________________
मजबूरी होती है। वह एक सीमित साधन है। उसके सहारे चलने वाला जल्दी थक जाता है। उसका पैर ही नहीं थकता, उसके कंधे और हाथ भी थक जाते हैं। दर्शन की यह स्थिति बन गई। वह लंगड़ा हो गया। __ वैज्ञानिक जगत् में जब यह स्थापना हुई कि वनस्पति सजीव है, उसमें चेतना है, तब से विविध प्रयोग और परीक्षण होने लगे। डॉ. जगदीशचन्द्र बोस से लेकर आज तक प्रयोग चलते रहे और प्रतिदिन नयी-नयी जानकारियां हस्तगत होती गईं, जिनकी सामान्य आदमी कल्पना भी नहीं कर सकता। डॉ. वेकस्टन ने वनस्पति के विषय में बहुत प्रयोग किए। उसने यह स्थापना की कि वनस्पति में बहत शक्तिशाली संवेदना होती है। वह मनुष्य के भावों को इतनी सूक्ष्मता से पकड़ सकती है कि आदमी भी उनको इतनी सूक्ष्मता से नहीं पकड़ सकता। वह प्रयोग कर रहा था। एक दिन उसकी अंगुली कट गई। खून रिसने लगा। पौधे पर लगे गेल्वोनोमीटर की सूई तत्काल घूमी और पौधे ने अपनी व्यथा अंकित कर दी। उसके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित कर दी। डॉ. वेकस्टन यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया। उसने सोचा-इस सुई के घूमने में कोई आकस्मिक घटना तो नहीं घटी है। फिर उसने प्रयोग किया। एक वटवृक्ष पर पोलीग्राफ लगा दिया। माली आया। वृक्ष ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। सुई नहीं घूमी। कंपन नहीं हुआ। इतने में ही एक लकड़हारा हाथ में कुल्हाड़ी लेकर आया। सारा वृक्ष कांप उठा। तत्काल सुई घूमने लगी। ग्राफ पर भय का अंकन हुआ। डॉ. वेकस्टन ने देखा। उसे बहुत आश्चर्य हुआ। वृक्ष ने कैसे पहचाना कि वह माली था, उसे पोषण देने वाला और दूसरा लकड़हारा था, उसे काटने वाला? तीसरी बार भी ऐसा ही हुआ। कनाडा की एक महिला डॉ. वेकस्टन से मिलने आई। वह शरीरशास्त्री थी। वह पौधों पर प्रयोग करती थी। वह पौधों को सुखाकर ही नहीं, भट्ठी में भूनकर मार डालती थी। कई महीनों से यह प्रयोग चल रहा था। ज्यों ही वह डॉ. वेकस्टन के कमरे में आई, वहां के पौधों पर लगे गेल्वोनोमीटर की सुइयां घूमने लगीं। उनके अंकन से ये स्पष्ट हो रहा था कि सभी पौधे उस महिला की उपस्थिति में भयाक्रान्त हो गये थे। डॉ. वेकस्टन ने देखा। उसने महिला से पूछा- 'क्या
तनाव और ध्यान (१) १३१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org