________________
- कृष्ण - लेश्या और असंक्लेश का चरम बिन्दु है -- शुक्ल लेश्या । असंक्लेश अर्थात् विशुद्धि । विशुद्धि की जधन्य अवस्था है तेजोलेश्या, मध्यम है पद्म- लेश्या और उत्कृष्ट है शुक्ल लेश्या । संक्लेश का अर्थ है अविशुद्धि | । । अविशुद्धि का चरम बिन्दु है- कृष्ण-लेश्या, मध्य है नील- लेश्या और जघन्य है कपोत - लेश्या ।
सारे रंग खराब नहीं होते, सारे रंग अच्छे नहीं होते । श्वेत रंग भी यदि अंधकार का होता है तो खराब होता है और प्रकाश का होता है तो अच्छा होता है ।
एक अमरीकी महिला वैज्ञानिक जा. जे. सी. ट्रस्ट ने मनुष्य के आभामण्डल के विषय में अनेक खोजें की। उसने रंगों का एक वर्गीकरण प्रस्तुत किया । एक थे प्रकाश के रंग और एक थे अंधकार के रंग । उनकी तुलना प्रशस्त और अप्रशस्त रंगों से की जा सकती है। काला रंग खराब ही कहां होता है । वह संरक्षण देने वाला रंग है। ध्यान में भी काले रंग का बड़ा महत्त्व है। तीर्थंकरों की उपासना भी काले रंग से की जाती है । वैदिक साधना-पद्धति में ब्रह्मा की उपासना लाल रंग से की जाती है, क्योंकि लाल रंग निर्माता है । विष्णु की उपासना काले रंग से की जाती है, क्योंकि काला रंग संरक्षण का रंग है। महेश की उपासना सफेद रंग में की जाती है, क्योंकि शिव संहार करने वाले हैं 1 काला रंग अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है। सफेद रंग अच्छा भी होता है और बुरा भी होता है।
अध्यात्म के विकास में बैंगनी रंग का बहुत महत्त्व है । मनुष्य की हिंसात्मक वृत्तियों को बदलने में यह रंग बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आज इस लक्ष्मी पूजा और प्रकाश की पूजा के अवसर पर हम पवित्र रंगों का ध्यान करें। श्वेत और पीत रंग का ध्यान कर अपने पवित्र संकल्पों को अन्तर्जगत् तक पहुंचाकर हम ऐसी आराधना की पद्धति का विकास कर सकते हैं, जो लौकिक पद्धति से भी अधिक शक्तिशाली हो। इस पद्धति के दोनों लाभ हैं। मन की शान्ति और बुद्धि की निर्मलता । बुद्धि की निर्मलता से साधना का विकास भी होता है और बाह्य व्यक्तित्व का विकास भी होता है ।
Jain Education International
रंगों का ध्यान और स्वभाव-परिवर्तन १११
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org