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दूसरी है तैजस् की शक्ति, विद्युत् की शक्ति। हमारी आत्मा की शक्ति के स्पन्दन निरन्तर हो रहे हैं। हमारे सूक्ष्म-शरीर के भीतर आत्मिक-शक्ति के प्रकम्पन निरन्तर हो रहे हैं। तैजस् के परमाणु समूचे आकाशमण्डल में व्याप्त हैं। हम उन्हें ग्रहण करते हैं, उनका परिणमन करते हैं, उनका प्रयोग करते हैं। आत्मा की शक्ति और तैजस् की शक्ति-इन दोनों का जब योग होता है तब हमारी क्रियाओं का संचालन होता है। शक्ति के बिना विस्फोट नहीं हो सकता। विस्फोट के लिए शक्ति चाहिए। शक्ति के द्वारा हम विस्फोट कर सकते हैं और भीतर में छिपी चेतना को बाहर लाते हैं। भीतर में छिपे हुए आनन्द के स्रोत को बाहर लाते हैं और उनका उपयोग करते हैं। तैजस की शक्ति कास्मिक पॉवर है। यह समूचे जगत् के कण-कण में व्याप्त है। आकाश का एक भी कण, एक भी प्रदेश ऐसा नहीं है जहां तैजस्, परमाणुओं की वर्गणा न हो। प्रश्न केवल इतना ही है कि हम आत्मिक शक्ति के स्पंदनों को जगा सकें और तैजस्-शक्ति को ग्रहण कर सकें। इस प्रक्रिया को हमें जानना है। प्रक्रिया को जाने बिना हम शक्ति का उपयोग नहीं कर सकते, शक्ति को जागृत नहीं कर सकते। जहां हमारे सूक्ष्म-शरीर के भीतर आत्मिक-शक्ति के स्पंदन हो रहे हैं, वहां अन्तराय का स्पंदन भी हो रहा है। अन्तराय शक्ति को रोकने वाली शक्ति है। शक्ति को रोकने वाला कर्म-संस्थान है-अन्तराय। एक ओर से शक्ति के स्पंदन बाहर आते हैं और पूर्णरूप से बाहर आ जाना चाहते हैं। पूरा विकास पा लेना चाहते हैं। दूसरी ओर अन्तराय कर्म के परमाणुओं के स्पंदन इतने सक्रिय हैं कि उसमें अवरोध पैदा करते हैं। हमारा एक काम होगा कि जो आत्म-शक्ति के स्पंदन प्रकट होना चाहते हैं, उसमें अवरोध डालने वाले कर्म परमाणुओं के स्पंदन को दूर हटाएं, रास्ता साफ करें और आत्म-शक्ति को बाहर आने दें। दूसरा काम यह होगा कि तैजस्-शक्ति को विकसित करें। तैजस्-शक्ति हमें उपलब्ध है। वह सूक्ष्म शरीर है। यह विद्युत् की शरीर है, तेज के परमाणुओं का शरीर है। वह हमें सहज उपलब्ध है। हम उसकी शक्ति को सक्रिय बनाएं। उसको सक्रिय बनाने के लिए बाहर के तैजस् परमाणुओं को स्वीकार करना बहुत जरूरी है। जितने तैजस् १८४ आभामंडल
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