________________
१. ध्यान क्यों?
१. • सत्य को खोजने के लिए, चेतना की स्वतंत्र सत्ता का अनुभव
करने के लिए, ज्ञाता को प्रतिष्ठित करने के लिए। चेतना को व्यापक बनाने के लिए-पदार्थ प्रतिबद्धता को तोड़ने के लिए।
अन्तर्दृष्टि को जागृत करने के लिए। ४. . चैतन्य-केन्द्रों को जागृत करने के लिए।
लेश्या को रूपान्तरित करने तथा आभा-मंडल को स्वच्छ और
शक्तिशाली बनाने के लिए। • चित्त को निर्मल, जागरूक, सशक्त और अन्तर्मुखी बनाने के
लिए। ७. . दुःख-मुक्ति के लिए।
प्रवृत्ति से शक्ति क्षीण होती है। निवृत्ति से शक्ति संरक्षित, विकसित होती है। स्मृति, विश्लेषण, चयन (निर्धारण)-ये सब लघु मस्तिष्क (सेरिबेलम) में संभव होते हैं। इनका विकास ध्यान
द्वारा होता है। ६. . विचार और संवेदन के नियंत्रण से अतीन्द्रिय ज्ञान होता है। १०.. भौतिक वैज्ञानिक इर्विन श्रेडिंगर ने कहा-पदार्थ का मूल स्वरूप
कण है या तरंग, यह विवाद उतना महत्त्व का नहीं, जितना कि जड़ और चेतन के पारस्परिक सम्बन्धों की गुत्थी सुलझाना।
।
मन में यह प्रश्न सहज ही उभरता है कि ध्यान क्यों? प्रयत्न को छोड़कर अप्रयत्न क्यों? सक्रियता को छोड़कर निष्क्रियता क्यों? चेष्टा
ध्यान क्यों? ११५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org