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का संस्थान है। काम हमारी चेतना पर छाई हुई अणुओं की एक संरचना है। उन अणुओं को हम विलीन कर सकते हैं, समाप्त कर सकते हैं, किन्तु उनका रूपान्तरण नहीं कर सकते। यदि हम चाहें तो रूपान्तरण इस अर्थ में कह सकते हैं कि हम काम की ओर प्रवाहित होने वाली ऊर्जा की दिशा को बदल सकते हैं। इसके अतिरिक्त कोई रूपान्तरण नहीं होता। अतः काम या सेक्स का रूपान्तरण नहीं, किन्तु सेक्स के मार्ग में जाने वाली ऊर्जा को रोक देना, उसकी दिशा में परिवर्तन कर देना-यही अपेक्षित है।
___ महावीर ने लेश्या के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। प्रत्येक व्यक्ति के पास एक आभामंडल और एक भावमंडल होता है। भावमंडल हमारी चेतना है और चेतना के साथ-साथ जो एक पौद्गलिक संस्थान है, उसे आभामंडल कहते हैं। चेतना हमारे तैसज् शरीर को सक्रिय बनाती है। जब यह विद्युत्-शरीर सक्रिय होता है तब वह किरणों का विकिरण करता है। ये विकिरण व्यक्ति के शरीर के चारों ओर वलयाकार में घेरा बना लेते हैं। यह आभामंडल है। जैसा भावमंडल होता है, वैसा ही आभामंडल बनता है। भावमंडल विशुद्ध होगा तो आभामंडल भी विशुद्ध होगा। भावमंडल मलिन होगा तो आभामंडल भी मलिन होगा, धब्बों वाला होगा। वह काले रंग का होगा, विकृत होगा; अंधकारमय होगा। सारे चमकीले वर्ण समाप्त हो जायेंगे। हम भावधारा को, परिणामधारा को बदल कर आभामंडल को बदल सकते हैं। ___ अध्यात्म ने वृत्तियों के परिवर्तन का जो सूत्र दिया, वह है-रेचन। उसने कहा-वृत्तियों का दमन मत करो, उनका रेचन कर दो। अपने आपको दंडित मत करो, जबरदस्ती मत करो। अपने आपको हीन-भावना से मत भरो। ये वृत्तियां बीमारियां पैदा करती हैं। आत्म-भर्त्सना और हीन भावना दमा का रोग पैदा करती हैं, और भी अनेक विकृतियां पैदा करती हैं।
इस प्रकार तीन बातें सामने आईं-दमन, भोग और रेचन। रेचन का अर्थ है-निर्जरा। वृत्ति का रेचन करो। क्रोध जागे तो उसे जबरदस्ती मत दबाओ, दबाने पर ऊर्जा धक्का मारती है। जो ऊर्जा क्रोध के साथ
आभामंडल १६१
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