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मुक्त-यौनाचार का प्रयोग करने वाले इसे भारतीय विकास का हेतु मानते हैं। यह उनका चिंतन है। अपना-अपना चिंतन। हमें क्यों आपत्ति हो। किन्तु सिद्धान्ततः और अनुभव के आधार पर इस बात पर विचार करें तो हम दोनों तटों-दमन और मुक्त-यौनाचार-को एक दृष्टि से देखेंगे कि दमन जितना अपराध है अपने व्यक्तित्व के प्रति, उतना ही अपराध है उन्मुक्त या उच्छृखलता अपने व्यक्तित्व के प्रति। हम इन दोनों से बचकर रेचन की बात सीखें, रेचन करना जानें। जब ऊर्जा की ऊर्ध्वयात्रा होगी तब हमारी समस्याएं अपने आप समाहित होंगी और हम इस प्रकार की भ्रान्त दिशाओं में जाने से बच जाएंगे।
आभामंडल
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