________________
को छोड़कर निष्चेष्टा क्यों ?
आदमी सामान्यतः आलसी होता है। कठिनाई से वह पुरुषार्थी होता है। कभी-कभी उसका पराक्रम जागता है, वह प्रयत्न करता है । संसार में प्रयत्न करने वालों की अपेक्षा अप्रयत्न करने वाले बहुत हैं। श्रम करने वालों की अपेक्षा श्रम न करने वाले अधिक हैं । पुरुषार्थी की अपेक्षा आलसी और अकर्मण्य बहुत हैं । ऐसी स्थिति में हम ध्यान का बहाना बनाकर अकर्मण्यता की दिशा में क्यों जा रहे हैं? क्यों प्रयत्न को छोड़कर अप्रयत्न कर रहे हैं? यह प्रश्न मन में उठता है । यह स्वाभाविक प्रश्न है । हम यदि प्रयत्न और अप्रयत्न को ठीक से समझ लें तो प्रश्न समाहित हो सकता है। यदि समझने में तनिक भी भ्रान्ति हुई तो ध्यान के प्रति भी हम भ्रान्त हो जाएंगे ।
प्रयत्न है जीवन की यात्रा को चलाने के लिए। हमारा पराक्रम या श्रम जीवन की इस नैया को खेने के लिए और श्वास की मर्यादा को निभाने के लिए। अप्रयत्न है जीवन की सचाई को पाने के लिए। कर्म है जीवन-यात्रा को चलाने के लिए और अकर्म है जीवन के सत्य को पाने के लिए ।
प्रवृत्ति है जीवन की यात्रा के लिए और निवृत्ति है जीवन के सत्य को पाने के लिए ।
जो लोग केवल कर्म करते हैं वे जीवन की यात्रा को चला सकते हैं, किन्तु जीवन की सचाई को उपलब्ध नहीं कर सकते । ध्यान करने वाले प्रयत्न को नहीं छोड़ते, किंतु केवल प्रयत्न करने वाले ध्यान को छोड़ देते हैं। ध्यान करने वाले कर्म को नहीं छोड़ते, किन्तु केवल कर्म करने वाले ध्यान को छोड़ देते हैं । जो व्यक्ति जीवन की सचाई को पाने के लिए अपनी यात्रा शुरू करता है, वह जीवन की यात्रा को चलाने के लिए कर्म भी करता है। उसका कर्म अकर्म में से ही निकलता है, उसकी प्रवृत्ति निवृत्ति में से ही निकलती है और उसकी सक्रियता निष्क्रियता में से उत्पन्न होती है। जो कर्म अकर्म में से निकलता है वह बहुत पवित्र और शक्तिशाली होता है । जो प्रवृत्ति निवृत्ति में से जन्म लेती है, जो सक्रियता निष्क्रियता में से निकलती है, वह निर्दोष और स्वच्छ ११६. आभामंडल
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org