है भावना का विकास। भावना का अर्थ है-स्व-सम्मोहन, आत्म-सम्मोहन। जब हम आत्म-सम्मोहन दूसरों के लिए करते हैं, तब दूसरों के साथ-साथ अपनी शक्ति भी क्षीण होती है। हम सब पदार्थ के प्रति सम्मोहित हैं। पदार्थ को देखते ही इतना सम्मोहन जागता है कि आदमी विवेक खो बैठता है। बड़े से बड़ा आदमी भी ऐसी चोरियां कर लेता है कि जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। उस व्यक्ति का कोई दोष नहीं है। वह पदार्थ के प्रति सम्मोहित है। जब पदार्थ सामने आता है तब उसकी चेतना लुप्त हो जाती है, विवेक सो जाता है।। हम स्वयं आत्म-सम्मोहन का प्रयोग करें। हम अपने अस्तित्व के प्रति जागरूक हों। स्व-सम्मोहन की सबसे बड़ी शक्ति है-ज्ञान की शक्ति। हम अपनी ज्ञान की शक्ति का अनुभव करें। हम साधना के प्रारंभ १५० आभामंडल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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