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हम चेतना को सुषुम्ना के माग से ले जाए। प्राण को उसी मार्ग से ऊपर-नीचे ले जाएं। चेतना जितनी आगे रहेगी चंचलता बढ़ेगी, चेतना जितनी सुषुम्ना की ओर जाएगी, चंचलता घटेगी। चेतना को आगे-आगे रखने का अर्थ फूलों को सींचना । चेतना को पीछे ले जाना, सुषुम्ना में ले जाने का अर्थ है जड़ को सींचना । अब हम स्वयं सोचें कि फूलों को सींचने से फूल हरे-भरे रहते हैं या जड़ को सींचने से ।
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तनाव और ध्यान (१)
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