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तुम पेड़-पौधे के अहित की सोचती रहती हो?' महिला ने कहा-'हां, मेरा प्रयोग ही ऐसा है कि मुझे पेड़-पौधों को जलाना होता है, काटना होता है। अभी भी मैं यह सोच रही थी कि पौधों को भूनकर उनका वजन लूं।' जब तक वह महिला उस कमरे में रही, सुई घूमती रही
और पौधे यह दिखाते रहे कि वे सब इस महिला से भयभीत हैं। जैसे ही वह कमरे से बाहर गई, मीटर की सुई स्थिर हो गई। पौधे शान्त हो गए। भय निकल गया।
पेड़-पौधे मनुष्य की भावनाओं को बहुत सूक्ष्मता से पकड़ लेते हैं।
रूस के प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वी. एन. पुस्किन ने एक प्रयोग किया। तानिया नाम की एक सुन्दर युवती को सम्मोहित किया और उससे अनेक प्रश्न पूछे। वह लड़की उत्तर देती गई। प्रश्नों की झड़ी लगा दी। लड़की प्रश्नों से बैचेन हो, गलत उत्तर देने लगी। जैसे ही उसने गलत उत्तर दिया, पोलिग्राफ की सुई ने उसका तत्काल खंडन कर डाला। ग्राफ पर ऐसा अंकन हुआ कि उससे सहज पता लग गया कि लड़की झूठ बोल रही है। पस्किन ने निष्कर्ष निकाला कि मनुष्य के नाड़ी-संस्थान के साथ पौधों का कोई गहरा सम्बन्ध है।
ऐसे प्रयोग अनेक स्थानों पर हो रहे हैं। वनस्पति के विषय में अनेक नयी-नयी जानकारियां प्रकट हो रही हैं।
मनुष्य और वनस्पति-दोनों चेतन हैं। मनुष्य की चेतना विकसित है, संकल्प प्रस्फुटित है। उसकी इन्द्रियां स्पष्ट हैं, इन्द्रियों के संस्थान स्पष्ट हैं। मन का संस्थान बन गया। बुद्धि का केन्द्र बन गया। वनस्पति में यह सब नहीं है, किन्तु जानने वाली आत्मा है, वह उसमें भी विद्यमान है। मनुष्य अपने विशिष्ट संरचित संस्थानों के द्वारा जानता है और वनस्पति अपने समूचे शरीर से जानती है। आत्मा समूचे शरीर में विद्यमान है। आत्मा समूचे शरीर के द्वारा पदगलों को ग्रहण करती है। भगवती सत्र में बतलाया गया है- 'सव्वेणं सव्वे'-हमारी चेतना के असंख्य प्रदेश हैं। प्रत्येक प्रदेश के द्वारा आत्मा जानती है। किसी एक ही प्रदेश से नहीं जानती। सब प्रदेशों से जानती है। आप यह न मानें कि हम आंखों से ही देख सकते हैं, मस्तिष्क से ही सोच सकते हैं। हम समूचे शरीर १३२ आभामंडल
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