Book Title: Vimal Mantri no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
Catalog link: https://jainqq.org/explore/005391/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Chan JNOR पंमित श्री लावण्य समय विरचित मदा प्रनाविक विमल मंत्रीनो रास. .. -car था ग्रंथनी प्रथमावृत्तिने यथामति संशोधन करी श्रावक नीमसिंह माणके श्री मुंबापुरी मध्ये मांमवी-इंगरी स्वीट घर नं0 ३५०-३५५ मां आवेला स्वधर्मनिष्ठ प्रेसमां हिवेदी गिरिजाशंकर काशीरामे गप्यु. संवत् १९६७ सने १७११ Vyaas न MARAHASANG For Personal and Private Use Only ARTHA Jain Educationa International Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री जिनेडाय नमः॥ ॥ अथ ॥ ॥ विमल मंत्रिनो रास प्रारच्यते ॥ ॥ तत्र ॥ ॥ खंग पहेलो॥ ॥ मंगलाचरण ॥ आदि जिनवर आदि जिनवर प्रथम प्रणमेस, अंबाई धुरि अर्बुदा सकल देवि श्रीमात ध्याऊ; पुमावई चक्केसरी वाग वाणि गुण रंगे गाऊं ॥ सहगुक आणा सिर धरी आलस अ. खगो करेस, कहे कविश्रण हुं विमल मतें विमल प्रबंध रचेस ॥१॥ ॥ ढाल १॥ चोपाई। सरसति वरसति वाणी सार, कहे कविश्रण मुज तसु थाधार; सरसति विण जे बोट्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) बोल, ते प्रमाण नवि चडे नटोल ॥ १॥ नवे खंग जोज्यो निर्मला, विमल कीर्तिगुण गंगाजला; नोनग लहिर वीर विख्यात, गायसुं विमल मंत्रिनी वात ॥२॥ ब्रह्मानी बेटी सरस्वती, गौर वर्ण चाले मलपती; कमल कमंगल विणा हाथ, पुस्तक परठिऊं दक्षिण हाथ ॥३॥ उर मोटो मुगताफल हार, पाए नेउर रणजणकार; काने कुंमल वेणीदंम, लीला मोडं जेणे ब्रह्मम ॥ ४ ॥ रतने जडी कमी राखडी, लोचन जिशां कमल पांखमी; निर्मल नाशा तिलफूल, दंत तणुं कुण करसे मूल ॥ ५॥ राता अधर ते विछ मरोल, जाणे जीह ते अमीनो घोल; चंदलमें जीतलुं मयंक, कटि कोणो लाखीणो लंक ॥ ६॥ जन्नत पीन पयोधर कुंन, सदली साथल कदली थंन; फाली चोली सवि सिणगार, जाणे वीज तणो ऊबकार ॥ ७॥ वाहन हंस विश्व विख्यात, ते सरसति त्रिजुवननी मात, विण सरसति नवि कहीये जाण, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३) सरसति विण नही वेद पुराण ॥॥ विनय विवेक वमा आचार, लक्षण लग्न लोक विवहार; माई अंकनी एकूकला, सरसति विण (ते) थाये आकला ॥ ए ॥ आगे सिक अनंता थया, सरसति विण सिकें नवि गया; सरसति विण न लाध्यां ज्ञान, विण सरसति नवि पामे मान ॥ १० ॥ सरसति मुगति तणुं ने बीज, कुमुदुवे तो आपुं धीज; ब दरशण पाखंम बन्नवे, ते सघलां सरसतिने कवे ॥ ११॥ जेदने क्यणे सरसति वास, ते खाये गियाना ग्रास; जेहने सरसति मुखने मिलि, ते मूरखमांथा जाये टली ॥ १२ ॥ सरसति माने मोटा राय, सरसति विण नाणुं न कहाय; मांहि लखमी हुए खरी, न हुए सरसति जो सिर धरी ॥ १३ ॥ जरह नेद पिंगलनी वाण, तर्क छेद ज्योतिषनी खाण; धर्म कर्म बोल्यां संसार, ते सवि सरसतिने आधार ॥ १४ ॥ तुं नारति तुंदिज जग. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४ ) वती, तुं पदमा तुं पदमावती; तुं योगिणि तुं ज्वालामुखी, तहारे तेजे त्रिभुवन सुखी ॥ १५ ॥ ॥ डुदा ॥ सायर जल लवथी अधिक, ते तारो जंडार; नूठी कविजन को मिने, कुणे न लडो पार ॥ १ ॥ सवि कहिने दिये वयणरस, तेंयां जरण; कविजन बेठा केलवे, ते हेतेता वर्ण ॥ २ ॥ ताहरी परि तुंहिज लदे, तुज चरणे मुज वास; मुनि लावण्य समय जणे, पूरे मनची आस ॥ ३॥ करजोमी एतुं कहुं, यह निश करवी सार; रखे मात अधवच रहे, विमल रास विस्तार ॥ ४ ॥ छाली न जंपुं घ्यास तुं, ( अने) माया न करूं मात; कां जे अक्षर हुं कबु, ते सवि तुज पसाय ||५|| जाणतो अनेक परे, जं जं बोले बाल; माता मुख हुलावती, तं तं करे रसाल ॥६॥ कहे सरसति वलतुं वयण, जगत म आणिस जांत; विमल मंत्रि गुण गायतां, हुं या विश एकांत ॥७॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) अंगज तोरे अवतरी, बोलि सुवर्ण विशाल; नव नव वाणी वयण रस, पूरीश तारी बास ।। ७॥ कवण विमल ते किहां हु, बोलुं तसु उतपत्त; धर्म काज कीधां जिशां, चतुर सुणो एक चित्त ॥ए॥ चिहुंसें जोयण आपणे, जोयण एक प्रमाण; जोयण लाख जे देवकां, जंबू छीप वखाण ॥१॥ ॥ ढाल ॥२॥ चोपाई ॥ जरत खंग बाहिर जयवंत, सोवनमय पर्वत हिमवंत; एक सहस्र बावन जोयणे, बार कला पुहलपण गणे ॥१॥ शत योजन ऊंचो ते होय, तसु उपरे पदम अह जोय; निर्मल जल हीरोदक जिसुं, दश जोअण ते उंहुं श्सुं ॥२॥ पंच सयां पुहळु मंडाण, जोषण सहस लंब परिमाण; तेहy वारिन विणसे किमें, तलि तास पेखो वज्रमें ॥३॥ तेणे पद्म अह लखमी तणे, कनक कमल कविजन जणे; वास तणो तिहां स. यल- विवेक, लांबु पहोचु जोषण एक ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलमांहिं दश जोश्रण रह्यु, दोई कोस जल उपर कडं, परिधि जोअण त्रण काजी लही, नीरज मूल वज्रमें सही ॥ ५ ॥ रिष्ट रत्न म कांडु घडयुं, नाल रत्न वैमुर्ये जड्यु; बाहिरज्यंतर वर्ण विचित्र, कनक रत्न म बोल्यां पत्र ॥ ॥६॥ रक्त वर्ण जिसि वर्णिका, कोस रूप सोदे कर्णिका; लंब पुहल बोल्या दोश् कोस, उंचपणे एकज बोलेस ॥ ७॥ सोश् चक्केसरि वृत्ताकार, त्रण कोस काका विस्तार; कमल कर्णिका विच अनिराम, लखमी वास जवन ते उगम ॥७॥ कोस लंब पुहलपण आध, जंगुं कोस उंच ते लाध; कमला मंदिर वरकाणीये, त्रण बार त्रिढुं दिशि जाणियें ॥ ए ॥ उत्तर दक्षिण पूरव नपुं, पंच पंच शत जंचा धण; धनुष अढीसें पुहलां बार, बोल्यु त्रिडंदिशि तणुं विस्तार ॥ १० ॥ जवनमध्य मणिमयकोटमी, (तिहां) शय्यायें श्री देवी चडी; दीनकरनी परें तेजे तपे, त्रिहुं जुवन चाले नवि पे ॥ ११ ॥ वझे कमल श्री Jain Educationa International anal For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (०) रहे रखवाल, त्रीस सहस सुर जाकऊमाल; सोल सहस कमल कुंमली, आगल त्रण वलय बे वली ॥ १७ ॥ पहेले वलये लाख बत्रीस, बीजे वलये लाख चालिस; त्रीजे कमल लाख अडताल, रहे सुर सेवक मंदिर माल ॥ २० ॥ ए आगमनुं एवं मतुं, ए बोल्युं बे सवि शास्त्रतुं; कहुं कमल सवि थयां जेटलां, सावधाने सुणज्यो तेलां ॥ २१ ॥ एक कोड वीस लाख वखाण, उपर सहस पंचास प्रमाण; एकसो वीस अधिक वली जोय, लाबि कमल सवि संख्या होय ॥ २२ ॥ इणी परे लखमी देवी तणी, कवि कहे वर ऋद्धिबे घणी; एक वार कृतयुग अवतार, संपर्त्त सुर लोक मजार ॥ २३ ॥ इंद्रे तव अर्धासन दीध, मात मया श्रम उपर कीध; कल्पवृक्ष कुसमांची माल, लखमी कंठ ग्वी सुरसाल ॥ २४ ॥ आत्युं बीरुं जे कर तणुं, इंद्राणी गुण गाये घणुं; अति सनमानी पाठी वले, पमी मालदीवी तरू तले ॥ २५ ॥ विमल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) माल परिमल विस्तरे, जमर जला गुंजारव करे; लखमी जाणे अति निराम, ए कांई बे उत्तम गम ॥ २६ ॥ महारी माल न त्रुटे किमें, जो टक त्रूटी ई समे; कांई महिमा यानक तपो; लेइ परिवार रही आपणो ॥ २७ ॥ दिशि दे खीने वाध्यो मोह, थानक प्रत्ये चडाव्यो सोह; देव प्रत्ये दीधो यादेश, नीपार्क गढ पोल प्रवेश ॥ २८ ॥ वारू वन वामी अजिराम, वाव सरोवर सुंदर ठाम; मंदिर मोटां कीधां घणां, जाली गोख जति बारणां ॥ २७ ॥ सप्त भूमि सोहे श्रावास, मांहिं व्यवहारीना वास घरसुंदरी मुख मीठी जाख, जाणे साकर सरसी द्वाख ॥ ॥ ३० ॥ सरली सेरी नवि सांकडी, खाई वलिपि वली वांकडी, चउरासी चहुटे मंमाण, मांगवीच्या ते मागे दाए ॥ ३१ ॥ जिनप्रासादे मन मोहीये, नाटक नाच गीत सोहीये; साल दाल जोजन घृत घोल, बेठा करे कथा कल्लोल ॥ ॥ ३२ ॥ रामा रंग रमे सोगवे, देतां दान नं * Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) नाजे हरे नाचे रंन तिलोत्तम जोड, कुतिगि. थानां पहोंचे कोड ॥ ३३ ॥ पंच शब्द वाजे निसान, नगर सवे मुकाव्यां मान; लोक तणुं नवि लहिये पार, वस्युं नगर नव जोअण बार॥ ॥ ३४ ॥ मणि माणिक सोनानी कोड, जरीयां घर नवि दीसे खोम; राज लोक राजा थापीयो, पुण्यवस लोक पाटण आपीयो ॥ ३५ ॥ इंद चंद नर नायक तणां, आव्या वली वधावा घणा; उडी गूमी गयणि अनेक, तलीथा तोरण तणा विवेक ॥३६ ॥ देव कुंदनि जग वागी जाम, प्रगटथु पुण्यपाल तव नाम; वासी नगर लालि मन सी, पदम अहे जर वासे वसी ॥ ॥ ३७ ॥ कोश् नवि मागे नर कहि कन्हे, घर जश्ने कीजे विनये; मंदिर तेडी दीजे दान, जुर्व उत्तम युगतणुं मंमाण ॥ ३० ॥ वोक्ष्यां वरस सतर जो लाख, उपर सहस अठावीस लाख; काले कृतयुग आगे कयों, त्रेतायुग त्रिनुवन विसतयों ॥ ३५ ॥ लखमी लीला. दिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) नीगमें, कृतयुग पूरो जाएयो जिमें; रमल चमे मन जावे जिहां, त्रेतामांहिं पधायाँ तिहां ॥४॥ मणि माणिक रत्नावली जड्यो, त्रूट्यो हार नूमि जई पड्यो; रदयां रतन नगरीमां गयां, लेतां लोक अखुटी थयां ॥४१॥ एक कमां ने रलीश्रामणां, लीला लखमी दीधा घणां; अवर लोक आवे उलट्यां, वीणे वेग न दीसे घट्यां ॥ ४२ ॥ घर बेठग देशाजर फल्यां , रतन अमुलिक श्रावी मट्यां; करे प्रगट्यो वयरागर गम, रत्नपुर ए झहुं नाम ॥ ४३ ॥ बार लद सहस बप्पनवे, त्रेता वरसज एतां वहे; घर श्राव्या देई बहु मान, त्रेता युगमां दीजे दान ॥ ४४ ॥ बेठी लाउ विमाने चडी, जोऊं नगर घमी अधघडी; करजोमी पाय लागे राय, पाली पदम सरोवर जाय ॥४५॥ त्रेता युग थयो विसराल, श्राव्यो छापर पमतो काल; महारं नगर रखे सीदाय, लालि पुति तिणे गय ॥ ४६ ॥ जय जयकार हू जगर्माह्य, प्रगट पधायाँ लखमि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) माय; दानी मानी ज्ञानी लोक, थानक थानक मलीया थोक ॥ ४७ ॥ लिजे किजे बहु जेटणां, मणि माणक बहु मूलां घणां; जरी बाब कुसमांची कोम, श्री जेटी सजन करजोड ॥ ४८ ॥ माता जले पधार्यां तुझे, आज सनाथ थया बुं छो; नालिकेर नारंग डाख, महेल्यां फल फोफलना लाख ॥ ४९९ ॥ मेवा मोदकनां माटलां, चंदन चूयानां वाटलां; पान पुराणा नागरवेल, वादी अगर कपूरि रेल ॥ ५० ॥ श्री संतोषी जगतें करी, कंठ हुंती जे माला धरी; ते खाली यासिका विशाल, श्री थिर थाप्या श्रीश्रीमाल ॥ ५१ ॥ वेगे वधावी हरखी सिरी, पुहती पदम सरोवर पुरी; माल एक ने महाजन बहु, वदे वाद जन जोई सहु ॥ ५२ ॥ एक जणें नहीं श्रपुं श्रह्मो, एक जणे नवि लेशो तुझो; एक नणे वरि माह करूं, पण हुं पाठो नही उसकूं ॥ ५३॥ जेट तपुं जिहां लागू लाग, एक नये श्रह्म शीषजाग; स्पां मोटां स्यां नान्हां बाल, जागे जल वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३) लेशुं माल ॥ ५५ ॥ एक जणे कटका किम थाय, एक जणे ए लेसे राय; जेट नेद जुन कहत ब्रह्मे, तो किम लखमी नेटत तुझे ॥५५॥ एक नणे सहु आव्युं साथ, माल समरपी महारे हाथ; महारे मस्तक मोटुं कर्म, सवि कहिने मन लागो मर्म ॥५६॥ त्रटकी नटकी उठ्यो साथ, माल नणी के वाहे हाथ; वडा जणी जो दीधी शोन, तुज डोकरने वाध्यो लोज ॥५॥ नारवहा सिर महेट्यो नार, तो शुं लारवहां नंमार; वडो करी बेसार्यों आज, तो शुं तुह्मघर श्राव्युं राज ॥५॥ हाथे दुई अंगुलमी चार, अंगुठो पांचमो विचार; एक एक विण न सरे काज, पांच तणे मेलावे गज ॥ ५७ ॥ हाक्यो ताम हसीने रह्यो, बुझिविण बोल वरांसे कह्यो; वमपण थकु वरांशो मूल, हुं महाजनना पगनी धूल ॥६० ॥ बोले बोले वाधे राड, कांटे कांटे वाधे वाड; एक जणे कहीए एटलुं, मांदो मांद प्रीबगे जबुं ॥ ६१ ॥ एक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) जणे हुं नांजु वाद, नीपा श्रीनो प्रासाद, थापो मूरति ए धन वमे, बाश्नां फूल बाईने चडे ॥ ६ ॥ सुण्यो बोल श्रवणे जेटले, सवि कहने सरखं तेटले; जेटणे नाग ने जेह तणा, रह्या सोश्बी जाग्या घणा ॥ ६३ ॥ नेट तणी लखमी वावरी, श्री प्रासाद सुरंगु करी; थापी मूरति महूरत जोश, लखमी लक्षणवंती हो। ॥६४ ॥वाजे नंगल नेरी ताल, नेट तणी ते श्रीश्रीमाल: कर सोहासण सोवन थाल, ते उपर ते मेव्हीमाल ॥ ६५ ॥ श्रागल मलीआ महाजन थाट, रंग तणो उघाड्यो घाट; नवि करमाये नितु नव नवी, श्रीमाली श्री कंठे वी ॥६॥ छापरमांहिं दृश् थापना, जेदने जय टलीया पापना; श्रीगोत्रज श्रीमाली नणी, करे चिंत प्रासादह तणी ॥ ६७ ॥ छापरमांहिं इस्यां डे मान, दीजे मानव माग्यां दान; त्रीजे जुग श्री करे संजाल, नगर नाम दीधुं श्रीमाल ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५) ॥ वस्तु बंद तथा चोपाई॥ लडि थापि लखि थापि ज्ञाति श्रीश्रीमाल, नगर नाम श्रीमाल तव; रयणमाल अग्गर प्रसिको: सकल ज्ञाति श्रृंगार धुरि, अचल नाम श्रीमाल दीध; लहि जणे निर्धन नही, हुं तुह्म गोत्रज जेण; श्रीश्रीकार सुअप्पीआ, श्रीश्रीमाली तेण ॥१॥ खंग खंड मति डे निर्मली, जणतां गुणतां संपत वली; मुनी लावण्यसमयची वाण, एटले पहेलो खंग वखाण ॥२॥ सर्व गाथा ॥ ए६ ॥ इति श्री विमल मंत्रि मनोहर प्रगट प्रबंधे, नव खेमे सरस्वती वर्णन, लक्ष्मी चरित्र, कृत युग त्रेता प्रमाण, श्रीश्रीमाली झाति स्थापनाधिकारे प्रथम खंड संपूर्णम् ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ खंम २ जो॥ ॥ दुहा॥ पदमति परिमल पूरीऊ, जिम सायर सलिलेह; तिम श्रीमालति पूरीऊ, विवहारी सब लेह ॥ १॥ जिहां घर ललि न लतीये, नहि करमें संतान; ते घर लेखे न लेखीये, जिहां घर दान न मान ॥२॥ ॥ ढाल ॥ १॥ चोपाई ॥ ___ कोटमांहिं कोटोधज वसे, उणा ते गढ बाहिर खिसे; लाखीणा ते नेला थाय, श्स्यो न्याय के नगरी माह्य ॥ १॥ ओहड रोहम नाश दोश, रोहम बहु कोटीध्वज सोश उदम घरे नवाणुं लाख, ना सरसि घाली नाख ॥५॥ बंधव तोरे पाय लागीये, एक लाख ब्रह्मे मागीये: कोटीधजनी पहोंचे आस, जिम गढमांहिं पुरं वास ॥३॥ हमे न आवे केहिने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ, तुहि धन नवि बुटे हाथ; कह्यं वचन तव कोपे चढ्यो, तुज पाखे गढ रह्यो ने अड्यो ॥४॥ जा तणो जरूसो हतो, उहम मन थयो उरतो; सुश्रण म मग्गो अंचलि उमि, मोटा माणस लागे खोडि ॥५॥ नाजे गति स्वर जीणो थाय, शरिर परसेवो जय मनमांह्य; दयामणो देखे सहु कोय, मग्गण मरण समाणो जोय ॥६ चंद तणे ने सुरज मित्त, घमियुं तेज तव थयु चल चित्त; आव्यो सूरज घर करी बास, दोसे शसिकर पत्र पलास ॥ ॥ अण तेम्युं नर पर घर जाय, मान मोहत नवि पामे राय; साहमुं कांई चमे कलंक, सूरज तणे घर गयो मयंक ॥ ॥ ७॥ तव उहम मन थयो निरास, माग्युं अर्थ न पुदती श्रास; आणी डंस रह्यो मनमांद्य, एणे अवसर जु कमै पसाय ॥ ए ॥ नगरमांहिं राजानो पुत, गर्वे मागे ग्रास बहुत; राउ न आले माग्यो पास, कहेतां नश्ल हुआ बम्मास ॥१०॥ जणे मंत्रि नृपति अवधार, कुंअर मनावो वडे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) विचार; नान्हुँ सिंहतj बाचहुं, मोटा मयगलथी ते वहुं ॥ ११॥ राय जणे रूठे स्युं हशे, जाणे उवस कोई वासशे, नवला यौवन नवला वेश, कांई न वासे नवला देश ॥ १५ ॥ माथु मूलग काढयुं जेह, पडे तृणुं नवि त्रूटे तेह; तरूणां तेज सूरज सारखां, लहीये पुरुष तणां पारखां ॥ १३ ॥ किस्युं करशे महारे ग्रास, बेग रहो आपणे आवास; एहने कांई आलं आज, बीजा बेटा मागे राज ॥ १४ ॥ महारे बेटा सवे सारिखा, जुलं कर्म तणां पारखां; धन उपार्ज खान सवे, गाम ने ग्रास न आबुं नवे ॥ १५॥ सोल वरसनो बेटो जेध, धन जोगवे पितानुं तेश्र; ते कुल मंडण कवि म वखाण, पुत्र रूपे ते रणी जाण ॥ १६ ॥ कुंअर तणे काने श्रुति पमी, नगरमांहिं हवे न रखें घमी; जमे रोस जर नावे घाट, कुंअर पहोतो हड हाट ॥१७॥ उहड आसन मेहेली करी, बेगे राजनीति श्रणुसरी; पाला पुहता आणे. वगम, किशुंअणूरूं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) तहारे स्वाम ॥ १८ ॥ कदे कुंअर तव मननी वात, ईशां कथन मुज बोले तात; परहुंसि पूरीया बे नटोल, साल सरीखा साखे बोल ॥ ॥ १५ ॥ एके सुत्र यया तव बेज, वाट सरिखुं संबल लेज, घरे मोकलावी चाल्या जिसें, मारग शकुन सबल हुए तिसें ॥ २० ॥ पहिलो मयगल मलपतो मल्यो, व्यवहारी दक्षण कर वढ्यो; मंगल जणती सामी नार, जाट वधावे जय जयकार ॥ २१ ॥ उदो जाती योगिणि मली, तो दक्षण जयरव कलकली; खर डाबो ने डाबी देवि, सबलो सुहु माबु लवे ॥ २२ ॥ हरण अधूरां जमणां जाय, पहेले पहारे पनोतां माय; सांड तुरी ने दक्षिण चास, वामा वायस पूरे वास ॥ २३ ॥ डाबां लाली बोल्या जाम, कुसली कुंछार हर खिर्ड ताम; शकुन गंवि बंधी दृढ करी, महेंले पंथ घणा परहरी ॥ २४ ॥ वाट घाट जोता मन रंग, चांले चंचल चतुर तुरंग, श्रुति पोढ़ा पीया कीध, पास्यो सिंधु देश प्रसिद्ध Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ॥२५॥राजेव्यो जव पहातणो, गकुर गाम गम दिअनो; रहो राज पूरू मन रूली, कहे वाणी कुंअर कुंअली ॥