________________
1
हम देख पाते हैं, अनुभव कर पाते हैं, किन्तु मूर्च्छा भी पूरी व्यक्त नहीं है । मोहनीय भी पूरा व्यक्त नहीं है । मूर्च्छा के बाद आता है राग, थोड़ा व्यक्त होता है । मूर्च्छा से पैदा होता है राग । द्वेष का कोई स्वतंत्र स्थान नहीं है । फ्रायड ने 'काम' (Sex) को प्राणीमात्र की मौलिक मनोवृत्ति माना है । राग और सेक्स (काम) में भाषा-भेद है, अर्थ-भेद नहीं है । फ्रायड ने जिस संदर्भ में 'काम' की व्याख्या की और आगम ने जिस संदर्भ में राग की व्याख्या की, यदि हम संदर्भों को सही समझ लेते हैं तो दोनों में कोई अन्तर नहीं आता । अन्तर केवल इतना ही आता है कि फ्रायड का ज्ञान केवल सेक्स तक ही पहुंच पाया, आगे नहीं जा सका। आगमकार सूक्ष्मज्ञानी थे । उनका अपना अनुभव था, साक्षात्कार था। वे राग तक पहुंचकर ही नहीं रुके आगे बढ़े और द्रव्य तक पहुंच गए। काम की वृत्ति को मूल मानकर मनुष्यों के व्यवहारों की व्याख्या करने में आज मनोविज्ञान के सामने अनेक कठिनाइयां हैं। वे कठिनाइयां इसलिए समाहित नहीं होतीं कि मनोविज्ञान के पास 'काम' सेक्स से आगे व्याख्या करने का कोई आधार ही नहीं है, कोई सूत्र ही नहीं है किन्तु हमारे पास राग से पूर्व व्याख्या करने के बहुत स्पष्ट आधार हैं; सूत्र हैं । राग के पीछे मूर्च्छा है । मूर्च्छा के पीछे कर्म - शरीर है, कर्म है। कर्म के पीछे हमारा भाव - संस्थान है । भाव- संस्थान के पीछे चेतना का प्रहार है इसलिए मनोविज्ञान के सामने आज जो-जो समस्याएं हैं, उन सब समस्याओं का समाधान करने वाले सूत्र और आधार हमें उपलब्ध हैं । मनोविज्ञान के पास ये साधन उपलब्ध नहीं हैं
1
1
उधर हम काम से चले और इधर हम राग से चले। आगे दोनों विचारधाराएं समानान्तर रेखाओं पर चलती हैं । राग से उत्पन्न होता है लोभ । लोभ से उत्पन्न होती है माया । माया से उत्पन्न होता है अहंकार और अहंकार से उत्पन्न होता है क्रोध । हमारे जगत् की सबसे अधिक व्यक्त चेतना है - क्रोध - चेतना । अहंकार चेतना सबसे सूक्ष्म है और माया- चेतना उससे भी अधिक सूक्ष्म है । इसीलिए माया का एक नाम है - गूढ़, अस्पष्ट । लोभ - चेतना उससे भी सूक्ष्म है और राग चेतना उससे भी सूक्ष्म है, अव्यक्त है। सबसे व्यक्त है - क्रोध- चेतना । मनुष्य जब क्रोधी
आभामंडल
१३६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org