१६॥ अह्मे न आव्या लेवा ग्रास, जाणुं उवस वासु वास; नूमितो जिहां न हुए धणी, गम देखाडो ते हित जणी ॥२७॥ जोश राज विमासे ताम, गकुर विना न देखे उगम, पश्चिम दक्षिण पूरव जणी, जोतां जोयु उत्तर जणी ॥॥ देश घणानी श्रावी संधि, एक थली ले तेहने कंधि; अ सदैवत अह्म घर तुरी, पुचो तुरी लेई करी ॥ ए॥ जोतो जे थल आवे जाम, ताम तुरंगम करी प्रणाम; चिंती जोग करे जे नळु, आठ पुहर मेटहे मोकलुं ॥ ३० ॥ हयवर चंपे जेती सीम, पढ़ें पालो आवे जिम; वेगे वधावे मुगता फले, नगर वासजे तेणे थले ॥३१॥ । ॥ वस्तु बंद ॥ कुंअर चाल्यो कुंअर चाल्यो, तुरीथ सोई साथ; उहम सरीसो आवीयो, तेणे गमे ते तुरीय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २१ ) राखे, दयवर मे लिर्ड मोकलो; यह पुहर थल भूमि रख्खे, उवसि वास वसावी; नगर नाम ऊएस, मुनि लावण्य समय जणे, धन धन उदय नरेस ॥ १ ॥ ॥ ( ढाल २ ) चोपाई ॥ वास्युं नगर जिसुं सुरलोक, धने धनद समाणा लोक, पोढां मंदिर पोली पगार, वास नगर नवि लड़ी यें पार ॥ १ ॥ चिहुं दिशि तलीच्या तोरण बार, अमरी कुमरी नाचे नार, चोरासी चोहटां जुजुषां वामि वाव सरोवर कूछा ॥ २ ॥ घर घर नारि रंजा जिसी, साकर वाणी बोले इसी; राजगृह मां जगमगे, उहडना घर गढ मूलगे ॥ ३ ॥ पूंठे थको तेड्यो परिवार, हम नगर तो सिगार, राजमुद्रा पहेरावे राज, बेहडनो वाधे जसवाज ॥ ४॥ ॥ इहा ॥ जे जे चिंत्या बोलडा, ते ते चड्या प्रमाण; जाई सरीसुं इस, नवि जागुं निरवाण ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तर दक्षिण पूरवि, पश्चिम केरा लोक, नगर वश्यां ते निर्मला, जिम तझमाहिं अशोक ॥२॥ कोटी धज कोटे वसे, लाखीणा लख जोई, नगर. मांहिं महिमा ईश्यो, नर निर्धन नही कोई।। ॥ ३ ॥ उहड घर एक धेनु , ते जव चरवा जाय; दीर करे काबल नरे, नितु नितु तेणे गय ॥ ४ ॥ दोही ते मुफे नही, जोतां जाएयो मर्म; पास जिनेसर प्रगटिया, हम अनुत कर्म ॥ ५ ॥ उहड निसि निघाजरे, सपनंतर सची थावि; आवी देवी ईम नणे, हुं तुज पुण्य प्रनावि ॥ ६॥ संतुही उहड सुणे, तुज समोपिलं राज; नगरनी रखवालि हुँ, परतद आवी आज ॥ ७॥ उस वंसनी थापना, श्री जिनवर प्रासाद; पासे मुज मंदिर करे, वली सुणावी साद ॥७॥ ॥ चोपाई॥ .. जाग्यो उदम पुहतों राज, कहो महेता पुहतासें काज त्रण वाणि सपनंतर तणी, ढुं श्राव्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) तुम कहेवा जणी ॥ १॥ सुणी वात मन रंज्यो राय, ततखिण मेली सवि समुदाय; जिन प्रासाद देविनुं गम, परव्युं उस वंशनुं नाम ॥२॥ ॥वस्तु बंद ॥ नगर वासिऊं नगर वासिऊं, नाम एस; उहड पोढि निजनरें, सुपन मध्य सची आवि श्रावी; तेणे वचने प्रासाद जिन, देवी गम निश्चल करावी; उस वंशनी थापना, जवसि वसीथा जेण; जैसवाल अरमकमस, कारण कही तेण ॥ १॥ ॥चौपाई॥ पुहतो वछ राय अवगणी, नवल हुई श्रीमालह धणी; आवे धाड धसंती घणी, नगर लोक सवि थयोरे वणी ॥ १ ॥ आवे लूसे लगमे हणे, ते सरीसु नवि चाले कणे, खंन नगरने काढी खवा, तेड्यो चक्रवर्ति पौरवा ॥ २ ॥ स्वामी नगर वडुं श्रीमाल, ते सूसाये विण रखवाल; रक्षा करो म लावो वार, जड मोकलो जला फार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) ॥ ३ ॥ कटक मांहिं जे गाढा कटा, ते टाली कीधा एकता; सुजट सहस दश के जोम, जे जाजे जुपतिना मोम ॥ ४ ॥ मन चिंतव्या मनोरथ फल्या, व्यापारी ते लेई वल्या; घ्याव्या नगर ईशा असवार, जय जागो वरत्यो जयकार ॥५॥ नगर की बाहिर उतर्या, जतारा पूरब दिशि कर्या; तिहां थानक अंबाई तपुं, करे लोक याराधन घणुं ॥ ६ ॥ रह्या सुनट विंटी प्रासाद, जाग्या वयरीना उनमाद; जिहां जिहां जाय तिदां जय वरे, अंबाईनी उलग करे ॥ ७ ॥ याव्यो दिन दीवाली तणो, मंडे नट उच्छव अति घणो महा पूज मंगल आरती, त्रूटी बाई महासती ॥ ८ ॥ मया करे बाइ मात, रयणीमांहिं गढ कीधा सात ए साते पड सबलां श्शां, वयरी नेद करे नही किशां ॥ जो तुझे मानि महारी आण, तो वसवा आप्या दिवाण, खंध तुह्मारी कीधो वास, बेगे वालों बयरी घास ॥ १० ॥ चढे कटक वयीने नडे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२५) जे वंका ते पाए पमे; मोटे मंदिर कीधा वास, अंबाई नितु पूरे पास ॥११॥ नगर थकी प्रव दिशि रह्या, प्रागवाट तेणे कारण कह्या; डंग कलस सिर दीधी धजा, थापीअंबाईगोत्रजा॥१५ - ॥ वस्तु बंद ॥ नगर निर्मल नगर निर्मल, सहेजे श्रीमाल; जय नट्टे नट मोकल्या, सबल सहस दश जोडि किधा; चक्रवर्ति जे पौरवा, तासु पुत्र पुहविं प्रसिध्धा; अंबाई थिर थापीश्रा, अति उछव उहास; प्रागवाट तेणे कारणे, वसीया पूरव पास ॥१॥ ॥चोपाई॥ क्रमे क्रमे जाति हुई बे घणी, वडी झाति श्रीमाली (१) तणी; पोझवाड (२) प्रगव्या उसवाल (३), गूजर (४) डीम् (५) डीसावाल (६)॥१॥ खडायता (७) खंडारा (6) खंडोल (ए.), कातुरा (१०) कालीका (११) कपोल (१) नाश्ल (१३) नागर (१५) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६) नाणावाल (१५), प्रौढ लाड (१६) लामूत्राश्रीमाल (१७) ॥२॥ हारह (१७ ) हरसुरा (१५) हुंबडा (२०), श्रीगुड (१) जालहुरा (२२) जागडा (२३); धाकडीआ (२४) जडीश्रा (२५) तुंगडा (२६), ब्राह्मणा (२७) वीथु (२७) वायडा (ए)॥३॥ गोनू (३०) अमालजा (३१) गहिगहिया (३२), मोढ वली (३३ ) मांडलीआ (३४) कहिया; पंचम पुष्कर (३५) जंबूसरा (३६), सुहमवाल (३७) ने मंडेढेउरा ( ३७ ) ॥४॥ अबिति (३ए) अबतिवाल (४०) सुरहिया (४१), माथर (४२) कंबोजा (५३) करहीआ (४४); पोरुश्रा (४५) सोरठीया (४६) सही, पल्लीवाल (४७) झाति वली लही ॥ ५ ॥ मडांहडा (४) मंडोरा ( ४ ) जाण, मेवाडो (२०) वाल्मीक (५१) वखाण; बांचा (५५) चित्रावाल (५३) बथेर (५४), नरसिंगवुहरा (५५) सखंडेर (५६) ॥६॥ नामू (.५५) नागाह (५७) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) नी ज्ञाती, उग्रवाल (एए) बाबर (६०) नी जाति, धणुरा (६१) वैसुर अस्विकी (६२), श्रष्टवगी (६३) के पद्मारकी (६४)॥७॥ गोलवाल (६५) नागुरा (६६) नरा, तेरोटा (६७) साचोरा (६७) खरा; जोडेडा (६ए) जेराणा (७०) पाहि, नीमा (७१) ज्ञाति वडी जगमांहिं ॥ ॥ कथ्रोटीया (७२) कोरंटाल (७३), दाहिल (७४) सोनी (७५) सोध मयाल; राजसखा (७६) ने बुहमीसखा (७७), वडीसखा ( 30 ) ने वलीदोसखा (उए)॥ए॥ सूराणा (ज) राजुरा (७१) जोई, मेलीतवाल (२) मंडोरा (३) सोई, थाणपुरा (४) न गणे रेख, वली शाति वागमुआ देख ॥ १० ॥ वस्तु बंद ॥ झाति निर्मल झाति निर्मल, झाति निःकलंक ज्ञाति वडी सहूको तणी, झाति कोई न्हानी म जाणो; जे अवसरे वित वावरे, वसुह मध्ये तसु वडो वानो; शातिमांहिं नर केटला, सकले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) ज्ञाति सिणगार; बिझद बोलावे बंदीजणह, महाजन राय साधार ॥१॥ ॥ चोपाई॥ बोल्या वर्ण विशेष अढार, तेहनो केतो कहूं विचार; वर्ण अढारे सहु मुख कहे, विगत विवेक विरमा लहे ॥१॥ व्रते करीने ब्राह्मण ज्ञाति, करि हथीआरे क्षत्रि जाति; करसणकारि वैश्य कहाय, नाटकीया नर शुभ जणाय ॥२॥ ब्रह्मचर्य पाले तप करे, कांकरी कनक समी मति धरे; सर्व जीवनी आणे दया, सकल जाति ते ब्राह्मण कह्या ॥३॥ शूरवीर विक्रमनोधणी, बहु आरंज परिग्रह जणी; निर्दय कर हथीयार पखाण, सकल ज्ञाति दात्री अहिनाण ॥ ४ ॥ करसण कर्म सकल व्यवसाय, सकुलो डाह्या पंमित मांहिं; जाणे कला करे व्यापार, सकल झांति जो वैश्य विचार ॥ ५ ॥ मूर्ख अवसर मारे अंग, नाचकर्मि नाटकनो रंग, जेह नाराच मखर देखीये, शुभ सकल जाति पेखीये ॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १‍ ) ब्रह्मा मुखी ब्राह्मण या, बाहू थकी ते क्षत्री हुआ; वैश्य हृदय उत्पति वखाण, प्रगट्या शुद्ध पायथी जाण ॥ ७ ॥ कंदोई का विया कुंभार, माली मर्दनीच्या सूत्रधार, जेंसाईत तंबोली सार, नुमो नाक सुण सोनार ॥ ८ ॥ गांवा बीपा ने लोहार, मोची चर्म करे व्यवहार, ए चिहुं उपर बोल्या सही, पंच जाति ए कारु कही ॥ ७ ॥ जेहनो विवाह जेहशुं मले, तेहनी ज्ञाति तेहमां जले, नीचकर्मि अति नीच कहाय, वर्ण अढार कह्या हिंदू मां ॥ १० ॥ के जिनवर के ईश्वर ध्याय, के ब्रह्मा के गोविंद गाय; वर्ण वखाण्या मारग रह्या, असुर वर्ण ए अलगा कह्या ॥ ११ ॥ नव नारु ने कार पंच, वर्ण चारना जोई प्रपंच एटले मलिया वर्ण अढार, चाले सकल लोक व्यापार ॥ १२ ॥ बौध ( १ ) सांख्य ( २ ) नैयामक (३) नाम, जैन ( ४ ) अने वैशेषक ( ५ ) ताम; जैमनीय ( ६ ) ब द रिसए जोय, मारग धर्म चलाव्या सोय ॥ १३ ॥ व दरिस ए वरते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) वेद, सोल सोल एकेके नेद; सोल के उन्नू पाखंग, प्रगट्यां पृथ्वीमांहिं प्रचंड ॥ १४ ॥ खंग खमं मति निर्मली, श्रोता सांजलजो ए नली; विमल मंत्रिने रासे जाण, एटले बीजो खंग वखाण ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ ७ ॥ ॥ इति श्री विमल मंत्रि नव खंभे सकल झाति नाम प्रगटीकरणे अष्टादश वर्ण व्यवस्था षट दरिसनानिधानाधिकारे द्वितीय खंड संपूर्णम्॥ commer-1421ST ॥ अथ ॥ ॥ खंम ३ जो॥ ॥ चौपाई॥ चोसठ सहस आठ लख होय, छापर वरस विमासी जोय; छापर पूरो पहोतो सही, श्री उरी जिन्नमाल तव थई ॥१॥ चोयो युग हवे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३१) लाग्यो जाम, प्रगट्युं. जिन्नमाल तव नाम; कलयुग नाम कहेवाये सोय, ज्यां गुण कीधे अवगुण होय ॥२॥ ते कलयुग दोहिलो जगदीस, चार लाख ने सहस बत्रीस; वरस एटलां वडुं प्रमाण, सहेजे लहियें सेवा दान॥३॥ नित्य धर्म ते पर्वे गयो, तप करवो ते कपटे थयो; राजा मन वंकडा अपार, ब्राह्मण हा ले दथीयार ॥४॥ साच शोच नही सुहणा माह्य, पृथ्वी सदा सफल नही माय; लोक घणा ते लंपट थया, घर आचार हता ते गया ॥५॥ संत सीताये सविढं परे, खाजे पीजे उर्जन घरे; करे कर्म केटलां कठोर, लूसे पृथ्वी पेसे चोर ॥ ६ ॥ पुत्र पिता न करे विलास, धणि थई बेले घरदास; वहूअर सवि वीटावीवाय, नवि लागे सासूने पाय ॥७॥ घर कई घर कश्मांडे वेढ, मोटा घरनी आणि ढेढ; कजअ न करे घर, काज, सासु तणी नवि आणे लाज ॥ ॥ सरंगट खोले फरंगट दीये, सासु ससराथी नवि बीहे; खिण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५) पेसे परएयाने कान, हाली कह्यं ब्रह्मारूं मान॥ ॥ ए॥ बोरू घर कुंआरा सात, केदनो तातने केहनी मात; रले खपे तुहिज घर जरे, ते खाई घर गलां करे ॥ १० ॥ आपण बेहुनो केहो वरो, मानो बोल अह्मारो खरो; माय बापथी था जुथा, धन मेलीने जरीये कूया ॥ ११॥ रात दिवस रलस्युं घर नणी, किसि चिंत मावित्रह तणी; राब पीब वलि पीहर तणां, आणी घर नरिसुं हुं घणां ॥ १५ ॥ मोटी कोटी माने मात, मुज पीहरनी मोटी वात; वढूयारूने बोले फस्यो, बापे बोलाव्यो रोसे नस्यो ॥१३॥ कहो काका करगर शी करो, श्युं करशो तेडिने अरो, वेगे वच्छ टाली वांकमो, तुहि तणो के घर सांकमो ॥ १४ ॥ बेटो बोले बांगम बोल, विनय गयो सिरमांहिं निटोल; में नवि चाले घरनो जार, करशुं ब्रह्मे अगलो व्यवहार ॥ १५ ॥ माय ताय तव पड्यां गलाण, पुत्रतणुं ब्रह्म टल्यु पराण; जोज्यो कलयुग करणी शां, माय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३३) ताय मुख सहियां किशां ॥ १६ ॥ देव देहरामे मान्या नोग, मात तात मिलिया संयोग; पुत्र तणुं आव्युं आध्यान, बठे मासे कयुं पकवान ॥ १७ ॥ जासक जिमण जिमामयुं सड, गाये रंग वधार्यु बहु; दश मसवामा दोहिलो धर्यो, जएयो पुत्र किम पोढो कर्यो ॥ १७ ॥ पहिलं माता मेहेले लाज, प्रगट पयोधर कीधो आज; प्रेमे पुत्र तणे मुख व्यों, लेई खोले रोतो राहव्यो ॥ १५ ॥ जण जोस्ने जोगिणि गाय, धवल देई धूतारी जाय; दिनदो परें लाहो गुल घृत, बोले मधुरां वचन अमृत ॥२०॥ माय ताय तव हरखे नयाँ, धन वेची घर ठगलां का: जोज्यो जन बेटानां हेज, माय बाप बिडं अलगी सेज ॥ २१ ॥ बेटानां धोयां मल मूत्र, जाएयु राखे स्ये घर सूत्र; कोली बांधी दीन बारमें, फूली फू जासक जिमे ॥ ॥ साजण हरख्यु हिथमे हस्युं, नाम ठव्युं नारायण जिस्यु, मस्तक टोपी मदफू तणी, करि कडली ते फई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) घर जणी ॥ २३ ॥ मोटां मांदलीयां वांकमी, पाय तणे माने मोजडी; अलजश्यां आएयां थांगलां, काने कनक तणा वेढला ॥ २४ ॥ पाये घूघरमी घमघमे, बालुअडो ते अंगण रमे; साहमुं जोई करती काम, माडी दै धरावे हाम ॥ २५॥ ज वलगे आलिंगन अडे, प्रेमे पूरो पानो चमे; धसट करी धवारे माय, पालणडे पुहढामी जाय ॥ २६ ॥ करे काम हालरमां गाय, माता हश्मे हरख न माय; पोढो थातो पगलां नरे, पंच वरस जब वुले परे ॥२७॥ मात तात तव करे विचार, बेटो आव्यो कुल सिणगार; कांई उडव कीजे नवो, सुतज निशाले पाठवो ॥ २७ ॥ मूर्ख पुत्र न आवे काज, मूरख कोई न आवे राज; हंस मांहे बग बेगे जिशो, पंडित पासे मूरख तिशो ॥ श्ए ॥ मेस्या साजन केरा थाट, मोदक करीने नरीयां माट; साल दाल प्रीसे घृत घोल, पांते बेग करे कबोल ॥ ३० ॥ चुश्रा चंदन फोफल पान, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३५ ) मंडप मोटा दीजे दान; जरीया सुंडल धाणि चणा, साथै खमीया लीधा घणा ॥ ३१ ॥ फूल तथा तव जया पगर, जोवा मल्युं तव सारूं नगर; खुप जरावी घोमे चडे, जुंगल जेरी जली तमतडे ॥ ३२ ॥ चाले महाजन मोटे जंग, सुत निशाले पुहतो रंग; अध्यारू गल जई रहे, पाटी खमी लेखण लदे ॥ ३३ ॥ कर जोमावी राख्यो ध्यान, को मंत्र सारस्वत कान; सकल शास्त्र धूरिमाइ लखी, निशाली करिया सवि सुखी ॥ ३४ ॥ श्राप्या खडीच्या सवि सूखडी, गाये गोरी गर्ने चमी ; पहिलां मेहेलाव्यां पोतीश्र, पंडित पहिराव्यां धोतीयां ॥ ३५ ॥ सूत्र सूत्र मागे आरंज, पंडित मांड्यो मोटो दंज; लोजी हुए बांजणनी जात, पंड्यो ताके घर मीरात ॥ ३६ ॥ जाणतां अक्षर न चमे मुखे, जाणे पंड्यो मारे रखे; बानुं विधानुं चोरी करे, पुत्र पंड्यानं घर जई नरे ॥ ३७ ॥ पुत्र पढाव्यो लखमी माट, वाणि सीखवा मेहेल्यो दाट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only 4 Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३६) परणाव्यो जब पोढो थयो, आतुं पोतुं खरची रह्यो ॥ ३० ॥ तालुं त्यां सुधी प्रीत रहे, ज्यां कुंची मारग नवि लहे; कुंची सरखी आणी वहु, घर नंगाणुं पाड्युं बहु ॥ ३५ ॥ रात दिवस नुपुर ढुंसी, सोनाने कोले पोसी; एणी परें की, घर- फेड, बेटे नीपायुं नीमेक ॥ ४० ॥ थाज अह्मारूं वडपण इस्युं, ए बेटो बोले डे किस्युं वलतुं बोले सामो खसे, जई बेटो अनेथो वसे ॥४१॥ वहुअरनां तव माग्यां पड्यां, मन चिंतव्या मनोरथ चड्या; सासू बेसे पडती पाट, वढु बेसे खुंखारी खाट ॥ ४२ ॥ तुझे जुर्म कलयुगनो व्याप, विस्वा अढारज वरते पाप; धरती दोढ वसो धर्म जाण, सत्य वली अध वसो वखाण ॥४३॥ साठ वरसना डोसा जेह, तरूणी कन्या परणे तेह; खत्री वेसे वाले गाय, म्लेच्छ वली मुकावे धाय ॥ ४४ ॥ न गणे घर मांटी कुण मात्र, नारि उजायें करवा जात्र; घरनां बालक मेब्दे बहार, चपलपणे हीडे सं. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७) सार ॥ ४५ ॥ गुरु सुधा नवि दे उपदेश, चेला थाणे गुरुस्युं खेद; योगी योगिणि नकटां थाय, जुन कलियुग तणो पसाय ॥ ४६ ॥ मांकम कुकड किंनर वहे, योगी योग मारग नवि लहे व्रत नवि पाले सुधा व्रती, अधवच मी जाये यति ॥ ४ ॥ गुरु चेला चेली महासती, करे वात जेमनी जावती; आप आपणा श्रावक कहे, मारग अवर अनेरा रहे ॥४७॥ थापण थापी हाथोहाथ, नवि आले जो आवे बाथ; परस्यु प्रेम घणां तुसणां, बंधव सजन साथे इसणां ॥ ४ए ॥ अल्प दीर ते मेहेले गाय, उत्तम मध्यमने घरि खायः वारु ब्राह्मण हेरां करे, लोने अधम हेठे कर धरे ॥ ५० ॥ चोवटीआ थापे अन्याय, लिये लांच हरखे मनमांड; कर सोवन फलकावे वेढ, वारु वणिक वोहरावे ढेढ ॥५१॥ कलयुग वात असंजम करी, लेश वित्त वेचे दीकरी; बाबलमीने धावे गीय, ए दृष्टांत हुश्रा कलिमांह्य ॥५२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) दरशण ते गंदा करे, जाणे पात्र अह्मारां जरो उत्तम नमे नीचने पाय, वरते वरस वीसासो श्राय ॥ ५३॥ मही मोटी मामे वात, जाणुं सोवन झपा धात; फामे पाडे जोला लोक, धूतारा धूतारे फोक ॥ ५४ ॥ करे पुण्य के दिन ने रात, तेहनी करे निरंतर तात; न टले गुरु न टले देवथ, खाए गरथ चढे जे हस्थ ॥ ५५॥ राय राणा ते संध्या खले, खत्री नासे दी दले; न्याय नृप थोमे परिवार, निःफल मंत्र घणा संसार ॥ ५६ ॥ धर्मतणी थोडी वासना, अल्प मृत्य आवे शासना; दीसे देहि घणी पाउलि, नावे. नगति करे पातली ॥ ५७ ॥ दाता नर दारिखी घणा, कृपण तणे घर नहि रिध मणा; पापी जीवे धर्मि मरे, कामधेनु ते उखर चरे ॥ ५ ॥ जे जुगे ते वखाणीये, साचो नर ते अपमानीये; अलवे बेग बोले मर्म, धोई पातिक करे विकर्म ॥ ५ ॥ मा देखी मुह पाबुं करे, नारी देखी दशं रे; बेटा देखी मंझे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३ए) मोह, बाप तणो आणे अंदोह ॥ ६० ॥ कृतयुग घर घर त्रेता फली, छापर गाम नगरको वली; कलयुग नर विरलो दातार, देशमाहिं को लहीये सार ॥ ६१॥ परना अवगुण काढे घणा, दोष न देखे को श्रापणा; हांसे बोले तेवा बोल, जाये जुनी प्रीति नीटोल ॥ ६ ॥ थोके दाने घणा मन मान, कुलमंमण थोमां संतान; गाज वीज घणी थोमा मेह, वयर घणां ने थोमा नेह ॥ ६३ ॥ कलयुग कुल मारग बंडीया, श्रावके नवला मत मंमिया; के नावे देहेरे पोसाल, मुनिवर देखी बोले गाल ॥६४ ॥ गुरे नणाव्यो धुर हित करी, अमी समी विद्या नवि जरी; कली जावे कविश्वर कह्या, ते श्रावक गुरु सा. हमा थया ॥ ६५ ॥ श्रावकनी धुर थोडी झाति, कलयुग मांहि पमी बहु नांति; ते वहेंचणी श्राव्या जूजूआ, गणधर गड चोरासी या ॥६६॥ ज्यां हुए पर्व प्रजुसण माल, त्यां सहु मां डाकडमाल; मांहो मांद मोटा थाय, नाचे खंदे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) गेले गाय ॥ ६७॥ पडे को न दीसे वली, वाटे घाटे लेटे लली; लहे अवसर तो अलगा टले, जाणे यती रखे अह्म मले ॥ ६॥ मुंबज मरडे मोमे काय, बेग फुले चहुटा मांड; थावे कोश पही परहुणे, जार घणो ने घर आपणे ॥ ६ए ॥ घर आएयु आपण वावरे, नाम घणुं दीधार्नु सरे; कलयुग वात करी जेटली, कदेतां नवि शोने केटली ॥ ७० ॥ चाचि बेठी करे टकोल, आप वखाणे बोले बोल; कहिने पाणी पाये पली, ते क्यारे पचारे वली ॥ १॥ थोमा सकल वि. कल नर घणा, जाति हित ते सोहामणा; करे कुर्थानक काको वरो, कलयुग कोश् न पारख खरो ॥ ७॥ धर्म तणां थानक सीदाय, धर्में पलीशन पाणी पाय; देश वंडे वलतो जपगार, ते दीधानो किशो विचार ॥ ७३ ॥ घणा रोग थोमा संयोग, काजी नाव थोमानोग; धन नवि खरचे लोजी जपी, कूमी कीरती वंडे घणी ॥४॥ सुषी विद्या पोमे गम, फल नीरस जाळां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४१ ) आराम; कपटी वेश धरे कापमी, नर नोलाने जाये नडी ॥ ७५ ॥ जोज्यो कलयुग केरी कथा, जे वाणी बोले ते वृथा; जमणी वाचा देई वले, पण ते सुद्धी थोडी पले ॥ ७६ ॥ जो कहिं पडीऊं देखे तृणुं, तो मन लेवा दींडे घणुं जूओ कलयुग केरो वाय, लोज वाधे रंक ने राय ॥७७॥ यौवन माटे मोडे छांग, परनारीस्युं काका रंग; घर घरणीस्युं नावे थाट, करे वेढि नर फोकट माट ॥ ७० ॥ मने मेला नितु करे सनान, वधें जीवने थापे दान धन उधारे करणी करे, विण आल्ये रणी थइ मरे ॥ ७९ ॥ धन पीआरुं जे घर मल्युं, ते धन खातां लागे गल्युं; मागे धन नर यावी अडे, धन माटे पग वी पडे ॥ ८० ॥ जे जाणे ए महारो मित्र, जाते दिन. ते थाये शत्रु; वयरीनी परे वलगे वली, रहे मन मांहिं घणुं परजली ॥ ८१ ॥ ए कलयुगनी मोटी खोड, कुमा चडे कलंकद कोड, खोटा सुके साचा बले, रस नीपना अलग जो ढले ॥७२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) क्षण क्षण परें कलयुग पूर, बारगणो ते तपसी सूर; वसुहां घणो होसे विखवाद, सागर वली मेहेलसे मर्याद ॥७३॥ अउठ हाथनी दवडां देह, काले हाथ जि होसे बेह; के वरसे धरसे गाज, घणी हाण ने थोडा लान ॥ ४ ॥ श्राव्यो कलयुग चोथो काल, माय बाप ते मेहेले बाल; को कहिने न वि माने गणे, सह चाले बंदे श्रापणे ॥ ५ ॥ सादम लवता नहीं खल खांच, एके उत्तर श्राले पांच; विनय गयो ने वाध्यो मान, लख परि लोने मांड्या कान ॥ ६ ॥ क्रोध कलंकी मुहवडी थयो, उपशम रस ते नासि रह्यो, माया मांडे मोटायती, अध बलती ते नासे सती ॥ ७॥ मन कुडे मित्राई करे, कोश् न मांडे हश्मे खरे; ज्यों देखे त्यां खेरी खाय, पढे रूप थापणे थाय ॥ ॥ धर्म तणा मारग के रह्या, सात व्यसन ते सबलां थयां, करे तप घरखूणे खाय, महिल माहे मोटा थाय ॥ नए ॥ लेतां हाथ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४३) जि लहेका देय, देतां धर्म जणी धूजेय; मोटा माणस मेहेले माम, धर्म ध्यानना थोडी गम ॥ ए० ॥ पेट तणे कारण सहू रले, सूधा मारग किण नवि पले; सीदातो लंखाइ गले, जो अर्थ अचिंतो ढले ॥ ए१॥ हाट थाट ते मांड्या जाल, करे कूम ते न्हाना बाल; मोटा नगर ते गयां घटी, राय लोने कर मागे हठी ॥ ए॥ निरधारां ते निरधन थाय, उर्बल दोहल्या पेट जराय; वेद तणा ते महिमा टल्या, वीस वरसना मांटी पक्ष्या ॥ ए३ ॥ नारी हिंडे मोडा मोड, बीजं घर मांडतां नवि खोडा घणे खबेमें पामे वेस, वसे वन ने जवसे देश ॥ए॥वरसे वरसे मागे वरसात, ते कृतयुगनी मोटी वात; एक वार वरसतो रसाल, वरस सहस दश तो सुगाल ॥ ए५॥ एक वरस अणवूठो जाय, तो उर्जद . पडे जगमांड; फेरे थोडे होय करवलं, कलयुगे जोइ पारखु खरं ॥ ए६ ॥ धर्म तणी जो मंडे वात, आवी कोइ करे उपघात पापे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४) उजम अंग न माय, जिनवर जपतां आलस थाय ॥ए॥आवे निडा घणुं लडथमे, थयो उपवासी आमोपमे; देव तणां ते न गमे नाम, पूजा तणां परहां करे काम ॥एज॥ कलयुग एवो डे लागतो, आगल किशो होसे जागतो; कलयुग ठेसी करसी धर्म, ते बुटसी अनंतां कर्म ॥ एए॥ थोडी करणी लानज घणो, ते कलियुगनो महिमा जणो; कृतयुगनी मोटी मत तजु, जेहना दान तणुं नही गजु ॥ १०० ॥ सहस गj जो देता दान, एक गणुं तो लहेता मान; जुर्ज कलयुग तणुं वखाण, सहस गणुं हुए दिधुं दान, ॥ १०१॥ जे मांहे आपण उपना, धर्म तणां थानक नीपना; ते कलिकाल न बोलु दोष, महावीर ज्यां पुहता मोद ॥ १०५ ॥ जिहां अग्यार गणधर हुआ, पोढा पट्टोधर ते जुश्रा, वलि विशेषे जवू स्वामि, सालिजा राजगृह गम ॥ १०३ ॥ थूलिजा ने बहिनर सात, सती सुजता सुलसा मात, नंदिषण ने आई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५) कुमार, कालिक सूरि हुई गणधार ॥ १० ॥ महानुनाव ते मोटो यती, जेणे कलयुग वाली सरस्वती; गर्दनीबनो फेमी गय, आण्या शाक नवाणुं राय ॥ १५ ॥ देव सुरि जेणे जीत्यो वाद, कुमुद चंड जतायो नाद; बन अह जित्या नव बुझ, जित्या नगवा अढार प्रसिद्ध ॥ १०६॥ शैल सोल दह जट्ट पवित्त, जेणे गंधव जित्या जग सत्त; सत्त दिगंबर खितिचार, योगी दोई जित्या संसार ॥ १०७ ॥ एक मही पोढो प्रतिमव, एक नोई जित्यो एक जिल्ल एत्ता जित्या पट्टण मकि, श्राव्यो कुमुद वादने कजि ॥ १७॥ जहिं सीकराज जेसिंग, जीपी कीधो कुमुद कुरंग; चार जोड लीधां निसाण, पंच पंचासी वर केकाण ॥ १०५ ॥ जे साये सबला फूफार, सुहड से लीधा ईग्यार; बसें ब्यासी सीस महंत, लिधा जे बहु बिझद जणंत ॥ ११० ॥ बलद चारसे जोडी लीया, सेवक पंच बहत्तर लीया: ग्रंथ लाख पणवीस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४६ ) प्रसिद्ध, दम्म दोई लक बहुत्तर ली ॥ १११ ॥ टोडर बिरूद सुखासा लीयो, नग्गो ते वली नग्गो कीयो, जस कीरति अधिक बोलाय, देव सूरि हू कलयुग मां ॥ ११२ ॥ देम सूरिनां मोटां चरी, टाली अमावस पूनम करी; जेहने पउमावर परत, जित्यो देव बोधि किय शिष्य ॥ ११३ ॥ कुमारपाल हूर्ड जुपाल, जे जग जीव दया प्रतिपाल, मारि निवारी देश अढार, वावरतुं नही अगल वारि ॥ ११४ ॥ जेहने साहब लाख ईग्यार, गल्युं नीर पीजे निरधार; ते पण कलयुग मांहिं दुर्ज, जीवदया - नो कहीं ये J ॥ ११५ ॥ कलयुग मांहिं जगत्र जाणी, जे चेले लोडण आणी गोडी मंगण पारस नाथ, संकट पमीयां आपे हाथ ॥ ११६ ॥ जीराउलानो महिमा घणो, खंजनगर बे थिर थंजणो; सिद्धखेत्र तीरथ गिरनार, कलयुग मांहिं हुआ उद्धार ॥ ११७ ॥ वस्तपाल जगऊ जगसीह, जीमसाइ जको जम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७) सिंह; जावम नावम साह सारंग, कलयुग माहिं रहाव्या रंग ॥ ११७ ॥ हू विमल एकल युग माह्य, तेह तणां करणी कहेवाय; सांजलज्यो सहु करी निटोल,जेहनो सरस कथा कलोल॥११॥ ॥ वस्तु बंद ॥ __ लच्चि थपई लछि थपई, प्रथम युग माहिं पुफामाल तव प्रगटी, रत्नमाल जग जोई बीजे; श्री श्रीमाली थापना, एवं नाम श्रीमाल त्रीजे, चोथे जुग हवे जोईयो, जाणे बाल गोपाल; सचराचर सोहामj, नबुं नगर नीनमाल ॥१॥ ॥ चोपाई॥ नेउ सहस श्रीमाली तणां, मंदिर मोटों सोहामणां; पिस्तालीस सहस विप्र वसे, वेद पुराण अर्थ अन्यसे ॥१॥ बिहुँ बिहुं मली कस्यो. परवाह, ब्राह्मण एक तणो निर्वाह मुनिवरतणी सहस पोसाल, इस्युं नगर निरख्यु नीनमाल.॥२॥ कलयुग कल्प वृद.. अवतार, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ४८ ) वसेय बे बाना दातार, नानाविध बे ज्ञाति अनेक, वसवानो बे वडो विवेक ॥ ३ ॥ कोट मांहिं कोटीधज थोक, बाहिर ते लाखीया लोक, प्रागवाट तिहां वासे रह्यो, नीनग मंत्रि कोटीज को ॥ ४ ॥ घटयुं धन तव त्रूटी आस, महेता पूरो बाहिर वास; ब्राह्मण जणे विमासो चित, नगर मारे आगे रीत ॥ ५ ॥ मध्यरात्रे दो हिलो डुख धरे, महालखमीनुं चिंतन करे, विलनिवात इसी कथी, इणे थानक तुज नायग नथी ॥ ६ ॥ मान वात तुं मदारी खरी, जा थानक वेगे परहरी; गूज्जर देश तपो सिणगार, गांजु नगर हुसि जयकार ॥ ७ ॥ तिहां तुं पामीश धननी कोड, लधि वचने चाल्यो परहोम; जाग्यो जीनमालथी धस्यो, जातो जर गांजु वस्यो ॥ ८ ॥ नीन अंग नही एके खोड, नीने मेली धननी कोम; इष अवसर चावडो वणराज, चिंते नगर वसावुं आज ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ उहा ॥ संवत श्राप बिलोतरे, जग कमो वनराय; जोये जे जंगल वडां, नगर वसावा गय ॥ १॥ अणइलीयो गोवाली; जंगल चारे ढोर, एतां तेहज चाउडो, जे जग पाडे सोर ॥२॥ मम बिहसि गोवाली, श्रा मुज माने धीर, जिणे कारण जंगल नमु, कई हीयान हीर ॥ ३ ॥ नगर वसावा सोधिये, सुंदर सूझ गम; थाक्यो थानक जोअतां, वड लीधो विश्राम ॥ ४ ॥ ॥ चोपाई ॥ अणहलीउ तव पाडो वस्यो, वणजाराने श्रावी मल्यो; राज अह्माकं राखो नाम, तो देखाहुं शकुं गम ॥१॥ आहेडी आहेडे चमे, याणे जंगल श्रावी पमे; करडो सुणहो पायो कीम, ससलो तोहि न बांडे सीम ॥२॥ सुरडु सुणदो दिये. फाल, ससो सुंहालो न्हानुं बाल; ससलो सामो थई थरथरे, नासे करमु कुक्कर ४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५०) मरे ॥३॥ वात हुई ए वनह मकार, कोतिक जोयुं घडी बे चार; आणी सीमे आव्यो ससो, नलो नगर पुर पाटण वस्यो ॥४॥ थालेखी गढ पायो दीध, राजन मोटां मंदिर कीधा थणहिलीथाने नामे अस्युं, अणहलवामु पाटण वस्युं ॥५॥ गम गमना व्यवहारीया, जे परदेशी वख्खारीया; ते तेडी वास्या श्रावास, पायक राख्या मोटे ग्रास ॥ ६ ॥ नीन मंत्री गांनु जाणीउँ, बेटा लहर सहित आणी राज काज वहिलो वापस्यो, लहर देखि दंम नायक करयो ॥ ७ ॥ लंखे लहर लहर थापणी, वेगे गयो वंध्याचल जणी: गरथ वमेगज थट लावी, तो राजा सनमुख श्रावी ॥ ॥ सांमथली दी, मेहलाण, गज देखी रा थयो इराण; सांड. थलुं त्यां कीध पसाय, लोक जणे न वरांशो राय ॥ए॥चिहु दिशि मोहत लहरिने चड्यां, टंकसाले सोनईया पड्या; टंकसाल कीधी आपणी, राजन मया करे ने घणी ॥ १० ॥ श्री वनराज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ५१ ) दिवंगत दूर्ज, योगराज पट्टोधर थयो; योगराजनुं पतीजं आय, रत्नादित्य हू तव राय ॥ ११ ॥ रत्नादित्य रायने पाट, वयरसिंह राय बेठो पाट; चिहुए पाटे चाल्यो दूर्ज, दंडनायक ते लद रिजि दूर्ड ॥ १२ ॥ लहरि पुत्र हू साहस धीर, वरे वडो वीरातन वीर वीर नामे बेटो ऊबरे, पाप जणि पगलां नवि नरे ॥ १३॥ वीरकुमर गेहमीच मकार, वीरमती परणाव्यो नार; राज काज बांब्या व्यापार, मन सुद्धे मांड्यो व्यवहार ॥ १४ ॥ उजय काल परिकमणुं करे, पूजा ध्यान धर्मनुं धरे, न करे प्रेमे पियारी तात, श्री नवकार जपे दिन रात ॥ १५ ॥ वीरमती रहे प्रीयने देज, अन्य दिवस पोढी बे सेज, मन चिंते मुऊ प्रीउनं मान, पण घर सुनुं विण संतान ॥ १६ ॥ श्रावी निद्रा रयपि मकार, सुपन लदे वीरमती नार; जाणे देवें आल्यां कमल, में पूज्या तीर्थंकर वीमल ॥ १७ ॥ जागी सुपन लही ते सती, प्रिय यागल या मलपती; कह्युं सुपन तव हरख्यो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५१) कंत, श्रम कुल पुत्र हसि पुण्यवंत ॥१॥ उत्तम गर्न उदर श्रवतस्यो, दश मसवाडा पूरो धयो; जाणे जिनवर पूजा करं, देउल अवस पड्यां उधरूं ॥ १५ ॥ नक्ति करुं गुरु गुरुणी तणी, संतोषू सवि सोहासणि; जाणे जाउं शेजूंजे जात्रा जाणे देवं दान सुपात्र ॥ २० ॥ जे जे कख्या मनोरथ अंग, ते प्रिय पुहचाड्या मन रंग; पुत्र प्रसविउ हू जयकार, आव्यो ज्ञाति तणो सिणगार ॥१॥ जोसी लगन जोईजे जाण, उदयवंत मूरति जाण; ससिहर दशमे घर थापणे, उच्च गम गुरु गुरुयम नणे ॥२॥ क्रूर ग्रह सवि नीचे गय, उत्तम उच्च पड्या ने मांड; बठे मंगल जमणो राहु, क्यरीने सिर डाबो थाय ॥ ३ ॥ लगन मुहुर्त वेलाने मान, के गकोर के होसि प्रधान, संतोष्यो जोसी घर गयो, जनम योग करम हितु कह्यो ॥२४॥ .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५३) ॥ ढाल ॥ लोकीक पवामा रासनो॥ ए चाल ।। लावे रे लक्ष वधामणां, करे जामणां जसा कुंअर काज तो; एवी दीये आसीस तो, होज्यो चडतलो प्रताप तुह्म राज तो ॥१॥ जुई जुलं विमल नाम हूजे, जुन जुर्ज रे हु त्रिभुवन जाण तो; जुर्म जु नाम विमल व्युं, एतो वागिला जागिला ढोल नीसाण तो ॥२॥ जुठ जुर्जन ॥ ऊमी गूमी पटोलडो, त्राटले तोरण बांधियां बार तो; नाटिक नवरस खेलीये, एतो नाचे ने न्हानी अपनर नार तो ॥३॥ जुन जुन ॥ फश्वर दीजे फूटडी, एतो कापडा केटलां काकीने रेसि तो, अमीय करो एणे मांडवे, एतो सुंडले साजण फोफल देसि तो ॥४॥ जु जुजे० ॥ करि वडी पाडी वांकमी, एतो आंकमी थालड़े आंगले रंग तो वेढला खाली आलडा, एतो गालडा ला. लमा चाहिये चंग तो ॥५॥ जुर्म जु०॥ माउले मोकली मोजडी, तोरे जडी रतन ते टोपी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) उत्तंग तो; टोलमो त्रिजुवन मोहीऊं, एतो जोश्ळं सोहिऊं अदजुत अंग तो ॥ ६ ॥ जुळे जुर्ब० ॥ जंग मांमिश्रा जग जागता, एतो मागता मनह मनोरथ पूर तो; नोजन साजन सामटां, एतो सामटा केलव्यां कूर कपूर तो ॥ ॥ जुड़ जुर्ज० ॥ गुल घृत घर घर लाहीये, एतो वाहीये अन्न अवारी आज तो; पुत्र जनम राय जाणी, जलो वा. णी वीरने विमल घर आज तो ॥ ॥ जुर्ड जु० ॥ लोक तणा लद जोसे, एतो नलु सोहसे रेवली अमलु थाज तो: वीरनो पुत्रज बोलीआ, एतो श्रावीया राय करे अगाज तो ॥ ए ॥ जुर्ज जुर्जन ॥ ॥ वस्तु बंद ॥ पुत्र जनम्यो पुत्र जनम्यो, वीर घरे विमल, ढम ढम ढोल ते ढमकीश्रा, पंच शब्द नीसाण गजे, नरवर नाटके खेलिये; जरह जेद वर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५५) जेरि वजे, जनम लगे रलीधामणो; राजयोग तेणे गर, मंत्रि मुकुट मोटो हुसी, कश्को मोटो राय ५॥१॥ ॥चौपाई॥ ___ खंग खंड मति ने निर्मली, जणतां गुणतां संपत वली, मुनि लावण्य समयची वाण, एटले त्रीजो खंग वखाण ॥ १ ॥ सर्व गाथा ॥ १६ ॥ ॥ इति पंडित लावण्यसमय गणि कृते, श्री विमल मंत्रि प्रबंधे नवखेमे, कलीकाल वर्णने, उत्तमोत्तम गणधर, प्रजावक, पुरुष नामोच्चारे, नीनग लहीर वीर चरित्रे, विमल जन्माधिकारे, ॥ तृतीय खंड संपूर्णम् ॥ ॥अथ खंग चोथो॥ ॥ चोपा॥ दिन दिन वाधे विमल कुमार, थहनिस अंग विमल आचार; हरखे वली मा हुलावती, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) विमल वाणि बोले नाखती॥१॥ विमल कुमर पोढे पालणे, मा हीडोले उसट घणे; हालरडे हुलावे बाल, खिण खिण श्रावी करे संजाल ॥१॥ बीज तणो जिम वाधे चंद, वाधे विमल हीय श्राणंद; जे बोल्यां लक्षण बत्रीस, विमल अंग सोहे निसदिस ॥३॥ सप्त रक्त उन्नत मली, सूक्ष्म पंच दीरघ तिम वली; त्रण विपुल ने त्रण गंजीर, लक्षण बत्रिसो ते ३ वीर ॥४॥ हाथ पाय तल लोचन अंग, अधर होठ बोल्या एकंत; जीव्हा लातु वीस नख कह्या, सात रक्त सामुधिक लह्या ॥ ५॥ कदा कुख नाक ने हिलं, खंध ललाट सरीसुं कह्यु; उ उन्नत जायगनो धणी, ए वाणी सामुजिक तणी ॥ ६ ॥ बाहु नेत्र ने अंतर जानु, नाशा घण अंतर प्राधान; पंच दीर्घ सामुद्धिक कहे, ते जसवाद अनंतो बहे ॥७॥ अंगुली पर्व दंत नख वाल, सुक्ष्म देहि चंब सुकमाल; लक्षण पंच. जिहां सिर होय, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) सामजिक सोजागी सोय ॥॥ जंघ किंग ग्रीवा खघुमान, पृथ्वीपती ते हुए प्रधान; सत्व नानि ने स्वर गंजीर, सामुजिक ते बोल्यो धीर ॥ ए ॥ मोठे मस्तक विपुल ललाट; हृदय स्थल पुहढं ते पाट; सामुधिक बोले सनमुखी, ते नर सदा सुमोटो सुखी ॥१०॥ कलश कमडल कमल मयूर, पुःफ वृक्ष वारि धनुपुर; श्रष्टापद अंकुश अनिराम, स्वस्तिक वृषन सिंह श्रीदाम ॥ ११ ॥ श्रीगृह आरीसो गिरी बत्र, ध्वज चामर जव वाव पवित्र, कमल मयूर सुक साथिळ; काबब शंख शुक्ति हाथी ॥ ११ ॥ तोरण तुरी थाल अनिषेक, सर कुंडल श्रीवछ विवेक; वज्रबंधने नीवीबंध, बोलीयां ऊरध रेख प्रबंध ॥ १३ ॥ हाथ पाय रेखा जे तणी, एणे श्राकारे दीसे घणी; जो बत्रीसे पूरी नंग, नर लक्षण बत्रीस सुचंग ॥ १४ ॥ पहिला लक्षण शरिरना हुआ, था बकण रेखानां जुयां; बत्रीसे बोल्या बहु नेव, बकण प्रीडो वो विद ॥१५॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५७) ए लक्षण सामुजिक तणां, जो शरिरे लहियें थोमा घणां; तोहि ते नर नही सामान, जश पेसे पृथ्वीपति कान ॥ १६ ॥ सिसनुं मंगण मुख जोईये, मुखमंमण नाके मोहीये; तेहथी निरतां निरखो नयण, चंद सुर बे सरिखारयण ॥१७॥ पहिळु जोश्ये वपुर्नु वान, तेह पाहे तनु तेज प्रधान; तेहथी सर बोलि सार, स्वरथी सत्व जगत्र थाधार ॥ १० ॥ राते लोचने रामा घणी, पीले पदमा पामे धणी; लंब बाहु ठकुराई लहे, शरिर पुष्ट ते सुखे गहगहे ॥९॥ हृदय विशाले जोगी नीलो, मस्तक मोटे जूपती जलो; पहली कटी ने पाय विशाल, बहु बेटा सुख सदा रसाल ॥२०॥ अंग सनेहि कही सोनाग, दंते सारं जोजन नाग; बंब सनेहि सेज सुकमाल, चरण सनेहि चलण चुसाल ॥१॥ काम पखें जे काग पाण, वाहन विण क्रम कोमल जाण; वाणि सरस वयण उच्चरे, तेनुं नॉग्य नुवन वीस्तरे ॥२॥ पुरुष समी जल कुंमी जरी, जोजे जन बेसारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) करी; प्रोण नीर जो उळ थाय, मानोपेत पुरुष कहेवाय ॥२३॥ गुणतां जो पहोंचे देह तणां, अहोत्तर अंगुल थापणां, शास्त्र तणो साचो संकेत, बोल्यो पुरुष प्रमाणोपेत ॥ २४॥ सामुडिकनां लक्षण सां, दीसे अधिक अंगे अनिनवां; दाखित दया मया नही पार, विमल कुमर ते गुण नंमार ॥ २५ ॥ आधा ससिहर सरिखं नाल, पुस प्रमाण लोचन विशाल; कम. लोदर सुंदर दृढ खंध; सरला बाहु तणा बे बंध ॥ २६ ॥ काला कुंतल कोमल काय, जामी जंघ पटोलां पाय; कोट खंधने यावी अमे, वांकी जमुह धनुषस्युं नडे ॥ २७ ॥ सरली नासिका दीवातणी, दंत पंति किर मुगता मणी; राजी जीह अधर गुण घणो, जाणे रंग प्रवाली तणो ॥२॥ पूर्ण चंद्र अधिको मुखवटो, कटिनो लंक ते दीसे कटो; लंब कर्ण ने सोवन वर्ण, जिहिं युगतां पदेस्यों आतरण ॥२ए ॥ बालक बाला सरिसो रमे, पुदतो वरस वेगे पांचमें; किस्यु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) किजे मुरख पुत्र, विद्या विण न रहे घर सूत्र ॥ ३० ॥ विद्या रुप कश्पां कहि, विद्या धन बार्नु डे सही; चोर चरम न खेई शके, नवि सीदाये विद्या थके ॥३१॥ गाम नगर पामे परदेश, विद्या माने नगर नरेश; विद्याथी वाधे जसवाय, विद्या सवि संयोग उपाय ॥ ३१ ॥ नृपथी मोटो विद्यावंत, गकुर गमजि मान लहंत; विद्यावंत जिहां जिहां जाय, तिहां तिहां मान घणेरां थाय ॥ ३३ ॥ जेहने दूजे विद्या गाय, तेहने नही अहिगुमाय; जां जीवे तां दूळे सही, मुां पनि विसूके सही ॥३४॥ पांच वरस बेटो लालीयें, दस निशाले संसालीये; वरस सोलमें खंधे रह्यो, मोटो मित्र समायो कह्यो ॥ ३५ ॥ करो सजाई घर थापणे, जिम बेटो निशाले लणे; मदूरत पूज्युं पंमित पास, वडे महोछव मन उदास ॥३६ ॥ तेडी महाजन दी, मान, थारोगावी थाप्यां पान; जस्यो खूप खुणालो खरो, वीरे कीयो काको वरो ॥३॥ तुरी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पलाणी थयो असवार, लोजक जाट करे जयकार; माथे पाटी रूपा तणी, कर खडी सोवन लेखणी ॥३०॥ गाये कामिनी करे टकोल, विदस्यां कुंअर तणां कपोल; धरीयां बत्र चामर बिडं पास, पुहता पंडितने श्रावास ॥३ए ॥ पहिलो सरस तिने कस्यो जुहार, कंठे उठ्यो एकाउलिहार; पछि लागे पंमितने पाय, मागे विद्या विनय पसाय ॥ ४० ॥ मेहेल्या खिरोदक दस वीस, पंड्याने मन दुइ जगिस; पंड्यो प्रथम नणावे जले, नीशाली जीवने सले ॥४१॥ फूली खमीथा खोला नरया, निशालीश्रा अवर परवरया, विद्यानो कीधो आरंज, जोई मुहुरतना थिर थंज ॥ ४२ ॥ पुष्य नक्षत्र दसमी गवार, लग्नचराचर अंशविचार: ससी दशमो दशमो रवि योग, नही जरणी जमानो जोग ॥४३॥ विद्या आरंजी घर गयो, दिन दिन जणवा ओच्छव थयो, सकल सूत्र सीख्यां सवि अंक, वहेला लीधा लिपिना लंक ॥४४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) ॥ तुजंग प्रीयातर्क बंद ॥ तरि हंस लिपी चूत अतिमित्त, यक्ष राक्षसी निको मीनडी, नागरिपारसी बारणकी लाम, लिपमेल देवी सींधवी यावनी तुरको जावमी मालवी ॥१॥ ॥चौपाई॥ जाणे संस्कृत पाकृत सुधी, जाणे शोरसेनि मागधी, पैशाची अपनसी वली, एटले ए नाषा मली ॥ १ ॥ नारि पुरुष दय गय वृष उत्र, कुर्कट कामिणि मणि सुपवित्र; दंड खडग सवि लक्षण लहि, विद्या वास विचारी कहि ॥॥ चक्र शकट अने गुरु व्यूह, जाणे रमी रमामी जून, राजनीति जाणे निज धर्म, जाणे कनक रूप सिधि कर्म॥३॥ मंत्र तंत्र औषध जे जडी, जाणे डाकण शाकण नडी;जाणे नारी नंगी नोगवी, जाणे जे सेवक जोगवी॥॥ जाणे शयन विलेपन वास, जाणे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६३) वैद्यक वचन विसास; जाणे नाच गीत नवरंग, जाणे नाद नेद सपतंग ॥५॥ पहेरि जाणे जूषण वस्त्र, जाणे सवि अन्यासी शस्त्र; जाणे अन्न उदक केलवी, पंथ लाख प्री नव नवी ॥६॥जाणे युद्ध शुरू साचवी, जाणे काव्य कथारस कवी; जाणे नगर मान खंधार, जाणे वणीग कला व्यापार ॥ ७ ॥शाक पाक परि नव नव खही; जोजन सतर जद ते कही; जाणे जन थंनी जन वाद, जाणे अवर उतारि नाद ॥७॥ जाणे दान मान उचित, जाणे तर्क सकल साहित्य: जाणे जे रोप आगम, जाणे नीर करावी गम ॥ ए ॥ जाणे गज घोडा खेलवी, जाणे जे परे परे पववा; जाणे पुप्फ तणां विज्ञान, जाणे सकल समारी पान ॥ १० ॥ जाणे जे वरते चित्राम, जाणे रुप कला अनिराम: जाणे त्रसश् लीलावती, जाणे गणित कला जे हती ॥ ११॥ गुणाकार ने नागाकार, जाएया खोक तणा व्यापार, जाणे यंत्रकला जसं तरी, एटने कसा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) हुई बहोतरी ॥ १५ ॥ जाणे विनय विवेक विचार, जाएया उत्तमना आचार; जाणे नगर वसावी करी, जाणे वरती वीघां जरी ॥ १३॥ पेर पेरनां प्रीयां पकवान, डे लघु वय पण हश्ये सान: पुरुष तणी ते बहोतेर कला, प्रीव्या सकल शास्त्र आमला ॥ १४ ॥ ॥ दूहा ॥ विमल कुंअर क्रीमा करे, रंजे नव नव लोक; नगर मध्य जिहाँ निसरे, तिहां तिहां नरवर थोक ॥१॥ वीरे वनीता प्रिडवी, सुतने सुंपी जार; आपण दिदा आदरी, सद्गुरु सरिस विहार ॥२॥ ॥ वस्तु बंद ॥ वीर नरवर वीर नरवर, विमल घर जार; थिर थप्पी दोये सीखडी, अवनी व अन्याय टाले, पाप कर्म सवि परिहरे; करे पुन्य जिन भाष पाले, घर घरणि मोकलावी करी, वीर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६५) मंत्रि लीये दीख, करे विहार विदेशमे, पाले सह. गुरु सीख-पाले सहगुरु सीख ॥ १॥ ॥दूहा ॥ दिन दिन दिसे दीपतो, जिम उदयाचल जाण; विमल पेखी वयरी तणां, पोढा पडे पराण ॥१॥ वली विशेषे विहिवसे, वहेलो विमल प्रधान; रखे ते राउले वापरे, ब्रह्म टलशे अनिमान ॥२॥ एक वयरी विष वेलडी, ए बेहु त्रिजि व्याधि; जे उगती दीये, तो सिर हुए समाधि ॥ ३॥ वीरमती विझलं सुणी, बेटा रख्खण कजा; पट्टण परहुं महेली करी, पुरती पीयर मज ॥ ४ ॥ ॥ चोपाई ॥ वीरमती तव पिहर गइ, संपति सघली पंवे रही, साथे बेटों विमल कुमार, जइ कीधो मावला जुहार ॥ १॥ आगे जाई घर श्रनाथ, आवी बहिनर बेटा साथ; मोटोपणमाहिं सही रखे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६६ ) अन्न पान पूरां तो मले ॥ २॥ जां पोते हुईं पुण्य प्रकास, तां घर लखमी लील विलासः पाप तो जव पासो पडे, तव घर कूरी कुकस मे ॥ ३ ॥ रह्यो विमल मास्युं मोसाल, चारे चंचल वर वाल इणे अवसर देवी यंत्रीका, आव्यां बे आरास थकां ॥ ४ ॥ नव यौवन नवलो संयोग, देखी देवी वंबे जोग, कुंअर कहे परनारी नीम, अणपरणी कहो मानुं कीम ॥ ५ ॥ शील लगे तूठी बीका, त्रण वर दीधा पोता थका; बाण प्रमाण ते गाउ पंच, दय लक्षण तां वक्ष प्रपंच ॥ ६ ॥ नवल रूप निरतिं निमलां, श्रीजी अद्भुत अक्षर कला, वर देइ देवी संचरी, विमल वधावी विद्या खरी ॥ ७ ॥ ककुआं फल नवि लागे खंब, सोने कि नवि लागे संब; माणिक मेल न लागे लगार, सीलन मुके विमल कुमार ॥ ८ ॥ सील तणो महिमा मन वस्यो, आव्यो मंदिर दइडे दस्यो; जोज्यो पट्टणि एणे प्रस्ताव, वात हुइ बे सरस स्वभाव ॥ ए ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वसे व्यवहारी श्रीदत्त, तेह तणे घर काकुं वित्त; श्रीबेटी यौवन वय हुश्, जोसी विवाह मेलो जः ॥ १० ॥ जोसी नयर घणे श्राफले, मलता वरगनो वर नवि मले; जोसी कहे सुण महेता वात, लहिर वीर जे जग विख्यात ॥ ११॥ तेह तणो ने बेटो विमल, पदम सरोवर जेवू कमल; तेह तणी जे जनमोतरी, मुफ टिपणे लखी डे खरी ॥ १५ ॥ ते सरिसो विवाद श्रादरो, वर मोटो पृथ्वीपती करो; ते सरिसो मलतावस मले, मन चिंतव्या मनोरथ फले ॥ १३ ॥ रहे गेहमी घर माउला, जाउँ तुझे तत्र उतावला; वहेला वहेले वहिलिया करया, सुणवर ते सरिसा जोतस्या ॥१४॥ बडे पीश्राणे रथ संचरे, खेत्र पास देवि स्वर करे; सुणवश कहे वर ठे हां, पण जश्ये उतारो डे जिहां ॥ १५ ॥ घर माउल तणे जव गया, वीरमती व जांखां चयां; आगे यहां रह्यां , उखे, रणी को आव्यो होय: रखे ॥ १६ ॥ मन विण अप्लाषण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६०) दिये घणां, वीरमती मेले बेसणां; कहो विवहारी केहि काज, तुझे पधाख्या आणे राज ॥ १७ ॥ पुत्र तुमारो विमल कुमार, होसे ब्रह्म बेटी नरतार; वेगे विवाह मेलो आज, श्रमारे तुह्म सरिसुं काज ॥ १७ ॥ ॥हा॥ पान अमारे पछरे, रंग तुझे न दिवाय; वीरमती मुख ए इस्युं, अवलु कथन कदिवाय ॥१॥ सोणगंठि सेठे सबल, बंधी बोले ताम; हवे मदरत वेला टले, निश्चे कीजे काम ॥५॥ खेत्रेथ डे वर माउला, पूज्या विण किम होय; वेगे वाहण जोतरी, त्यां पहोंचे सहू कोय ॥३॥ वादण देखी श्रावती, मामा मन चिंतेश को खेवा श्रावे किशं, कारण कडब तणे ॥ ४ ॥ जोजन करता मानला, दीग खेत्र मकार; पासे श्रावी परगुणा, पढे विनय विचार॥५॥जे तुझ घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६ए) जाणेज , ते सरिस्युं अह्म काम; ते तेडो उतावलो, विमल विमल जस नाम ॥६॥ ॥ चोपा ॥ साद करे मामा मन हेज, कडब मेसी श्राव्यो नाणेज; पमखो मामा में सिग नरी, था, कलस चडावी करी ॥ १ ॥ श्राव्यो विमल कुंअर मलपतो, जाणे सिंह गुफामांहिं इतो, उलट नर आलिंगण मल्या, विवाह मेली वेवाही वक्ष्या ॥॥घर माउल गया तेणि वार, नाई बहिनर करे विचार; विवाह विमल तणो किम हुसि, घर जाणेजो किम परणसि ॥३॥ श्रादि वयर मामा नाणेज, थागे एवां बोल्यां हेज; जाणेजो म आणज्यो घरे, जो मामा सुख वंडे सरे ॥४॥ बहिनर बंधव मन ओलखे, नाई मांहि रही ते जखे; एता दिन रलीयां ते फोक, नाई थकी नला ते लोक ॥ ५॥ ज्याँ धन त्यां सहुँ श्रादर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (30) करे, धन विण जाई बेहा धरे; वरवी बहिन जणे जाखडी, धन विण परणाववा आखमी ॥६॥ जहिये धन सांपडसे मुऊ, तहिये पुत्र परणाविस तुऊ, श्म बोली वीरमति मात, जिम नवि लाजे तारो तात ॥ ७॥ ॥ वस्तु ॥ कृपण सरज्या कृपण सरज्या, सवे धनवंत रयणायर जल खार पण, कमलनाल कंटके नरिश्र; चिंतामणि पाषाणमें, कल्पवृक्ष काठमें करीय; चंछ कलंकी अवतरयो, सूरतणे सिरताप, विमल दरिदे दोखि, विहि वलगाडी पापविहि वलगामियां पाप ॥१॥ ॥ चोपाई॥ _ विमल प्रजाते गयो निज काम, गोरु चारे सूने गाम; दर देखी खोसी लाकडी, जाये पाधरी नवि वांकमी ॥१॥ धव धव ढलीओं पागं कीध, प्रगव्यो कनक कलस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७१) ते लीध; विमले विरमती कर दीध, मन चिंतवे मनोरथ सिद्ध ॥२॥ खेम खंड मति निर्मली, श्रोता सांजलज्यो ए नली; विमल मंत्रिने रासे जाण, एटले चोथो खंग वखाण ॥३॥ सर्व गाथा ॥ १०१॥ इति पंडित लावण्यसमय गणि कृते, विमल मंत्रि मनोहर प्रबंधे, नवखंडे विमल लेख. शाला करण, अष्टादश लिपि, षट् नाषा, ६४ कलानिधान, ३५ लक्षण विवरण, मातुलगृह गमन, विवाह मेलन. लब्ध निधानाधिकारे, चतुर्थ खंम समाप्तम् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (R) ॥ खंड पांचमो ॥ ॥ चोपा॥ वीरमती लागी हरखवा, लिथा साथि कन्या निरखवा; जे डाह्या लक्षणना जाण, सामुजिक बोल्यां थहिनाणा ॥ १ ॥ चाल्यां अति श्रांमबर करी, पुदता पट्टण श्रीदत्त घरी; निरखे कन्या- वली रूप, जो कन्या बकण सरूप ॥२॥ ॥ हा॥ चंवदनि चंपक वनी, निरमस नयण विशाल; रामा राता अधर जस, संपति सुरक रसाल ॥ १॥ अंकुश कुंडल चक धज, मंदिर कुंजर कुंज; बत्र कमल हय जास कर, राउ तणे. घर रंज ॥२॥ जस कर रेखा रुथड), तोरणगढ आकार; वरि श्रावी, कुलदासने, राणि राज दूधार ॥३॥ पामे पति.नरपति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) जलो, पुत्र जणे ते सूर; जस नारि कर निर. खीये, रेखा बत्र मयूर ॥ ४॥ मृग नयनी मृग कंधरा, मृग पेटि सुकमाल; हंस गमणी सा सुंदरी, नूपतिने घर जाल ॥५॥ जस सिर केस सुललित हुए, मुख मंगलने मोड; दक्षिण वली नाजी वली, पति पामे विण खोम ॥ ६ ॥ जेह कर लंबी आंगुली, जेह सिरलंबीवीण; याय घणुं वबल सहित, घर धन सहज प्रविण ॥७॥ कृष्ण सरिखी सामली, गोरी चंपकवान; अंगवदन ससनेहलां; जीले रंग निधान ॥ ७॥ कन्न कमलं. के पिंगली, देह कंति जलंकत; मणि माणिक सोना तणां, घणां श्राजरण लहंत ॥ए। हसतां तिलवट साथी, जे नारिने थाय; गज रथ घोडा प्रीय घर, सदसगमे बंधाय ॥१०॥ माबे पासे ने गले, लंबण हुये थणेश, कश्मस तिलक जे कामिनी, पहेलो पुत्र जणेश ॥ ११ ॥ अंग अल्प पर स्वेद जस, अक्ष्प रोम सिर जास; निभा जोजन थोडला, उत्चम बकप तास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) ॥ ११ ॥ विनयवति ने कुलवति, शीलवति ने सुविचार, काके पुण्ये पामोये, कलावती घर नार ॥ १३ ॥ साथल कदल थंनमय, कर चरणे नही रोम; विपुल गुह्य मणि गूढ जल, निलवटि श्रको सोम ॥ १४ ॥ कटि लंकी उन्नत इय, पुष्टु पश्चिम नाग; नारि इसी घर थादरो, जिम लहो लखगी लाग ॥ १५॥ साथल होठ पयोधरे, रोमराय घण हुँत; जस मुख पलीए पांगरं, वहिलो कंत हणंत ॥ १६ ॥ जाडी जंघा जेह तणी, के विधवा के दास; के दारिति उखणी, रामा ह्रदय विमास ॥१७॥ ॥ चोपाई ॥ जेहने पूंठे हुए आवर्त्त, ते सारे जरतार महंत; नाजितणा आवर्त्त विचार, माने देव समो चार ॥१॥ कटि आवर्त्त हुए जे तणे, ते बांदे हीमे थापणे; बोली बाला त्रिहुं प्रकार, परखीने परणो संसार ॥ ५ ॥ लंब ललाट उदर जग जास, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५) ससरा देवर (अने) वर विणास; सामुजिकनी माने शीख, के बंडे के पडसि जीख ॥ ३ ॥ लंब ललाट ससुरो संहार, लंबोदर देउरने नार; लंबे जग पति जाये मरी, राक्षस रूप नारी श्रवतरी ॥ ४ ॥ लंब होठ जीह कालो कुरो, पीली श्रांख साद घोघरो; अति गोरी अति काली नार, वरजे ब माणे संसार ॥ ५॥ हसतां गाले खामा पमे, रामा रंग रमल ते चडे; चालंतां नुं कंप अपार, कामिनि वयर तणी करनार ॥६॥ पाय तणी वचली आंगुली, टुंकी नूमिसाथै नवि मली, ते जो टुंकी उन्नत रहे: नर्ता नारि अनेरो लहे ॥ ७॥ अंगुठा पासे आंगुली, उन्नत जूमि न फरसे वली; कुमरीपणे जारज जाणेह, यौवनवय माणस संदेह ॥ ७॥ अति ऊंची अति नीची वली, यति जाडी ने अति बंसी; अति.गोरी थति काली नार, ते अंगण श्रापणे. निवार ॥ एकाक अंघा नारि मम राख, घोघर सर ने पीली धाख; जो पति गाढो जूने . .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६ ) थाय, मारे दश मसवाडा मांझ ॥ १० ॥ अंग अघोर नाक वांकरूं, पग बापरा मुख सांकऊं; ऊभी रद्दि जिसि त्राजुई, वनिता वयर काज घर हूई || ११ || पीलुं वदन देह मुंखरं, जाणे रोमरायनुं घमधु राय तणे घर जाइ होय, दासपणुं पण पामे सोय ॥ १२ ॥ वदन माने जोज्यो गुझ, गुह्य सरिखां नयां बुक; जिस्युं नक्र इस्यो आचार, हस्त बाहु क्रम जंघ विचार ॥ १३ ॥ करने माने पायनो रंग, बाहु माने पायनो जंग; हृदय स्थल सरिखो सिगार, सत्व माने पामे परिवार ॥ १४ ॥ श्रति लांबू ने अति कूबरुं, अति जाऊं ने श्रुति शंककुं; यति गोरु यति कालो वान, ए व जग दोजागी मान ॥ १५ ॥ काब पुंठ जिस्यो गज खंध, यति संकोच पद मनो गंध; यति उन्नत ने वृत्ताकार, ब जग शुत्र बोल्यां संसार ॥ १६ ॥ लांबे दांते लाहमी मली, काक स्वरा ने बांबली, हाथ पाय टुंटी पांगली, परण्याची परणी नली ॥ १७ ॥ चोख जंगि For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७७) चंचली चीपमी, सामिणिसं बणि सुंखिणि समी;नाई विण घर लुंडा तणी, नारि म थाणिश ते निर्गुणी ॥ १७ ॥ हमहम हसे लुंग परे जसे, डोले डारे चुंबडि धसे; लंपट लोक न आणे साज, ते परएयानु केहुं काज ॥ १ए ॥ हीण खीण दीण दासना, ते अपलक्षण नही आसनां; जे जे लक्षण नारि तणां, श्रीने अंग वसे ते घणां ॥ ५० ॥ कदली थंज जंघ जुअली, दंता दीपे दाडिम कली; पुष्टा गाल लाल आंखमी, राता अधर मधुर लाखमी ॥१॥ हरि लंकि हीडे मलपती, ते गज हंस हराव्या गती; पे रंजा के रोहिणी, के साणी के मोहिनी ॥२॥ अमरी कुमरी के उरवसी, नागलोकनी नारी इसी; जोतां रुप न आवे पार, उर पदेस्यो एकानलि हार ॥ २३ ॥ वेणीदंग लंब लहखहे, रूप ईजाणी. पासे रहे; काने जडित खरी खिंटली, जबके काल हाथे वींटली ॥ २४ ॥ नामे पनोति श्री सुंदरी, सामुडिकने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (3) लक्षण नरी; पुढे बोल जिके श्राकरा, ते ते उत्तर आपे खरा ॥ २५॥ गीत नाद ने नाटक कला, जाणे धर्म नीती निर्मला; मंत्र तंत्र जाणे विज्ञान, जाणे ताल तणां ते मान ॥१६ ॥ जाणे जचित कला जे चित्र, जाणे वचन नेद वाजित्र; जाणे ज्ञान क्रिया जे दंन, जाणे जे वरते जलथंज ॥२७॥मेघ वृष्टिना जाणे मर्म, जाणे जल थाकर्षण कर्म; वन रोपन गोपन श्राकार; जाणे जे जे धर्म विचार ॥ २० ॥ शकुन शास्त्र जाणे गुरु थकी, जाणे वाणी जे देवकी; जाणे वस्तु वधार। वान, जाणे मधुरां रांधि धान ॥ २५ ॥ जाणे सोवन रुपा सिधि, थापे उत्तर हैडा बुद्धि; जाणे मंडावि प्रासाद, जाणे करी वितंडा वाद ॥ ३० ॥ हय लक्षण सामुजिक जणी, जाणे जे गति लीलातणी; जाणे तेल सुगंधी करी, करे परिक्षा ते गज तुरी ॥ ३१ ॥ सारेपासे रमतां रंग वडो, जाणे जे खुंदी गरवमो; कर खाघव वेतो पडवडी, नोजन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ () विधि जाणे चडवमी ॥ ३५ ॥ जाणे वणीक कलाना जेद, जाणे पहेरि नव नव वेष; नयणे संज्ञा सघाल लहे, मुख मंमन वर मंमन लहे ॥ ३३ ॥ गुंथे वेणे फूल फूटडां, जाणे कथन कही वांकडां; आणे युक्ति अनेरा मांड, उत्तर देतां वार न लाय ॥ ३४ ॥ देश देशनी नाषा नणे, वैद्यक कला लदि महापण घणे; जाणे लोक तणा व्यवहार, जाणे पहेरी सवि सिणगार ॥ ३५ ॥ लदे हरियाली अंक अनेक, जाणे वीणा नाद विवेकः पतिरंजन अंजनना योग, चौरासी श्रासन संजोग ॥३६ ॥ जाणे बाल चाल हेलवी, जाणे करि कुंकुम केलवी%B जाणे सोवन वर्ण विशेष, विपि अष्टादश लहे श्रशेष ॥ ३७॥ लामी चौडी ने सोरठी, हाडी मयोधी। मरहठी; कर्णाटो काडि डाहली, लिपि मागधी ससी सिंहली ॥ ३० ॥ खुरसाणी गूजरी कुंकणी, हम्मीरी परतीरी जणो; माल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) वणी लिपि लहे विचार, बोली लिपि एटले अढार ॥३ए॥ चोसठ कला नारिनी जणी,जाणे अधिक वली ते घणी; सवि पारखां लदे बोलतां, पहेरे वस्त्र धंगे सोहतां ॥ ४० ॥ करे वात डाहिम आपणी, जाणे पंच काव्य ते जणी, जाणे चूर्ण सकल अनिधान,जाणे पर उतारिमान ॥४१॥जाणे माकिण शाकिण ग्रही, जाणे नुत प्रेत निग्रही; जाणे दोहल्युं हुये जेहथी, जाणे गोरस गोली मथी ॥४२॥सवि व्यवहार सकल व्याकर्ण, स्वजन वर्ण सेवकनां नर्ण; नारितणां जे वर्ते धर्म, ते ते जाणे सघला मर्म ॥ ४३ ॥ नैरव पंचम नाट वसंत, मेघराग श्रीराग हसंत; अकेकानी बन नार, ते उत्रीसे नाख विचार ॥४४॥त्रण ग्राम रस सत्त सरंग, लहे ओगपीस मूर्बना चंग; तान मान उंगणपंचास, श्रुति बावीस तणो अज्यास ॥ ४५ ॥ जाणे ताल कोमि उपन्न, पंच वाद्य वसुहा व्युत्पन्न करे परिक्षा जिम जिम कसी जिहां जिह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) हुइ तिहां तिहां तिसि ॥ ४६ ॥ के बाला त्रिपुरा मुख वसी, मूरतिवंती सरसती हसी; जे वलतुं पुढे बालिका, न हुए उत्तर सहु दे तालिका ॥ ४ ॥ करी निरीक्षण हरख्यां हीये, कर सूखडी सबल करि दीये; अति मान्या सजनस्युं मदयां, लेइ लगन घर पाबा वल्या ॥४७॥ श्रावी विरमतिने कडं, त्रिभुवन रूप एक थयु; जे लदाण सामुहिक तणां, (ते) ते दीसे अनोपम घणां ॥ ४ ॥ अवगुण एक नही श्रासनो, महिमा वली घणो वासनो; रत्नयोति पाटण, नाम, विनय विवेक तणुं ज्यां गम ॥५०॥ जे जे ब्रह्म साचवणी करी, ते जाणे परमेसर परी; फोफल फन पान पकवान, वाट्या देह तणां अह्म वान ॥ ५१ ॥ करो सजाई वीवा तणी, गहूं पलाले सोहासणी; पापम वडी करियां पकवान, साल दाल सवि सोध्यां धान ॥ ५॥ घाल्या मंडप वेगे विशाल, आएया घणा सोनाना थाल: मेट्यां आसन ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) श्रामणी, पानी मांडी मांडणी ॥ ५३ ॥ गम गम गश् कंकोतरी, आव्या सजान सवि मुंद. तरी; बेठ पांत खांत वेवडी, हाथ पाय धोया धुंसटी ॥ ५४॥ पहेला मेट्या मेवा बहु मुलि, खाजां लामु पडे कूरलि; दाल सुंदाली घृतनी नाल, सोल सालणांनी बांधी पाल ॥ २५ ॥ श्राव्यां घोल नरियां माटलां, नरि नरिने मेट्यां वाटला; वार्या कर करंबे करी, कर धोई जल कारी जरी ॥ ५६ ॥ पान फूल केवडो काय, सजान कीजे टाढा हाथ; चंदन चूया ने चांपेल, मंडप रंग वहावी रेल ॥५७ ॥ खुंप नों खुणालो खंत, तुंगन नेरी ढोल ढमकंत; मुकुटी असावे मोतीसरी, जश् कुंअर परणे सिसरी ॥ ५ ॥ मामा त्यां मामेकं करे, चाउ न चुके वीवाह वरे; साथे रथ घोडाना थाट, मोटा गामण वायण जाट ॥ एए ॥ वोले मंगल जे जांजणी, चंज मलि जेवी चांणी; विमल कुंअर वर चंचल चमे, उंचो अंब समाणो यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७३) ॥ ६ ॥ जोतां जेह तणुं मुख वडे, लाखीणा बुंटणमा घडे; महाजनने मेलावे घणे, पहोता परिसर पाटण तणे ॥ ६१ ॥ सामियाना साचव्या विवेक, उतारा थाप्या अनेक; घर चोरी बांधि चडवडी, सोना झपानी ते घम ॥ ॥६५॥ कुंअर अंग कर्यु मांजणु, सिणगारे सोहावे घ[; पहेलां आंज्यां आग नेत्र, पटोलु पहेयु पानेत्र ॥ ६३ ॥ लंब वेणि लहके गोफणो, कडो रंग बे राख मि तणो; मनरंगे माता पूरियो, सिरे सिंथो सिंऽरियो ॥ ६ ॥ निलवट टोली व्युतपत घणी, काल ऊबुके सोना तणी; मांदलीयां वली वेढला, कंच कसण कस्या ते नला ॥ ॥ ६५ ॥ कर चूडी कंकण खलकती, सिर बावनाचंदन बहकती; रमझम पाय ऊमके कांऊरां, जाणे मयणतणां पांजरां ॥ ६६ ॥ मुख जोश आरिसा माह्य, विजणडे विकावे वाय; सहिथर सहिथर सरिसी मली, कोटे टोकर घाले वली ॥ ६ ॥ श्रोढी घुघरीवाली घाट, वेगे जोई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४) वरनी बाट; श्रावे वर जोये जन कोम, खुप मांहिं नवि काढे खोम ॥ ६ ॥ सोकरि बत्र चामर बंबाल, तलीआ तोरण काकऊमाल; पूंठे चंचल उपर चमी, लूण उतारे वर बहिनडी ॥ ॥ ६॥ ॥ धवल देश जाणे धोलही, ते गाये अण माहिं कही; नाचे पात्र कथारस कहे, दान मनो. वंबित ते लहे ॥ ७० ॥ मन्वयक रमे तार, चाले सा बाला परिवार; नफेरी नेरी वाजते, गुण गाये अंबर गाजते ॥ १ ॥ पुहता तोरण जोवे लोक, सीख्या साला कहे सलोक: विमल वाणि श्रवणे सांजली, गया साला ते दहदिसि टली ॥ १२ ॥ पुंखे सासु प्रेमे जरी, वर माहिरे गयो संचरी; जोसी जव बरतावे समे, विमले श्री कर ग्रहि तिमे ॥ ७३ ॥ कर मेहलावण धन थालीयां, मंगल चारे वरतावीयां; वर परणी उतारे रहि, प्रह उगमते गयो वर लहि ॥ ४ ॥ वली वरोगी तणा विचार, कीया विवाहना व्यवहार; मेहेत्यां मोदक नरीयां माट, बागल मांड्या Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोवन पाट ॥ ३५ ॥ पग पडणे जे धन परखीये, तेणे सासुनुं मन हरखीये; तूने सासु दिये आसीस, जीवो अगणित कोमि वरीस ॥ ६ ॥ शासन देवकि तणे पसाय, चडती कला होज्यो जग मांड; कंत सरिसां करज्यो राज, माश् वदु नले नेव्यां आज ॥ ७ ॥ नणंद फश्वर सासू वहू, झर्नु सगुं मनाव्युं सहुः जिनवर गुरु गुरुणी प्रियतण), नगति करे श्री सुंदर घणी ॥॥ पट्टण पीता तणुं अहिगण, विवाहy मांमयु मंडाण: पिता तणे नामे लागता, सजान कोमि मस्या मागता ॥ ७ ॥ बाप थकी जे पडतो पुत्र, ते किम राखे घरनुं सूत्र; महिअल न रहे तेहन माम, बाप तणुं लोपाये नाम ॥ ७ ॥ बाप को जे चडतो होय, कुंअर करमी कहीये सोय; जिम जिम मोटा करणी करे, तात नाम त्रिनुवन विस्तरे ॥ १ ॥ विमल मंत्रि तव कर वावरे, मागत जन मोकलावण करे: मन गमता तेजी तोखार, आपे कनक कोडि सिणगार ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) ॥ २ ॥ दरसण पुरां पोषोये, स्वजन वर्ग सहु संतोषीये; देवदूष्य दीजे दोकमा, चंगां चित करे चनपदां ॥७३॥ गडगमता दोजे गुडीयां, नारि नपस्वनां जोडीआं; मेघाबर ने महुवटां, कह पीठ पश्चगणी पटां ॥७॥ दिषरवास खेस खांडकी, गजवडि निर्गल गंगाथकी; दिये जूना ने फरमर तली, नील नेत्र मेघवन्ना वली ॥ ५ ॥ बासस्था सोहे सिर वाप, पट्टकूल प्रतापीया प्रताप; पोता परदेसी साउला, मिशु मन वंडित यज नला ॥ ६ ॥ दिये घण वेलि कण उपटो, धुली धूमरा ने घटी; चोखां चीर चंग चोरसा, लख्या हंस सूडा सारिसा । ॥ ॥ नर्म खर्म साजा सालर, वस्यां वस्त्र वहाव्यां पूर; आ गश्व दिदामणी, संतोषे सवि सोहासणी ॥ ७ ॥ कमल वनां कमखा घाटडी, के काली फाली फूटमी; नारंग) नवरंगी जात, ताजी तारा मंझन जात ॥ ॥ ए ॥ बहु मुलां मोटां मोपीआं, देतां पहेला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( मन प्रीणीयां; धज सनाथ जिनमंदिर बहु, संतोष्यां गुरु गुरुण सहु ॥ ए॥ लेई जान वलीआ घर जणी, ससरे कोधी पहेरामणी; याव्यो विमल के उग्यो सूर, जई जोहमी वजाव्यां तूर ॥ ए१॥ साहमो आव्यो नगर नरेस, वरे वडे वर कीयो प्रवेस प्रीयसुं प्रेम पूर मांमती, श्क आबण पाणी बंमावतो ॥ ए॥ देवालये पुहतां वर वहु, रामत रमतां जोए सह; गुरु गोत्रजने करे प्रणाम, पुहचे वास तj जिहां गम ॥ ए३ ॥ परएयो वर पेसारो हुन, मागत जन ते मागे दूर्ग; दान माने रली. आयत थयो, संतोष्यो सद थानक गयो॥ ए४ ॥ नव योवन बे नवला वेस, (बहुने माने नगर नरेस; बिहु सिर अगर बहके वास, वेल हुआ बे लील विलास ॥ एए ॥ बेहु विचक्षण बे गुणवंत, बिहुने पोते पुण्य अनंत हसतां हरषे पाडे होड, बे सुरंगी सरिख। जोड ॥ ए६ ॥ वामी वन डे रलीथामणां, हे के फूल अनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (00) पम घणां चंपक कुसुम मुकुट सिर जरे, खंडोखली जल क्रीमा करे || १ || विमल श्री बिहु नवला नेह, बे सिणगारयां दीपे देह; बिदु मन वसी जिनवर धर्म, उदयवंत बे दिनां कर्म ॥ ए८ ॥ बे यौवन मे जोगवे, वे मनवंबित सुख जोगवे, घणा दिवस इम वोल्या जिसे, कुटुंबा पट्टण गया तिसे ॥ एए ॥ खं खंड मति बे निर्मली, श्रोता सांजलज्यो ए जली, विमल मंत्रिने रासे जाए, एटले पंचम खं वखा ॥ १०० ॥ सर्व गाथा ।। १२१ ॥ इति श्री पंकित लावण्य समय गणि कृते, श्री विमल मंत्रि प्रबंधे नव खंभे, सामुद्रिक कथित श्री लक्षण, ६४ कला विवरण, १० लिपि नाम कथन, ६ राग ताल संख्या, श्री वर्णन, कन्या निरिक्षण, पाणीग्रहणमहोछत्र, वस्त्राद्यनिधान, पट्टणवासाधिकारे, पंचम खम संपूर्ण ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) ॥ खंम बहो॥ ॥ दूहा ॥ पुहता पट्टण पुन्य वस, प्रेमे पूस्यो वास; रहेतां मंदिर रंग जर, बना हुआ ब मास ॥१॥ ॥ढाल ॥ एणे अवसर सहगुरु वडा, श्रीधर्मघोष सूरिंद रे; आव्या अर्बुद तलहटी, उपन्यो अति आणंद रे ॥ १॥ जुर्ज जुर्ज अर्बुद अनि. नवो, ( ए श्रांकणी) नही नही जिन प्रासाद रे; देखी मुंगर दोपतो, उपन्यो मन विखवाद रे ॥ जज ॥ ५ ॥ गुरु गछपति ध्याने रह्या, समरी देवी अंबावि रे; अर्बुद तीरथ जिम हुए, बोलो सरला सुनावि रे ॥ जुन ॥३॥वीर सुत पुर पाटणे, वासि विमल प्रधान रे; पुहचो प्रनु वंदाववा, जो तुह्म तीरथ ध्यान रे॥ जुर्ज॥४॥ वचन कही देव ते वली, गणधर पाटण माह्य रे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एक) संघ सहु उडव करे, विमल वंदावण जाय रे ॥ जुर्ब० ॥५॥ गुरु उपदेश दीये घणा, सांजल विमल प्रधान रे; अर्बुद तीरथनी थापना, तुह्म जस मेरु समान रे ॥ जु० ॥ ६॥ विमल जणे सहगुरु सुणो, नही धन एटर्बु आज रे; कहो जिन मंदिर किम करुं, मोटां ने तीरथ काज रे ॥ जुर्ज० ॥ ७॥ श्राराधन अंबाविजें, आपे सहः गुरु राय रे, चक्केसरी पदमावती, त्रीजी देवी अंबाय रे ॥ जुर्ज० ॥ ७ ॥ त्रिहुं उपवासे देवता, श्राव्या काक जमाल रे; मागो वर मंत्रीसरु, तूठि त्रण ततकाल रे ॥ जुर्म ॥ ए॥ ॥चोपाई॥ सिंह नाद अंवाई दिध, अति अजय पुमावई विध; चकेसरि दिये लखमी घणी, वर पाम्या गयो पाटण जणी ॥ १ ॥ पुहतो मंदिर चिते धीर, लहिर पुरुष परसिधो वीर; ते आगे दंड. नायक दृढ, हुं तो ते कुलथी नही जुन ॥२॥ प्रह जग्यो सिरि उद्यम थयो, प्रगट पाटण Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १ ) बाहिर गयो, जोइ थानक मांनि साथरी, बेठो मणि माणिक पाथरी ॥ ३ ॥ राउतणा राउत कार, यावी श्रम करे हथोर; मांगे वेजां मेहेले बाण, वार एकेकी चूके जाए ॥ ४ ॥ विमल बंकि चोले पडवमो, में प्रीब्यो राजतनो धमो; जीम कटकनुं जलं पराण, जिहां यावा राउत बे जाण ॥ ५ ॥ उपायो अति घणो अमर्ष, जीम जुपतिने कर सि हर्ष; परदल आगल रहसि राज, जीम जुपतीनां सरसे काज ॥ ६॥ तव राजा श्राव्य संचरी, सपरिवार रह्यो परवरी; नीम बाण मेले उद्धसी, चूके विमल मंत्रि रह्यो हंसी ॥ ७ ॥ हृतो नरोसो जाग्यो आज, मुरख हाथ, चमथुं वे राज, मुह मचको मरडे मुंब, जीम सहित ब्रे सघला जुंब ॥ ८ ॥ रह्यो हाट हतो जाणीयो, जीमे तव परख्यो वाणीयो; बाप ती कांई जाणो कला, उगे वणिगाव यां थका ॥ २ए ॥ बोले विमल वाणी, इसि घासे बांध्या प्राणीश्रा; !! Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) तेल टीप तील वेचा हींग, बाण हुई तमासित धिग ॥ १०॥ जाणुं मीतु पाइली जरी, राजा जमखा जश्ये डरी; तोला धरतां धूजे हाथ, बाण हुए तुह्मारे साथ ॥ ११ ॥ श्म करतां जो तुह्मने कोम, बाण तणा देखाएं मोम; बाल सुथारो करी साथरो, पट पान अठोत्तर धरो॥ ॥ १५ ॥ कहो तेतां वीं, मन रंग, बाण न लागे बालक अंग; जो अधिकुं योद्धं विधाय, तो सिर सहि अह्माकं जाय ॥ १३ ॥ कला देखाउँ अवर प्रकार, वलोj वलोये नार; ऊबके विधि जाये काल, खंपण खसर न लागे गाल ॥ १४ ॥ त्रीजी कला कहुं तुह्म जाण, जो किजे पहों. चतुं पराण; जोर्डने जश् आवे बाण, पहोंचे गाउ पंच प्रमाण ॥ १५ ॥ वाणि विमल इसी उच्चरे, नीम तण सिंगिणि करि करे; बाण कला देखा सि, नीम तणे मन जारि वसी ॥ १६ ॥ तुगे तुरी पंचसे किंध, दंडनायकनी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए३) पदवी लीध; रंगे राणी मलधी घणी, गाजतो थाल्यो घर जणी ॥ १७ ॥ ॥ उहा ॥ एक राज नरयणां तुरी, सही सेलमी समुद्द; कहे कविजन जिहिं पझरा, तेह घर दूर दरीद्द ॥१॥ ॥ चोपाई॥ पहेलो जिनवर करी प्रणाम, पुहचे जिहां राजमंदिर गम; दिनदिन घणा वाधे व्यापार, मंड्या सकल देश व्यवहार ॥ १॥ करे पुन्यने कर वावरे, सदगुरु वचन सदा मन धरे; जिम धण वाधे घर आपणे, विमल न कहिने माने गणे ॥२॥ गज घोडा देशातर तणां, गरवे विमल श्रणावे घणां; जिम जिम थाये विमलनो चाल, वयरीने सिर वाधे साल ॥ ३ ॥ घर मोटां जूपतिना पाहि, वालि गज घोडा बंधाय; कर मुंजमी रूप जिन तj, अवर न सिर नामे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए४) आपणुं ॥४॥ दहेरासर घर कडे पवित्र, खीरोदक धोती विचित्र चामर बत्र अनो. पम करी, सोय वात बाहिर विस्तरी ॥५॥ वयरी मली वधारे वात, जूपति श्रागल बोले घात; थाप्यो स्वामी विमल प्रधान, पण तुम. थी तिहिं अधिकुं मान ॥ ६ ॥ रहे रान मृगलां तृण चरे, मावा नीर विणासण करे; सजन सुखे रहे जग माह्य, त्रिहुं निःकारण वयरी थाय ॥ ७ ॥ जिनवर टलत न नामे कोट, उछत अनिमानी आरोट; कर जिन मूरति मुना धरे, तुह्म प्रणाम ते आगल करे ॥ ७ ॥ घर बंध्या गज मोटी आस, वालि वली तुरंगम जास, चामर इत्र सजाइ घणी, लेशे नीम राज अवगुणी ॥ ए॥ राज चित्त लागी चटपटी, थर वरसासु फीटी घडी; खत्रो खेद धरे मन मांड, जोइ वाट विमलनी राय ॥ १० ॥ सद् बेतुं ने थइ इक मती, आव्यो विमल विमखज मती: करे प्रणाम बागल कर के। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) बेगे राजसना माहिं धरी ॥११॥ त्यां ममझ ने त्यां डाकलां, त्यां लुंगल कंसालां नला; त्यां लगे ताल चमका पूर, ज्यां नव वजे सबलां सूर ॥ ॥ १५ ॥ सोहे सना मध्ये सिर धणी, विषहर विकट शेष जिम फणी. तरुथर कल्प वदा जिम सीम, मणी मांहिं चिंतामणी जिम ॥ ॥ १३ ॥ तूपति मांहिं रह्यो जिम राम, रुपवंत सिर सोहे काम; दातारिं अवतरी कर्ण, उपे सकल सना आनर्ण ॥ १४ ॥ साहस सूरो विक्रम वीर, मेरु सरिखो महियल धीर; न खमे तेज नीम जय जयो, मुफ माथा उपहिरो थयो ॥ १५ ॥ सना सरोवर सोहे कमल, नीम हसी बोलावे विमल; सुण महेता ब्रह्म हरष थपार, तुह्म घर नवि दी एक वार ॥ १६ ॥ विमल मंत्रि मन कम नदि किशो, जाणतो राजन रंगे हस्यो; स्वामी घर तुह्मारां अने, पहोंचो ‘नोजन करशुं पडे ॥ १७ ॥ साथे तेड्यो सवि परिवार, के पाला घोडा असवार: जव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए६) दीतुं मंदिर मंमाण; राजा हियडे थयो हराण ॥ १७ ॥ प्रथम पोले पहेलो प्राकार, जाण्यु ए घरनुं डे बार; अनुक्रमे पेसे साते पोल, राय रखे पडीये दंदोल ॥ १५ ॥ जब दीj घरनुं बारj, स्वर्ग विमान कयुं पारणुं, मांडी थारिसानी उल, तली तोरण पे पोल ॥ ॥२०॥ दोरे संचारी पूतली, दे आजोषण नीची लली; के लीला करी नंखे वाय, नारि निरती न जाणे राय ॥५१॥ काच तणा ढाल्या जे थोल, पेखे पाणी तणा कबोल; जे मुरख नवि जाणे नेल, करे वस्त्र उंचां पण तेउ ॥ ॥ २२ ॥ चित्रशाला ने चंगु गम, उपर चंपूया चित्राम, राजकूली बत्रीसे लखी, रा मंदिर जोश चिहुँ पखी ॥ २३ ॥ दीग मयगल जे माचता, दीग तूरी ततखिण नाचता; 'गम गम बेग थोक, घडे घाट व्यवसाया लोक ॥२४॥ गजें घोडानी पाखर खरी, खांमां खेमां बापर बुरी; अंगांटो परंग उलीप, ते देखीने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) जम्क्यो जुप ॥२५॥ दीगं मेघाडंबर बत्र, दीग चामर पुडवि पवित्र: जोजन नलीसजाइ जालि, जमवा बेग सोवन थालि ॥ २६ ॥ मोटा मोदक जव महमह्या, प्रीस्यां शाक सवि विष सम थयां; साव दूध अणघोल्यां घोल, लीधां चलु दोधां तंबोल ॥२७॥ सपरिवार पहिराव्यो जीम, करी नेट जग जाणे जिम; राज जमी जब पालो वले, जुट्यो नुवन मांहिं आफले ॥ ॥ २७ ॥ श्राव्यो मंत्रि बादु तव धरि, राउ बोलव्यो निज मंदरि; रा जाणे अमाझं राज, विमल आगे ते जे व्याज ॥ श्ए ॥ विमल मंत्रि वोलावी वत्यो, राम प्रधान अनेरो मल्यो; राउ कहे तुझे जे कडं बहु, ते में दृष्टे दी सहु ॥३०॥ मनस्युं अह्मे विमास्युं श्राज, ए जीवे तो जाये राज; कीजे कांश तिशो उपाय, वयरि वणिग विलय जिम जाय ॥ ३१ ॥ गुण नवि जाणे जे जेहना, श्रादर न करे ते तेहना; देखी काग कविजन श्म जणे, मेहेली झाख लीबोली Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ए) चणे ॥३॥ प्राखसरिसो विमल प्रधान, पुर्जन जन ते लिंब समान; काग सरीखो राजा थयो' दोष विहुणो दोषी कह्यो ॥ ३३ ॥ ॥हा॥ ___मंत्रि जणे नुपति सुणो, जव प्रह विमल प्रधान; आवे तव नोजन नणी; देज्यो बहु बहुमान ॥ १ ॥ वाघ मेलावे मोकलो, त्रास होसि ततकाल; विमल हकारे वीर सुत, सत्ता मध्य नूपाल ॥२॥ विमल विकार्यों नहि खमे, तेज तणे ते पूर; सिंगि सांकल उतरे, कुःख टले जिम दूर ॥३॥ गोले मरे जे मानवी, ते विष दीजे कीम; काज सरे कलकल टले, सांजल राजा नीम ॥ ४ ॥राय राणा मंगलीक नर, सना जमि सुविशाल, श्राव्यो विमल विकट कटक, मान दीये जुपाल ॥५॥ बेगे चाउर चंप कर, जूगे जमर्नु रूप; सखश्न सके कोइ नर, मन थाकंप्यो जूप ॥ ६ ॥ वाघ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (एए) वलूटो जय जयो, राउ करे के वार; विमल विदे उठिये, तिलमायो तिणवार ॥ ७॥ ॥ ढाल ॥ लोकीक पवामा रासनो ॥ ए राह ॥ विमल राउल जव श्रावीयो, बोडावियोरे तव वाघ विकराल तो, काल जिशा नख पय वशा, ए मुंडे विलगा विसहर जिस्या वाल तो॥ ॥१॥ वेढ वेढालो वाणी, जाणी राउले रोस. नो रेम तो; केडे विलायो वाघनी, एतो माघडाकी नर थाय निमेड तो ॥ वेढ० ॥ २ ॥ (कुपद) घोघर सादे घरघरे, अरे घरघर नमिया कंप अपार तो; खड खम खांमा खमः खमे, अरे लडथमे लाख गमे असवार तो ॥ ॥ वेढ० ॥३॥ जड जडवाय दता घणा, ते तो आपणा अलगा ले गया जिव तो; माल तणे माथे चड्या, एतो के पड्या राउत कर. तला रीव तो ॥ वेढ० ॥४॥ पुंड वाली पूंठे वें; अरे नव नव रंगे ते वाघलो वीर तो; एती Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) पाटण परगट ममडमे, एतो को किमे तेहने ताके तीर तो ॥ वेढ० ॥ ५॥ हीर हिरागल. हाटडां, एतो पाडियां फूडो चिहुँ पखि चीर तो; धीर धामी गया धूसटी, एतो थीहटीरे वहे घृत घण नीर तो ॥ वेढ० ॥ ६ ॥ दोसी देश गया हाटमां, एतो माटडां फूटमां वहे रंग रेल तो; फमित्रा ते वामि फाडि गया, अरे फूलनां डाल माली गयो मेलि तो॥ वेढ० ॥ ॥ ॥ पान ते पान कुडेरदयां, अरे घांचीने घरे ढल्या तेलना कूड तो; हूड दुआते हाथिया, एतो साथिया सवि बलवत हुए बूड तो ॥ वेढ०.॥ ॥ ॥ पारिख पग पिंमि चमे, एतो घाट घमा सोनार दिये पुंठ तो; मुठीचा मणी. बारमा, अरे नारडा मेहेली गया नर उप तो॥ ॥ वेढ० ॥ ए॥ एतो लोट करे गढ कोटमी, अरे फोटडी ऊबके मोटी खाइ तो; वाउ गटायो वाघलो, एतो आघलो कोई न घाइ घाज तो ॥ वेढ० ॥१॥ डाढ ते गढ कहामए, अरे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०१) पाडए मंदिर घाटने दाट तो; वाटे न को सलकी सके, अरे लणतला नाट नासी गया नाट तो॥ ॥ वेढ० ॥ ११ ॥ बाला ने बालक टलवले, अरे खलजले नगरी नही कोइ रखवाल तो; सार संजाल न को करे,न को धरे वाघलो देव दयाल तो ॥ वेढ० ॥१॥ वीर जणणी को जाईन, एतो आज़ एटले विमल प्रधान तो; नानु परे नम दीपतो, अरे जीपतो ए घटे वाघनो वान तो॥ ॥ वेढ० ॥ १३ ॥ अरे गोल गरवे किशुं गडगमे, एतो तडफडे तुं किशु पाटण पोल तो; खुली खंधावलि आवीयो, एतो विमले बोलावीयो बांगडे बोल तो ॥ वेढ० ॥ १४ ॥ तडतम लोचन तरडी, एतो कमकम करडीओ कुंबने मुंड तो; मुंब जिशें लुंखर नयो, घणुं गहगह्यो रे मुंई थाहणी पुंड तो ॥ वेढ० ॥ १५ ॥ दंत दा. तरडी देखाडतो, एतो नाखतो रे धरा फुकतो फाल तो; काल जिशो कालूतरो, अति आकरो रे करे विलगत्रा ताल तो ॥ वेढ० ॥ १६ ॥ थाप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 202 ) धरी जव धाईयो, तव साहीयो रे ईशो काबरो कान तो; विमले कर्यो करि मांकडो, लीयो सांकडो रे देव बिका ध्यान तो ॥ वेढ० ॥ १७ ॥ जय जयकार शब्द हूआ, वली घर घर रे हू मंगल चार तो; वाघलो राय यागल धस्यो, अरे विमले करियो जुर्ज पर उपगार तो ॥ वेढ० ||१८| विमल गयो घर आपणे, अरे राज जो मंत्रिन सीध्यं काज तो; राज रखे लिये वाणीर्ड, एतो प्राणी दुष्ट में जाणीयो याज तो ॥ वेढ० ॥ १९ मंत्रि जणे ज्यां बुं ह्मे, तुम्हे चित उचाट म आसो आज तो; माल करो बल पारखुं, एतो सारखे सारिखुं टालसे साल तो ॥ वेढ० ॥ २० ॥ माल स्यो मंत्री विचारीयो, जलो जारीयो जांगडा घाए जीम तो; विमल इऐ करि ताहरे, एतो मादरे मागजे सबल हुई सीम तो ॥ वेढ० ॥२१ ॥ दूदा ॥ प्रह उगम वली प्रगटियो, वढेलो, विमल प्रधान; राजन राज सजा लढे, वली विशेषे मान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०३) ॥१॥ माल अजे घर आपणे, आणे गर्व अपार; महेता ते बल पारखु, करून केती वार ॥२॥ वाघ तुम्हे वस आणी, जे अति विसमो वंक: मान करे हे मालडा, ते तुम्ह श्रागल रंक ॥३॥ शण अवसर ते आविया, माले मांमि ताल; सुजट सिरोमणि जे हुए, ते मोकलो नुपाल nan माले वाई बकरी, वरवी बोले वाण, श्रावो श्रलजे थापणे, जे पुढ्चे जुज प्राण ॥५॥वीर जणणी वीरा सुतन, जे हुए बहु बलवंत; उह. वणी उठी करो, जे वीर कहावे कंत ॥६॥ ॥अघबंद नाषा ॥ . तेणे वचने रोसे चड्यो, जड उठ्यो जमवाय, घायति पहिलो जालवी, पड़े परठियो पाय ॥१ तरि परविथपाय रह्यो रढ मंडी, नीम नडाजड माल जम; घण घाय घडकीय, सूर धमकोथ शेष जडकीथ जारवडं; चल चंद चमकीअ, मेरू फर• कीथ धीर धरा; जय विमल जमलि महि माल जमंते, पेखे सुरवर कोकि नरा॥२॥षण मेहेले मुति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०४) के नंजे पुंठि के, उह विवि के चंग पडे; घण हथो हथे, बछे व सहो सछे सीस जिडे; करि करे कडकती, जो हम्मकि, धुजे रूड्डकी, नारू जरा ॥ जय विमल ॥ ३॥ करस्युं कर मोम के, कंद विडोम के; कोई न दोग के, हारि कहे उप्पामि अनरकर, दोण नरक; श्रावी सरकई, वेगि रहि; धम धंबड धुईकि, मांहो मांहिं के; लध्धई वाह के, थाय करा ॥ जय विमल ॥४४ ॥ घण पुरीअ माण के, जाये गण के, सवि संधाण के, दूर करे; जम जोडकि जो, हकति वो; अंबर गो, ईद घरा; विमले बल उर के, किय चकचूर के; मसद पूर के, श्रास परा ॥ जय विमल ॥५॥ विमल जमलि जव आणी, मल र रिकट; महि मंगल, रायंगण जऊत, नाम श्ररिक आखमलि; ऊमपम करि खिण एक, लेक जित्तो, जग जाणो जे एणे, वग्य वसि कस्यो, तांद कुण मल्ल समाणो; लावएय समय कहे विमले, तेह दहदिसि नंखि फेरवी; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५) आवी विमल पाये पमे, जोजे जन दिधो बेरवी ॥ जय विमल ॥६॥ ॥ चोपाई॥ खंड खंगमति ने निर्मली, श्रोता सांजलज्यो ए जली; विमल मंत्रिने रासे जाण, एटले बहो खंग वखाण ॥१॥ सर्व गाथा १०२॥ ॥ इति श्री पंडित लावण्यसमय गणि कृते, श्री विमलमंत्रि प्रबंधे, चक्रेश्वरी अंबीका आराधन, श्री अर्बुदाचल प्रासाद प्रतिबोधन, बाण त्रितय कला पकटीकरण, व्याघ्र मन्त्र युक जयाधिकारे, षष्ट खंग संपूर्णम् ॥ ॥ खंड सातमो ॥ । चोपाई॥ मंत्री राउ विमासण करे, देव शक्ति ए केणे नवि मरे; आपण जे जे कस्या उपाय, ते विसराल थया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) कहे राय ॥१॥ जणे मंत्रि राजन सुण वात, आगे विमल पितानो तात; लहिरि आदे लेखे लागीये, बप्पन कोटि टंका मागीये ॥२॥ ईणे ममें धन लीजे कसी, धनहीणो शुं करशे वसी; धन विण माणसने मद टले, धन विण नर मोटा खलनले ॥ ३ ॥ धन विण कोई न माने बोल, धन विण थाशेरंक निटोल; धन ली, तो लीधा प्राण, नीर विहुणुं जिशुं निवाण ॥ ४ ॥ मंत्रि सना प्रहउगम गयो, राय को उपरागे थयो; नर समुष पाटणनो धणी, राउ रिसाव्यो कहो शा जणी ॥५॥जणे मंत्रि सुण विमल मंत्रिस, राउने ले लेखानी रीस: बप्पन कोटि टंका घर जरो, के वीने लेखू करो ॥६॥ जो तुम्हे रानी वंडो मया, करो बोल जे तुम्हने कह्या; वल्यो मंत्रि जव मंदिर जाय, आपे लेख कोई कर मांह्य ॥७॥ वांच्यो लेख विदि करी, वाणोत्रे वोहत्या बे तुरी; दीधुं दाणचोरीनू पाल, राय पेडिये लिया समकाल ॥ ७ ॥ जुथाई तो उपर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०५ ) करो, नही तो लेख लखी यो खरो; राय सरीसो नही संतोष, वली उपायो अधिको रोष ॥ ॥ वलता लेख लख्या पमवडा, बडे पीश्र श्राव्या बडा; धृष्टि लेख चिंता परहरी, वात तुरीनी बे पाधरी ॥ १० ॥ लेखा मस फांदे पाशे, लेशे धन वयरी तामशे; किशुं करे जो यति थाकलो, गाढो सबल सिंह सांकल्यो ॥ ११ ॥ कूरु रचाव्यां आगे ढेढ, वाघ माल मंडावी वेढ; पहिलं धुरि जो खाये खता, पढे जे कीजे उरता ॥ १२ दूर्जन हांसा करशे घणा, जाशे मोहत पितामद तणा, डुब्बल कन्नो राजा जीम, विषठे राज्य न रहीये नीम ॥ १३ ॥ जई मंदिर सामदणी करी, सांढ सोलसें सोवन जरी; पाखरि पंच सयां असवार, बीजा पंच बीजा पंच सदस तोखार ॥ १४ ॥ पायक सहस मख्या दस बार, अवर अनेरा वर्ण अढार; पोताना गज साथे लीध, बीजा तुरी माणा की ॥ १५ ॥ रथ वाहण उंटे नीसाण, रखत जर्यां साजेसा बाण; अंतेजर देहरासर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०७) साथ, घर टलती लिधी सघली आथ ॥ १६ ॥ मेली कटक थयो असवार, जीम जेट कीधी तिण वार; राजा पुंठ देई जव रह्यो, वलतो विमल बोल इम कह्यो ॥ १७ ॥ ॥ दृहा ॥ मुफ दोधी तिम वेरियां, वली म देजो जीम; एम कही पाटण तणी, विमले वोली सीम ॥१॥ ॥ चोपाई॥ ___ चाल्यो मंत्रि माला वन रह्यो, (त्यां) घोट बक नीसाणे नयो; एणे अवसर चंडावई धणी, आव्यो खेत्र खमाला नरी॥१॥ सुण्या विमल नीसाणे घाउ, धरणी ढले चंजावई राज; सीमामा जे सवि सामटा, आवि मस्या विमल. एकैठा ॥॥ जेहने कहिनां न नमियां मील, उलग करे नला ते जीम; गाम ठाम लीधा परदेश, सेव मनाव्या नगर नरेश ॥३॥ वेठो विमल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०९८) सजा सम धरी, आव्यो नर को देशाजरी; सांजल स्वामी देश बंगाल, रोम नगर बे अति सुविशाल ॥ ४ ॥ एके नगरे बार सुलतान, बार बारजोयण मंमाण; वाव सरोवर वामी कुत्र्या, देश बे सवि कहि सूखा ॥ ५ ॥ ज्यां ज्यां जाणे हिंदु नाम, त्यां त्यां देश उजाडे गाम; हिंडुनो अवतरी काल, जो चाले तो कर संजाल ॥ ६ ॥ ते बारे रवि परें दीपता, दोहिला देव बे जीपता; सांजल हो चंद्रावर धणी, रोम नगर ते पूरव जी ॥ ७ ॥ जणे मंत्रि शी मंडी जात्र, ते सुलतान कह्या कुण मात्र; एक एकनी बाया रहे, ते सुलतान नाम किम लहे ॥ ८ ॥ मालव मगध देश नमीश्राम, जीत्या कछ मछ मेवाम; कलि कर्णाट लाट ने नोट, जीत्या मारुखाडि नव कोट ॥ ए ॥ दहदिसि वरते आण अखंड, मेली गूजरातिनो दंम; जीम न जांजुं ठाकुर जणी, किम लोपुं कुलवट आपणी ॥ १० ॥ गोरु देशनो रा गांजीर्ज, जोट तो जट ते Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११० ) जांजिरी; पंचालो ते पालो पले, कान्हडी कोगरे रखे ॥ ११॥ काशमीर कंप्यो जडवाय, चौड देशनो चाप्यो राय; बाबरी बेगे बारणे; कन्नुजो ते कीरति करे ॥ १५ ॥ अंग देशनी उलग करो, जीवी मागे जालंधरो; वागडी ते नंखे वाय, सोरठी ते सेवे पाय ॥ १३ ॥ अवतरि रिपु केरो काल, प्रगटि पुण्यवंत प्रतिपाल; मथुरां तणो माल पावे, अरथ अजोध्यानो श्राग्वे ॥ १४ ॥ ढीली (दिसी) नो ते माने हाक, रोम नगरनी थइ तकताक; मुज आगल ए बल श्यां कह्यां, कण उखण तांबूरां रह्यां ॥ १५ ॥ जिमणवारे नवि जमिश्रा वर्दू, करतां पाक रह्या कोरडं;घर करतां ते घर विसयां, ते दोसे बलगा निसर्या ॥ १६ ॥ ते सुलतान तणुं शुं गजुं, जो जाएया तो किम ऊनजु; करो सजाई महेता जाण, जर जीपुं बारे ‘सुलतान ॥ १७ ॥ सूरो सुरातन धडहड्यो, हय गय रह पखरियां बड्यो; चंडावा बाहिर मेहसाण, कीर्छ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९१) ताम हुजं जग जाण ॥ १७ ॥ हल हल कटक सजाई करे, नड नाथा नालोडे जरे; सगुणी मींगणि पाली पटा, कटारि कातरणि करि कटा ॥ १५ ॥ गदा गुरज गोला गोफणी, जल जलके नालानां अणी; हल मुशल मोगर वर चक्र, गेडी गडाखी लिये वक्र॥२०॥शंख शक्ति तोमर तरुयार, नमीचा नाराच विचार; खांडां खेडां घण घुग्घरा, वली वंश ने बापर बुरा ॥२१॥ सरसी फरसी ने हमबमो, अणीयाली वाली वांकमी; तीखां तेज तपत त्रिशूल, वयरीने सिर मत्था शूल ॥२॥ जरद जोम जमली जीणसाल, लोहवमी मगली टोमाल; हस्तानर्ण अंगूठी खरी, दोरी जरद कवच कर्करी ॥ २३ ॥ पहेस्या अंगा चंगा टोप, रंगे रंगालिना श्राटोप; पहेरे जीव रखी सन्नाह, वयरिने सिर देवा दाह ॥ २४ ॥ मोटा मयगल पर्वत प्राय, बलवंता केकाला पाय; पख्खर पम घुग्घर घमघमे, रण रलीश्राश्त रोसे रमे ॥२५॥ दंतसल पम दाढा जिसि, सरलि सुंढे धाये घसी; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५) रीसे चीस मे सारसी, परि परि सवि प्री पारसी ॥ २६ ॥ पग पोढा करि थंच्या थंज, सींदुरे सोढाल्या कुंन; सवा जारनी सांकल खरी, रणके चरणे जिसि नेनरी ॥ २७ ॥ अंबामी पुंठे आठवी, ते उपर धज ऊलके नवी; बेग नवि माग कुंतार, रण का जुग फूंकार ॥ २७ ॥ अंगे रंगे झमां चित्राम, के मयगल जयमंगल नाम; फूंक फोमके संकल त्रोम, के विष बोम महा मद मोम ॥ २॥ पर्वत ढोल धरणि धंधोल, पर दल बोल केवि रणरोल; एक ताल के वय। काल, के विष काल चमर बंबाल ॥ ३० ॥ गढ गंजण नंजण बल गम, सिंघलीयानां साचां नाम; चाले मयगल मद कबोल, चिटुं पासे चाले चकमोल ॥ ३१॥ तेजी ते पाला तरवस्या, रणसूरा ने रोसे चर्या; हाजर मती ने अरी अमा, जारिज जल हामा नीलमा ॥ ३२ ॥ होला हारु माझ पमा, सरला सेरामा सूनमा, के हामा कलथा काला, जलवद्वा गंगाजल जूआ ॥ ३३॥ सखेर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • . ( ११३) सजोमा ज़मर जोरिंग, सारिंगा नव हत्थ नारिंग; जुंगी ऊंबाणा उंदिरा, वाहणीया खुरसाणि खरा ॥ ३४ ॥ कोहाणा मोटा महअमा, महलावी श्रा मुगल मांकमा; ऊघसीआ नीघसीथा घोर, जाटकीआ कोटकीया मोर ॥ ३५ ॥ पाणीपंथा पंचकल्याण, पवनवेग पोढा केकाण; पारकरा बड़ेरा जेथ, जाति शुरू नवि थाके तेथ ॥३६॥ कपिल किसोरा घोडाजात, अ अनेक नलेरी नात; ते सघला सोडे आणीश्रा, जग जोडे जडता जाणीश्रा ॥ ३७ ॥ हंस धवल अने हांसला, नाचे मार्च महिथल जला; पुहले पंथे सविडं पहिलीआ, वेग वडा वारो वहिलीया ॥ ३० ॥ पुंठे पुहला पग नीसला, वंक मुहाने खंधा गला; एक वर्ण ने टुंका कर्ण, उपर थारोप्यां बाजर्ण ॥ ३ ॥ पडीया पाखर ने पहलाण, चडीया रण सागर जधाण; उर बंध गादी पटाट, बांधी जेर बंध नीसाट ॥४०॥ मुडी चंग चमर चोकडां, मखीआरडी अने मुहरडां; रुप खाप सरिखां जलकतों, बिहुँ . . . -- - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९३) पखे पांगड ढलकतां ॥४१॥ पानिमि पटकुल बांधी, वाग दोर वाक सांधी; गली गली जव वादल जर्या, खलके तोबर बाणे नर्या ॥४५ व्यतपती आला लीआ वींजणा, तेजी ताजे. वा ताजणा; कसी कसण बांधी वासणी, धुरीचा. री दीधी वासणी ॥ ४३ ॥ केमठ फडणा गिरी उठणा, माता मयगल मद मोडणा; खाड नाड उमे नय पूर, रण ऊड ऊटके ऊमपये सूर ॥४४ हरण महा हीसे हणहणे, तेजी ते नवि जीत्या कणे; बड वेगि नविला वार, चंचलीए चमीया असवार ॥ ४५ ॥ धडक्या रथ धरण। धडहडो, रण वाजित रह्यां गमगमी; चले विमल चंजावई धणी, कटके रोम नगर दिसि जणी ॥४६॥ चार सहस सिरिसी किरि धरी, सांढ सोलसें कूलिरि नरी; साथे चाले पाणी पाट, कुदाडे चोखाले वाट ॥४७॥ ऊंट सबल साबाणे जर्या, चाले काठ तणागढ को मारग मंगाये बाजार, वर्ण शहार करे व्यापार ॥ ७ ॥ साथे सांद्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११५) पलाणी तेह, घडीया जोश्रण जाये जेह; गाजे गज हणहणे तोखार, पाला लाख कोडि नवि पार ॥ ४ए ॥ सुखासण भासण पालखी, के बेग सेजवाले सुखी, श्री गरणा वय गरणा करा, श्राप थापणे थानक रह्या ॥५०॥ सेनानी ते चिंता करे, जंडारि ते मेली उवरे; राते चोकी पोहरा पमे, सात सहस दीवटीथा को ॥५१॥ विमल अंग वाध्युं बल उर, चाले विकट कटकर्नु पूर; दल खेहे बायो शसि सूर, रोम नगर जर दे रणतूर ॥ ५५॥ ॥ दूहा ॥ ॥ राग श्रासाउरी ॥ ढाल वेलिनो । रोम नगर तव खलजले, दीधी पोले पोख; ते बारे सुलतान तव, बरवे बेग उल ॥ १॥ जव नीसाण अडुकीयां, वाग्यां जांगी ढोल; मुख तंबोल खसि पड्या, नवि बोलाये बोल ॥२॥ बीबी सवे दसि हसि पके, कहे किम जुजसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) मीर, शबद सुणी जंगाण जय, अंगि थलगा तीर ॥३॥ जंचे गोखे चडि चमि, जव जोये सुलतान; क्या कीजे श्राव्या हवे, खुदा तणा फुरमान ॥४॥ किसका दल हादरि हुआ, जव पुढे सुलतान; या विमल बकाल ए, मरडि मनावे आण ॥५॥ इण जीते सवि देशमे, श्ण जिते सवि राय; कर पय लागी माल दे, कश खडी चउ पमि थाय ॥ ६॥ आये हिंषु गोबरे, सुणिमा बोल बकाल; सामा सवि बीनी लेवे, ते क्युं श्रापे माल ॥ ७॥ हिंऽ हम हक्किं गया, सडि विण लित्ता कोट; ते कुण आज बकाल ए, हमकुं देवे डोट ॥७॥ (चाल) हमकुं देवे दोट बकाला, मागे माल बिचारा; हमके हाजर मही असवारा, नही नट्ठी कोश फूफारा; हम मुखतान सनाण समाणे, हमें क्युं नामुं कोट; देखे बीबी अब लोक लूटाजं, मारि करावं सोट ॥ ९ ॥ पकड़ी तेरे 'पाए पमान; तो हूं. सा. हिब तेरा हिंफु कटक करा हेरा, किशं कई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७) बहुतेरा; हल हल कटक सजाई मांकि, इय परकरीया कोमि; मद नींनल मयगल मलपंता, मेंहेल्या बंधन बोमि ॥ १०॥ अंबाडि मांगी दंतुसल, थाडी अलत्ति बांधी; तिहि तशथारि अटारि सारी, कटारी सोश साधी ॥११॥ सीपुरे सो कुंन सोकाला, पोढी पाखर ढीली; कोट तणा गढ विसमा कीधा, बिसंरी त्रिसरा वाली ॥ १ ॥ जमकीजोम जडी जडि जाडी, तामी ते नवी तूटे; पहेर्या अंगा टोप रंगाननि, नाला जंग न फूटे ॥ १३ ॥ पाट तणा ते तूरीश्र पैलाणे, जे जाणे रण मोम; वालि बांध्या विसहर सरिखा, रविया विष बोम ॥ १४ ॥ के तरकस करकस करि नोडे, सींगिणि धींगिणि हीथ; जीव रखी सरखी सौहावे, मोटा मोंगर साथ ॥ १५ ॥ खांडा खेंडी नवल नमींचा, बीजां जे इथीबार; उत्रीसें देमायुध आंगे, 'अंग न लागे नार ॥ १६॥ ढोल ढमक दमामा देवे, नफेरीना नाद; बारे ते सुलतान सजोडा, विमल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११०) सरिसो वाद ॥ १७ ॥ पोल थकी जव पगलां मांडे, तव धूरि ढली टोप, बीबी बोले विमल सरिसो, मीरां म करिश कोप ॥ १७ ॥ बीजूं मगनुं जाम उपामे, तुरी आवी ठेस; बोले बांदी सुण हो बीबी, साहिब जाण म देस ॥ ॥ १५॥त्रीजे डगले काल उतरी, चोथे दक्षिण देवी; बोले बीबी मानज मागी, विमल तणा पय सेवि ॥ २० ॥ए हिंदु नही देव सरूपी, जे एणे दल आया; जिम देखु तिम बीटी बीटाई, क्या हिंदूकी माया ॥१॥ रे रे मीरां रहे टुक धीरा, म करे मान पराण; जसका खोल्या बाणजी जावे, गाउ पंच प्रमाण ॥ ॥ देखी विमल कटक घण कोटि, सिंह नाद सिरित्राग; जे घोमा मयगल मतवाला, पायक पाला नाग ॥ १३ ॥ पूडो मोटा मीर मतालिम, जे प्रयगंबर पाका राज रहे तिम रहणि राखो, फूज करी हवे थाका ॥२४॥ जे दूर्वेसा वेस अनेसा, पूगे मुखि मनाणा, जोगी जोगी जंगम नडीमा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) शेष सदा सपराणा ॥ २५॥ पूगा जाण कहे तुम्हे.मानो, आण विमलनी आज: जो. तो राज करेवा हीमो, रोम नगरिंजो काज ॥२६॥ मेकिलिया परधान आपणा, विमल मनावा रेसि; रोम नगर मया उधाड, जे मांगीस ते देसि ॥ २७॥ विमल जणे जो बारे बीबी, हिंदू वेषेज माले, जो मणि माणिक वेग वधावे; सोवन जरीए थाले ॥ २७ ॥ आपे डंमजि घोमा हाथि, टंका कोमि बिचार; मानी वात प्रधानजि वलीया, पोहता नगर मकार ॥२॥ वात सुपावी सवि सुलताने, बोबी बोल कहाया, हार- दो दो सिणगार जला, हिंदुआणी वेस कराया ॥ ३० ॥ मणि माणिक परवाल घसाया, सोवन थाल जगया; विमल वधामणि बीबी श्रावे, रोम नंगरका राया ॥ ३१ ॥ गाये गोरी कारति तोरो, नारि नेट मुंकाई: विमल वधाया पूर विमाया, आपे प्राण मनाई ॥३१॥ . . .. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२० ) ॥ इदा ॥ बीबी दीधे कप्पके, उर दीधे चंगे चीर; पहिरव्या सुलतान सवि, विमल वधार्यु वीर ॥१॥ मीरां सवि मीनती करे, बीबी दे श्रासीस; खिजमतं कर सितादरी, मंत्रि म आ रीस ॥ ॥ प्रत को कि दीवाली, अमर करे कयवार; खुदा खुसी ने तुहने, विमल विमल जसवाय ॥३ ॥ चोपाई ॥ खंड खंग मति दें निर्मली, श्रोता सांजलज्यों ऐ जेली; त्रिमल मंत्रिने रासे जाए, सुधो सत्तम खंभ वखाण ॥ १ ॥ सर्व गाथा १०६ ॥ ॥ इति श्री पंडित लावण्यसमय गणि कृते, श्री विमलमंत्र प्रबंधे, नव खंडे बपत्र को मिधन मार्गण, जीम जुपति विरोध चंद्रावती नगरी राज्य थापना, विविध देश साधन, सैन्य वर्णन, द्वादश सुरत्राण जैत्राधिकारे, सप्तम खं संपूर्णम् ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२१ ) ॥ खं आठो ॥ ॥ चोपाई ॥ श्राव्यो नर एक अद्भुत वेष, आगल मेट्यो मोटो लेख पुढथुं कुण किहांथी पहुत, बोले राज बांजणी या दूत ॥ १ ॥ मम स्वामीनो श्र यस लदी, आव्यो पंथ घणा दिन वही; करी मुंज्ञ पाठी कर धरी, वांच्यो लेख विबेदें करी ॥ १ ॥ यति प्रतापि पोढो परचंड, वरते जेहनी आण अखंड; राय पंड्यो पश्चिमनो धणी, लखें लेख विमलेश्वर जी ॥ ३ ॥ राज विरोधे पट्टण परहरी, जइ बेठो चद्रावर पुरी; धार पुत्र ह्म लख आज, रुकुं पातुं पो राज ॥४॥ विषम बे मारी रीस, नहितर यावी नामो सीस; वयंरी लेख वचन विस्तयुं, विमले कान हेठे नवि ध ॥ ५ ॥ त्यांथी प्रगट पीखाणुं करे, सकल कटक साथै संचरे; सिंधु सरिसो आयो खेद, (राज) बंजणी आनो तेहज देश ॥ ६ ॥ चल्यो विमल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - .. (१२५) अतिरोसे पुछत, नणे मंत्रि मोकलीए दूत: नवि माने तो कटकि करो, राजन राजनीत अनुसरो ॥ ७॥ मंत्रि राज विमासी दूत, मोकली मोटो अवधूत; बोलंतो जे मुख बर्बरो, अंसवें उत्तर आपे खरो ॥॥ वाट घाट उद्धंधी करी, पोहतो जिहां वे उहापुरी; सूरो सूरा जस्यो पंडीजे, दूते दीठे राय पंमिर्ज ॥ ए॥ नणे दूत जय नाणे हिये. राज पंड्याथी को नवि बीहे; विमल मंत्रीना आपो तुरी, आवी उलग सारो खरी ॥१७॥ दूत वचने लागो साटको, राज मस्तक व्यो चाटको, जारे कुण. के तारो धणी, दूत जणी किम नाखु हणी ॥११॥ ताहो सामी विमलड राज, ते तो निर्लजने नथी लाज; सूनु सनेपातकि. थयो, कर वासो अगासे रह्यो ॥ ॥ ११ अकर लाख बांभणीउ राज, एकल परामालहि श्राज, साउ सहस जे सुमी मूहा ते लगो अंगारे हुआ ॥१३॥ जनवट ने थलवट में राज, आप अमारी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२३ ) माने आज उठ कोडि साहण पलवणाय, माहरे मन विमल ते वाय ॥ १४ ॥ सुतो किमे जगाड्यो सिंह, तुज सामीना नमीश्रा दीद; जा रे जइ विनवे अबूऊ, होनगरपति मागे कूंज ॥ १५ ॥ अपमान्यो अवगणि बहूत वेगे. वली जैरव नूत; विमल मंत्रिनी सजा पहुत, यति दूहवाणो बोले दूत ॥ १६ ॥ ते तारो वयरी बांको, यति विसमो विषनो यांकको; जे तुज बोल्या बोल अनंग, कदेतां जीन थइ शत खंग ॥ १७ ॥ दूतकदण तव प्रीबधुं खरं, चाल्युं कटक सिंधु पाधरुं; मारग बडे पीआणे थयो, दिवस केटले उठे गयो ॥ १० ॥ ढमक्या ढोल डाक डमवडी, रा पंड्या श्रवणे श्रुति पड़ी; श्राव्यां को पर दल दमवमी जायें रखें नगरने मंडी ॥ १५ ॥ विमल विशेष करावी जाण, सिंधु महीपती मानो श्रण; नहितर नोसरि पई सजोम, तुज मुख जोवानुंबे कोड ॥ २० ॥ उपो म जीडी जपनो, किम जाइश मुजस्युं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ܕ ܐ Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२४) श्राथडी; मुड मरडी मछरे चमी, करी कीधी सींगणि रातमी ॥ २१॥ पाला काला फ्रेंबणा, पासे पायक लीधा घाणा, गज रथ तुरी पलाण्या तेह, साइमो श्राव्यो सेना लेअ॥ १२॥ सूमाव्यां रण खेत्र विशाल, रणकाहल वाजे विकराला बेल सजोमा बेहु कूकार. बे सूरा वे रण सिणगार ॥ २३ ॥ बिटुं दल रथ घोमा थाट, बिहुँ दल चमीआ बोले नाट: बे दल तजि तपंता जोई, बिहुंना बल नवि बुफे कोई ॥ २४ ॥ ॥राग रामगिरि ॥ आ तुं श्रा हुं आ प्रत तोरो, या ते मयगल आ ते दंता; बोल्या बोल जे ते बलवंता, ते सारा संजारे कंता ॥ १ ॥ प्रीय तुं प्रेम म आणिश मेरो, मंदिर मत मांडिश मोह: जीवन मरण संदा हुं साथे, जर सुर लोक चमावे सोहं ॥१॥ नारि लणे मुज नयणे नमी, तहीयें थातो तुं जयजीत; जारि जव ध्रसुका पमशे, कंता किम राखीश रण चीत ॥ ३॥ मानणे जड़े किम, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५५) जडवू, जिम नविल ताहारो तात; वीर जननी मुज बिरुद धरावे, जिम वसुदां थानं विख्यात ॥४॥ केवी लणे मुज हाके डरी, पाए पडतो वारोवार, शठि जुधिरण किम कूफिश, स्वामी ते दीहा संचार ॥ ५ ॥ नयण वाण नवि खमतो निरतां, कायर रण दोहदयां करवाल; नाठो नाह नीसत घर आवसि, कायर नारि हुसि मुज थाल ॥ ६ ॥ सही समाणी हासां इससे, होसि कायर नारि कलंक, सुहमा सरिसो जो रण ऊत, प्रीय पालो परविस पग लंक ॥ ७॥ के सुंदरि कहे सेजे सुअंतां, कुसुम कली दूहवातो देव; सेव ध्रसुको सरल सांजलसी, समरंगण किम सहसो देव ॥ ७ ॥ के कायर सिर कंचलूचाई, सुंदरि वेष सुश्रावड मांहि: पुढे पासे परीची बंधावे, नरवरना नर जोई जाई॥ ए॥ के बाला बोले बलवंति, नयणे कंता नींद निवार; हय हेषारव नला न होई, वादहा के वयरी घर वार ॥ १० ॥ कायर घाहर थरहर फुके, देखी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) अलवे उघाडां रकग्ग; अह्मे उलग बंडी बल जोई, जास्युं जो लहिस्युं घर मग्ग ॥ ११ ॥ अग्गल अरी दल पूंछ पृश्विपती, गयणे सुरपती पेखे मन खंत: के समरंगणे सूरा रोसे, मयगलई देखत पदित ॥ १५ ॥ सुणि जिणसाली ढोल ढमकिया, बालवे ढीलो सन्नाह; सरोवर कमल जमल जिम विद से, पर दल दी तोरो सन्नाह ॥ १३ ॥ रस पके के कायर काचा. पामर कामर पूंठे पलंत; समरंगण सूरास्यूं समवमी, धीरी घोसी धसी मिलंत ॥ १४ ॥ सूरा सूरपणे सम. रंगण, मत्त मयगल श्रावी ल; दंतूसल मुसल पग परवि.लि मोती कुंजस्थल रोल ॥ १५ ॥ तोरे विरोधे बल लेई आयो, सिंधू धणी जो मांमयुं कृतः अति अनीमानी आण न माने, राम पंड्यो अजाण अबुऊ ॥ १६ ॥ बे मद माता मुब मरोमे. घोमे पाखरीश्रा पहाण; त्रीसे दंमायध समरे, करमता काला केकाण.॥॥ काला टोप रंगालि काली, काला अंगा ने कर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५७) वाल; काला के मयगल मतवाला, काला क्रोध जख्या नूपाल ॥ १७ ॥ अकल अबीह अतोबल बोले, नवि मोले बे मुंगर धीर; जणत लावण्य समय जग जोन, कूकाला बे के वीर ॥ १५॥ । चाल॥ फूजाला के वीर वडा, रण रोस जर्या रस जीम नमा; धर वर धास्ट धाई धस्या, वयरी दल वादल वान दिशा ॥ १॥ अणियाला काला कुंतल किशा, जम् वाजे नाजे जीम तिशा; तीखां काला वन्नि वली, पुखालां पुंखे पुंख मली॥ जट लंखे तीर तूणीर नर्या, खेमानी चुकी चालणी कर्याः नवि ग्वंती अग्वंग करे, जट खेले खांमे खंति धरे !! ३ ॥ घणु गोला गोफण फार फिरे, रण सागर कंध्या बीर तरः ससि वाजे थतिमर. जनमी, दबंट तिखटती जाई नमी ॥४॥ ताजी तरुार ते तेजे तपे, देखी दोषी जन उर उपे; गना उल जोतां चित चडे, चक. चूर करे ते चक्र वडे.॥५॥ तप तप तपता प्रकट Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११) पटा, करि काराती कटि कटा, नडभडता गल खटकति लटा, जम जामे हुंबे वृक्ष वटा ॥६॥ घण दूम्या घुम्या घय वटे, नय नीता जीता रान रमे; गयणि ऊडंति अंग अमे, समली जमली जमलीज तडे ॥ ७॥ सुर किंनर कोटी लोक लखा, रण हो जो पंच पखा; कट कटरे कटकि विकट वटा, गढ कृटि कीधा लोट दट ॥७॥ हर वाट्या टाच्या तीर तपे, रण काले फाले टोप टपे; दवि नरकर खरकर पंन खरे, तिम सरकर परकर लरक वरे ॥ ए ॥ नट नीषण रीषण रुपि थया, बालापण आपण थाज जया; जण धजी मुंफी मांहिं मन्या, धर. णीधर धारी धरणी ढल्या ॥ १० ॥ हब हब हम हबकी हाक हवे, ऊब ऊब ऊब वीज खडग्ग खिवे; धबधव धब धींगट धीर बसे, कम कमती कायर खेव खिसे ॥११॥रण रण काहल रणकि अलें, मम डम डमझ ममकी अलें; दम हम ढोलति ढमकि अले, चम चम चंचल चमकि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७ ) अलें ॥ १५ ॥ नड उठ्यो अंगो अंग ईशो, तर तर तड बेटे कमा किशा; सिंह गल जंव जीव जिशो, विमल आगल पंड्यो राउ तिशो ॥ १३ ॥ तड तड तड तभी दृष्टी करी, मुह मरडि माणे मंड जरी: कड कड कम करडी दंत कली, जड धायो एंडो पुत्र वली ॥ १४॥ सिंह नाद को गज शाट कम्यो, जड जग्गा कोडि कटक नस्यो; गय पंड्यो खंडी खिच्च कस्यो, गल थल सी गिति धस्यो ॥१५॥ कठ पंजर करि जंजीर जड्यो. घण घदड कर जिम काग चड्योः नव नव पर नरपति नाद नड्यो, घण सल लहे एघाट घड्यो ॥ १६ ॥रण घंघल मंगल तर रवा. सरकार ने नाद नवा; विमल मंत्रि जय जय हि को बंदोजन जय जय. कार करे ॥ १७ ॥ सुहडा सुंदर रण उत्रिय यत, बरवे करवे हाथ की एणः पेखि सुइड पड्यो समरंगण, हुँन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७) लजावी एण ॥ १॥ के बाला बोले सुण बहेनी, इण। जले अह्मारो कंत; जाउत जस जग हुत इसारत, जो जागो आवुत करणंत ॥॥ डेयं सीस वाम कर वलग्यु, अलगुं धमथी थाये जिम; सामी कारण सुहड सजोडा, पडतां वयरी पाडे तम ॥३॥ बाला बालक दास दीकोलां, ते उपर घण घालत घाय; समरंगण सूरास्युं निमतां, वादि के विरला कहिवाय ॥ ४ पंड्यो जित्यो पुण्य तणे बल, मणि माणिक सरसो लंडार; जे जे लीधा देश पुअंगम, विधा गज तेजि तोखार ॥ ५ ॥ जे सीमामा मारग मोटा, पकर देश तणा रखवाल, वेगे विमल तणा पग पूजे, नेट सहित नमीआ नृपाल । ॥ ६ ॥ विमल लई दल पानो वलिङ, त्रिहुं खंभे वरतावी आण; चंडावई परिसर पहुता, ढमक्यां जांगी ढोल नीसाण ॥७॥ तलीयां तोरण गूमी उडी, श्राव! बंधावे वर बाल; रोम नगर जश् आण मनावी, बांजणी बांध्यो जूपाल ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३१ ) ॥ ८ ॥ मस्युं महाजन महेता मोटा, सामईये सबि कोइ हरष अपार; विमल जमलि को‍ परिवार ॥ ए राज न दिसे, सात कोडि साह ॥ वस्तु ॥ विमल चलि विमल चलिर्च, सेन घण बेई; रोम नगर पूरव दिसे, जेणे बार सुलतान जित्ता, बंज पि राज बंधी, देश देशना दंड लित्ता; दाप आप सवि आपणी, वरतावी संसार; वेगे विमल वीज, चंद्रावई मकार; चंद्रावई मकार ॥ १ ॥ || ढाल || वाजे तिवलडिए । ए राह ॥ के गोरी के सामलीए, सोढ़ावो रे, सोवन पाट, बेसारो के, विमल वधावो रे ॥ १ ॥ माणिक मोती साथीया, सोहावो रे, पहिरो सवि सिपगार के, गेले गार्ड गोरडी, सोहावो रे, बोले मंगल चार के, विमल वधावो रे ॥ १ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५ ) ॥चौपाई॥ श्रावी विमल बेगे पाट, नीमराय तव जेटण साट; बत्र चामर मोकली सार, त्रिहुं खंडे तोरो व्यापार ॥ १॥ में मोकलीयां गनने नाव, सात बत्र सिर चमर ढलाब; करे वीनती बे कर जोड, तुम्ह इहवे अम्ह लागे खोड ॥ ३॥ अम्हस्युं डंस रखे मन धरो, तुम्ह विवहार अडे आकरो; नीमे जे मोकळ्या प्रधान, ते संतोषी थाप्यां पान ॥३॥ घणा दीवस दोहले खलजल्या, सिंधु देशना महेता मख्या; मेहेलो प्रनु पंड्यो अखंम, मुह माग्यो वलि लेयो दंग ॥४ उपन्न कोडि धन दंझे करी, त्रण लाख वली ताजा तुरी; आण मनाची प्रात्यो देश, विमल वधाव्यो नगर नरेश ॥५॥ रान पंड्यो के जइरहे, अह निसि आण क्रिमलनी वहे; रोम नगर ने मा हुति, वरस वरस आचे. खिजमति ॥६॥ चमिन रयवाको जोड फिरी, तिसन देखे चंडापुरी; विमल वाणि से मुख उच्चरी; Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ (१३३) वासो नगर विवेके करी ॥ ७॥ गढ पाया पा. ताले धर्या, कोठा लाख कोमि के कर्या; कोठे कोठे देवि अंबावि, आगल नवी निपाई वाव ॥ गम ठाम नम कूवा चार, पाणि आणे पाणी. हार; घर घर खारि मीठी कुई, जले जरी वाव ते जुई ॥ ए ॥ धवल गृह मांड्यां धोरणि, कोरी कारीगर कोरण, के मंदिरनी मोटि वात; तूमी नली सोहाची सात ॥ १० ॥ जोतां गोख तणां ते बार, आव्यो इंजनुवन अवतार; राडे ते झमेमे घर नयाँ, जे हीणां ते अलगां कां ॥ ११ ॥ बहु अन्न अवारि आज, जेणे ज्ञहुं नावे राज; कण बाणां सोधे इंधणा,मांड्यां जीव जतन ते घणां ॥ १२ ॥ पाणी लोक त्रवेली गले, धर्मे धन अधिकरं मले; आण मध्य को न कहे मार, सात व्यसन ते अलमां कार ॥ १३ ॥ घर घर लदाणवंती नार, सिणगाही अमरी अवतार; वेचे वित्त चित्त परिघली, करणी करे पुण्यनां जलां ॥ १४ ॥ चिहं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) पासे मंगावी पोल, चोरासि चौटानी श्रोल, चहुटा विण नवि थाये पीठ, चोहटा विण ते नगर न दीठ ॥ १५ ॥ चोहटे काव्य कथा रस कहे, रायना बेटा चहुटे रहे; चोहटे शोले दोसी हट, चहुटे घाटघमा विहट ॥ ॥ १६ ॥ चहुटे फल फोफल ने शाक, चहुटे करे कंदो पाक; फमीया सुखमीथानां हाट, चढुटे दहीं वेचाये माट ॥ १७ ॥ चहुटे धुर सोनी सोनार, मिल्या डबगर ने मणीश्रार; चहुटे गांधी गुगां करे, फोफलीया ते फोफल जरे ॥ ॥ १७ ॥ चहुटे सांथ सयल मंमाय, चढुटुं जोतां नवि बंमाय; नाणावटी कपासी तणां, हाट सुगंधी पटुथा घणा ॥ १५ ॥ सूत्र सांथ ते सोहामणि, चहुटे सहु धाये धन नणी, आवे परदेशी वडीयात, चहुटु देखी थाय रखीयात ॥ २० ॥ वस्तु विकाये चहुटे चडी, विसी विसा हीलि तडफमी; मदेतामांमवीआनां गम, चहुटा विण नवि सीके काम ॥ २१॥ जमीया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३५) जडे जडित श्राजर्ण, चहुटे वत्तें सघला वर्ण; चहुटे वस्तु चडे नव लखी, करे परीक्षा जे पारखी ॥२०॥ चहुटे मोटी पाणी पर्व, चहुटे गाये गण गंधर्व; चहुटे बेग बोले जाट, चहुटे धर्मतणा आघाट ॥ २३ ॥ चहुटे चोपट जो जवहरी, चहुटे वस्तु अमुलिक खरी; रुपागरा चीतारा चाहिं; घांची मोची चहुटा मांहिं ॥ २४ ॥ खासड खेडां मोजड घमे, जे जोये ते चहुटे जमे; दयावंतनी दृष्टे पड्या, जीव मुंकाये चहुटे चडया ॥ १५कणबी कंसारा कुंनार, गांडा बिपा सही लोहार; चहुटे चीतवसे (चहुं गमां, माली तंबोली तेरमा ॥२६॥ चहुटे जो मंगाई जात्र, चहुटे नाचे नवलां पात्र; चहुटानी मंडा. वी हार, कया त्रिकलशां तोरण बार ॥२७॥ संताप्यो घरथो नीसरे, चहुटे जातां मुख वीससे जेहोने चहुटुं पुजे प्हरे, करे लीला ते बेगं घरे ॥२७॥ नगर तणां कीधां ममाण, जे जोई परदेसी जाण; वैद्य वईद ने व्यवसाईया, गम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३६) गमथी ते आईया ॥५॥श्ववटीने बाटावटी, मासी वासि नवरंगी नटी;गना गम नलानालवी,श्राव्या वेग वश्या मालवी ॥३०॥वाजिनीया तायें मबगरी, नगरी वर्ण अढारे नरी; सोमामा ते राखे सीम, कोटवाल ते कीधा जीम ॥ ३१ ॥ जे जे जोसी पंमित हता, वसीआ नागमती नायता; वसे अढार वर मंदिर कोध, पोरुग्राम वास्या परसिक ॥ ३२ ॥ ज्ञाति चोरासी जे निर्मली, विमल विशेषे वासी वली; वसे विप्र विद्या अन्यसे, खत्री खांझे मन उनसे ॥३३॥ तुठी जस अंबाई मात, विमल प्रासाद कराव्यां सात; मंग कलस सिर धज लह लहे, पोढी जिन प्रतिमा गह गहे ॥३४ ॥ तपसी मठ नवली निशाल, राजन्नुवन पासे पोसाल; खट दरशन कीधा विश्राम, गम अनोपम कीधा ताम ॥३५॥ वामि वन नंदन तयाँ, दह दिसि सबल सरोवर नयाँ; पाषाणे दृढ बांधी पाल, खाई धाई गई पाताल ॥ ३६ ॥ के लंका के अमर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३७ ) वती, चिह्न युगे नगरि चंद्रावती; इंद्र सरिखो विमल नरिंद, करे राज त्रिभुवन आनंद ॥ ३७ मागण जन वंबित दातार, करे निरंतर पर उपगार; त्रिभुवन तेज तपंतो धीर, परनारीनो प्रगट्यो वीर ॥ ३८ ॥ ॥ वस्तु ॥ विमले वायुं मिले वास्युं, नगर सुविशाल; चंद्रावई पोशाल वर, जेणे धर्म थानक करावी; सात प्रासाद सोहामणा, जेणे बिंब पोढां जरावीत्र्यां चतुर्विध संघ मेलि करी, श्री शेत्रुंने गिरनार, यात्र करी घर यावी यो, वद्धावे नर नार, वळावे नर नार ॥ १ ॥ ॥ चोपाई ॥ पट्टण सहगुक करे प्रवेश, अर्बुद तीरथ दे उपदेश; अंबाई आराधन कहूं, तो मन वंबित विमले लघु ॥ १ ॥ धर्मघोष सूरिश्वर सोई, चंद्रावर पधार्या जोश; व विमल करे उल्लास, चंद्रावर राख्यां योमास ॥ २ ॥ खं खं मति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३७) ने निर्मली, श्रोता सांजलज्यो ए जली, विमल मंत्रिने रासे जाण, एटले अहम खंग वखाण ॥ ॥३॥ सर्व गाथा ॥ ११४ ॥ इति पंडित लावण्य समय गणि कृते, श्री विमल मंत्रि प्रबंधे, नव खंडे पश्चिमाधिपति पंड्यो राजा जैत्याधिकारे, युद्ध वर्णन, पाटण स्थापना, जीम जुपति प्रेषीत, बत्र चामर गज वर्णन, धर्मगुरू प्रवेश महोछवाधिकारे अष्टम खंग संपूर्ण ॥ ॥ अथ खेम नवमो॥ ॥ चोपाई ॥ संघपति पदवी पामी वली, विमल मंत्री पूरी मन रूली; निसि पोढ्यो जिनवरने ध्यान, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३५) सुपन मध्य गज सायो कान ॥१॥ जाग्यो तव गुरू आगल गयो, सुपन कही रलीआयत थयो; सहगुरु सुपन विचार्यु तिसे, कई को करमे बेटो हसे ॥२॥ धर्मघोष बोले गणधार, कई को तीरथनो उझार; कई को करस्यो मोटुं काम, जेणे तुम्ह रहेशे अविचल नाम ॥ ३ ॥ आव्यो संघ सकल समुदाय, धर्मकथा कहे सहगुरु राय; जे जिनधर्म जगत्र दाखीउ, चिहुँ नेदे जिनवर नाखी ॥ ४॥ वीस सहस नवसें त्रण मास, पण दिन पोहर घडी आस; दो पल ने अदर अवताल, वीर पनी होलि विसराल ॥ ॥५॥ वरस बेहि उप्पसह हुसि, तेह सहित धरम जाईसि; मानव बीज रहे तिण नले, गिरि वैताढ्य (बहुतर बिले ॥६॥ कहिये सकल धर्म तेहने, गुण एकवीस अंगि जेहने; काचे कुंन अमी आवास, सुंदर साहमो हुई विणास ॥ ॥ श्रावक गुण एकवीसे वमा, नही कुछ इसी पडवना; प्रकृति सौम्य लोक प्री सदा, श्रावक कुटुं न बोले कदा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) ॥ ८ ॥ पापनीरु जे मूरख नही, दाखिण लाज दयालु सही; मध्य जाव सवि केस्युं रह्यो, सोम दृष्टि गुरुरागी को ॥ ए ॥ धर्म कथन निर्मल कुल होय, दोरघ दरशी श्रावक जोय; संगति वा विनय आदरे, गुण कीधो ते हईने घरे ॥ १० ॥ लबध लक्ष परहित जे दया, श्रावक गुण एकवीसे का; न्याय थकी घर लखमी मली, गुरु आचार बखाणे वली ॥ ११ ॥ श्री खे कुल वरते विवाह, पण ते गोत्र अनेरा मांह्य; मात तात गुरु जक्ति अपार, देशाचार करे व्यवहार ॥ १२ ॥ अवगुण कहिना नवि उच्चरे, सदाचारनी संगती करे; नही संकट ने नीच नही जिहां, थोमे द्वारे मंदिर तिहां ॥ १३ ॥ अति बानो प्रकट नवि वसे, टाले पाप पुण्य अन्य से; लाज मान घर लागे वरे, सिर अजरे जोजन परिदरे ॥ १४ ॥ जाणे अंग तषां बल जलां, जीपे वयरी जे मांहीला दान दया दम आणे देख वित्तिमान पहिरे पण बेष ॥ १५ ॥ पहिलं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४१) इसु परिक्षा करी, धर्म योग्य श्रावक ते धरि; समकित आदे दे व्रत बार, पंच अणुव्रत वीये नार ॥ १६ ॥ धरीये ध्यान देव अरिहंत, जगति नली सहगुरुनी संत; जिनजाषित ते साचो धर्म, त्रिहुंए बोले समकित मर्म ॥ १७ ॥ पहिले प्राण हिंसा ए टाली, बीजे अली म बोलो वली; त्रीजे व्रत चोरी मम करो, परनारि चोथे परिहरो ॥ १७ ॥ व्रत पंचमे लोन घण टाल, बके दिशिनो निश्चे पाल; व्रत सातमे लोग उपत्नोग, अनर्थ दंड आठमे योग ॥ १५ ॥ नुमे सामायक आखेप, दशमे दिसिनो सदा संखेप; पोसह पुण्यव्रत अग्यारमे, अतिथि दान द्यो व्रत बारमे ॥ २० ॥ आपण उत्तम थई वापरे, खावे पीवे गति नवी करे; विण अंतर जो उत्तम थाय, नर बीजा किम नीच कहाय ॥ २१॥ श्रावकने घर हुए आचार, जाणे नद अनद विचार; सहगुरु वयण वखाणे इस्युं, जाणे नही तो पाले किस्युं ॥१२॥ कंद जाति ते सघली नणी, ए बत्रीस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) कहावे गण); सूरण वज्रकंद ते वली, आ3 नील हलिमा टली ॥२३॥ थेग ने गजार मूला नला, आलु पिमालु ने वहां; मोथ कचूर नीला खरसुआं, जुमिझहा ने खिलोमां जुया ॥ १४ ॥ वेस करलतानी कुंपली,अमृतवेल कुंली अांबली; प्रथम वाथलु कापी जेथ, शाक लेद सवंक सुणेय ॥ २५॥ सूरण व विशेषे वार, गिरिकन्नी थोहर कुंवार; गेला सिताउरि लसण बिराल, खूण लोटां लूणा तझ ठगल ॥ २६ ॥ खूणे बाले साजी थाय, कमल कंद ते लोढ कहाय; खूणा बाल नमर तज्ञ नाम, विण पूढे किम लहीये गम ॥ २७ ॥ संधि सिरा ते गूढी अंग, जे नांज्युं नाजे सम जंग, माल वेल बेदी पालवे, जीव अनंत जाणी जालवे ॥२॥ एणी परें बोट्यां अहिनाण,. पुहतो देश देशाउर जाण; ज्यां ज्यां वस्तु देखे इसी, जीव अनंते काया ग्रसी ॥ ए ॥ ते नवि खाये जे हुए द६, प्री जे बावीस अनद, वट पिंपल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४३ ) उंबर ने प्लक्ष, काकोडुंबर पंचम वृक्ष ॥ ३०॥ मधु मांखण ने आमीष सरहो, रयणी जोजन ते परिहरो सवि मट्टी अत्थाएं अनंत, बहु बीज फल तुष्ठद अंत ॥ ३१ ॥ घोलवमां ने विंगण जाण, अणजाएया फल फुल म आपण; हीम करदा विष सवि रस चढ्या, ए अक्ष बावीसे मल्या ॥ ३२ ॥ द्रव्य क्षेत्र काले नव नवां, ते अक्ष जाणे तेहवां वर्ण विशेष वली टालीये, त्रण वार पाणी गालीये ॥ ३३ ॥ लांबा गलणां अंगुल श्रीस, छतिस गटां पुलपण वीस; खारां मीगं नवि जेलीये, संखारा थानक मेहेलीये ॥ ३४ ॥ ईंधण कण रंधण पाणीये, जीव तणी जयणा आणीये; खंडण पीसण लिंपण खले, जाणे जीव वधाये रखे ॥ ३५ ॥ वासी पोली जंदन दहीं, सोल पहोर उपरिरूं नहीं; वरजे वासी वली कठोल, म जमे जे मलवारी गुल ॥ ३६ ॥ सीयाले दिन बोल्या त्रीस, उन्हाने दिन जाये वीस वरसाने दिन पन्नर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४४) मान, दिन वोले म जिमो पकवान ॥३७॥ फासु लवण रहे दिन सात, वरसाले ए बोली वात; पनर दिवस सीआले जोय, मास दिवस नन्हाले होय ॥ ३७॥ पीस्यो लोट पंच दिन लगे, बोत्यो मिश्र शास्त्र मुलगे; अणचाक्ष्यो श्रावण नावे, नव नव निरति मास नव नवे ॥ ३५ ॥ श्रासो काती चार वखाण, मागसर वली पोसे त्रण जाण; पंच पहोर माह फागुण मांहिं, पहोर चार चैतर वैशाहि ॥ ४० ॥ जेठ यासाढे पोहर वत्त, त्यारपली दल हुए अचित्तः चाळ्या - पछि बिहुं घमीए होय, फासु लोट कहिजे सोय ॥४१॥ पंच पहोर उन्हाले कद्या, चार पहोर सीआले लह्या; त्रण पहोर वरसाले नणो, कह्यो काल ते पाण तणो ॥ ४५ ॥ दोहे पाणी फासु करे, राते उकाट्युं वावरे; निरति विरति जो आणो सार, तो श्रावक सुधो आचार ॥ ४३॥ पालिम रयणि घमी बे चार, तव नयणे नर बी निवार; उठे मुख गणतो. नवकार, संजारे कुन धर्माचारः॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४५) ॥४४॥ सामायक पडिकमणुं करे, दिन उगते सिर विहरे; अदत फल दीगो जिन नाण, जेटि सहगुरू सुणे वखाण ॥४५॥ दे वंदणा विनय. ना जाण, करे श्रीगुरू मुख पचखाण; पबी थाजिवीका उपाय, लहु आरन तणा व्यवसाय ॥ ४६ ॥ जोजन वेला हुए जेटले, कुसम काज नर को तेटले; पहिरी धोती ज्योती निर्मली, करी हाथ वरचुं कमली ॥ ४ ॥ अनुहाणे चरणे चा. त्यो जाय, वेगे पदोतो वाडी मांड; माली सहजे चुंटे फूल, धरे गम ले थाली मूल ॥ ४॥ आएयां फूल विधि जे घणां, पय पुजण परमेसर तणा; न रहे साथ अनेरे काम, थाणी मेले उत्तम गम ॥४॥ घर नायक तव आव्यो घरे, पश्चिम साहमुं पावन करे; पहेयाँ वस्त्र परहां ते मेल, मरदन अंग सुगंधी तेल ॥ ५० ॥ गली नीर साचवणी करी, उन्हा जलनुं नाजन जरी; जोश् चोखे थानक ढालो, पोढो पाट ते परनाली ॥५१॥ वे पुरवसामो थई, अंग पखाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४६ ) पाणी लाई, अंगोली जल कुंडी जरी, ते नाखे जल जयणा करी ॥ ५५ ॥ जे अंगोलि तj पोती, मेली पहे। पर होती ; नही खांडु बांडु जे विमल, ले होली का पो धवल ॥ ५३॥ रक्त वस्त्र ने रातो पान बम का ते पुजा मूल; लक्ष्मी का सीना करे.सीला पुप्फ वस्त्र ते धरे ॥ ५४॥ हालांयामा फूल, वयरने सिर माथासुल; धरला पोतो धवलां ध्यान, धवले फूले मुक्ति प्रधान ॥ ५५ ॥ धरो ध्यान पूजा सारिखां, पुहचे मन वंचित पारखां; धवल वस्त्र ते उत्तर तणी, पहिरि लखनी वाधे घणी ॥५६॥ पहीलं जाम मंदिर माह्य, देवालो जोडावे गय; निर्मल थानक अति अनिराम, उपर चंखुया चित्राम ॥ ५५ ॥ दोढ हाथ जुईथी नणी, चि प्रतिमा रही जिनतण); अधिके उके दोष म जाण, करे मृत्यु के पाडे हाण ॥ २७ ॥ उत्तरपट उपर उठ; तेणे सिर ढांके आपणुं, आठ पडो कर मुख (स, जिनवर सास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४१ ) लगाडे दोष || २ || बेसे पूरव उत्तर जणी, पूजा करवा घरनो धणी; दक्षिण दिसी संतान न सरे, पश्चिम चोथो नवि उद्धरे ॥ ६० ॥ नैऋतकु कुलक्षय जाए, अगनिकुण बोली धन हाण; वायकुण संतान न फले, ईशाने अवश्य तचले ॥ ६१ ॥ पूजन केसर चंदन पखे, देवकाये खरडो नवि रखे: नरसी आयो कसकसो, तेणे सुकड लगी घसो ॥ ६२ ॥ पहिरो मुकट कनक कंकणां, नहीतर करज्यो सुकड तणां; पूजेवोनिनो नाथ, आघो म धरे खाडो हाथ || ६३ || जो घर रिद्धिन पुढचे घणी, कर मुद्रा न हुए सोवन तणी; आणी पाणी निर्मल चंग, पूरां देव पवाले अंग ॥६४॥ वालाकुंची ये खूणा घणे, लदे घणा प्रंग लूदणे; पूज्या विण करथी ममं मेल, के चंदन के चंपक वेल ॥ ६५ ॥ पाय जानु कर दोदोपवा, मस्तक पूजा बोली सवा; जाल कंठ हृदय स्थल पेट, पूजा पंडी जिनवर नेट ॥ ६६ ॥ नवे तिलक नर त्यां सा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४० ) चवे, दीवो जिन दक्षिण कर उब; ढोर्बु आगल डाबे धूप, दहण चंदन ध्यान स्वरूप ॥ ६७॥ क्यारे कुसुम हाथथो खट्यु, अथवा जुमि साथे जई मट्यु: लागुं पाय कुसुम ते धर्यु, नानि हेठ सिर उपर कडें ॥६॥जे जे जंतु नीच श्रानडयां, कीमे खाधां खरड्यां सड्यां; रक्त धवल कणयर परिहरो, आखू फूल म कटका करो ॥ ६ए॥ स्यां फूल तुझे दूरे करो, जुगति मुगति कारण परिहरो; ए गकुर शिव पुर सारथी, तहारी पूजा साझ नथी ॥ ७० ॥ तिणे फल फूले पूजा करी, नीचतणे कुल ते अवतर; पामे फल पूजानां सोई, उत्तम कुल नावे नर जोई ॥ १ ॥ कलस धूपधाणे चिहुं पखे, जिनवर को लागे रखे; जिनवर पुजानो समुदाय, रखे किशुं मंदिर ववराय ॥ ७ ॥ देवालाने दिवे जई, घरनो दोवो म करे सह); धूप दही ले फल पकवान, कोरां टाली रांध्यां धान ॥ १३ ॥ ते सघलां थाये देवकां, जिन दृष्टी पड़ी शांविर थकां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४९ ) " जाणे देव छठे घर तथा ठाकुर कहीये न हुए आपणा ॥ ७४ ॥ जो जाणे परि सेवा तणी, ठाकुर पदवी दे प्रापणी; जिनवर पूजा सदा संजाल, चोराशी आशातना टाल ॥ १५ ॥ ज्यां थानक नवि हुये माठ, रही अलगो प्रणमे कर साठ, नव कर निरति कही निरवाए, वर अवग्रद् मध्यम जाण ॥ ७६ ॥ निसीही पहेली घर परिहरे, चिंता देव जुवननी करे; बोजी निसीढ़ी पूजा साथरि, जिन मंदिरनी चिंता वारि ॥ 99 ॥ त्रीजी निसीही पूरी कही, करो भ्यान जिन घ्यागल रहो ; करी अविधि आशातन हवी, जिनथानक नाक नसिक्युं रावी ॥ ७० ॥ खेल थूक रामत कोगला, कीधुं खुं खुं सीखो कला; मैथुन मन कलहो कर्यो, जिन मंदिर को हढि घर्यो ॥ ७ ॥ बाणां कापम पापड वी, दाल उगवी देहरे चडो; सिर कर अंग पखाल्या पाय, करी वात बीजा उपाय ॥ ८० ॥ नाख्या मख नोमाला पली; चामर छत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५० ) ढलाव्या वली; धर्यां शस्त्र पहेरी पावमी, नाखी गड गुंबम खालडी ॥ ७ ॥ नयण कर्ण मस्तक ने खाल, नख नासिका दंत ने गाल; ए श्राठे मल नाख्या दरी, बेगे पग उपर पग करी॥७॥ रांध्यु के अंगीतुं कयु, के जिनमंदिर ढोरे जयु; जेट्या जिन पहिरे खासमे, रामत रमी गेडी दमे ॥ ३ ॥ नाख्या रगत पीत नही जला, ह्या वमन नाख्या कोगला; नागे के बेगे जुवटे, कर्या वणज सालट पालटे ॥ ४ ॥ के तंबोल जखी सुखडी, करी नीत ते लुहमी वडी; चंप्यो चंपाव्यो पमपमी, कयाँ युद्ध घडी पा घमी ॥ ५ ॥ दीधा सराप गालि घणहठी, पाडी होम करी पालठी; पाड्यो पगरज पगनो पंक, सुतो नीड़ा करे निशंक ॥ ६ ॥ जंड कला जोजन फीलगुं, वीण समारी पारिखपणुं; नाख्या दंत दम्या खर तुरी, साता वस्तु वहेंचण करी ॥ ॥ कर्यो मंत्र घड्यां हथोबार, कस्यो साद देई रे कार; मुकुट खुप ते नहि गेडीथा, जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५१) दी कर नवि जोमीया॥ नवि कीधोसचित परिहार, विण सचित न कयों सिणगार; वईडं कर्यु कराव्यु होय, मेल्या लोक आप को कोय ॥ए आठ पमो न कर्यो मुखकोस, विण उतरासण लाग्यो दोष; पहेरी धोती सान विण जेअ, बेगे पाय पसारी बेथ ॥ ए० ॥ दोधी पुंठ जोई जिन जणी, आशातना अवर जे घण); ते वरजो जाणी मन माह्य, जिम तुसे त्रिनुवननो राय ॥ ए१ ॥ फूंक ढिंक ने तंती ताल, लालो पंचम नेद विशाल; नवले नाटक परछे पाग, वाजे वाजित्र रंगे राग ॥ ए ॥ गौमी कौलाहल विचार, माली कौशी देव गंधारः अतिम सिरि अंधाजलि खरी, खट नापा श्रीराने बरी।ए३॥ रामगिरी देशाख तोखार, कुंटगिरी पुलंजरी सार; धन्यासी कीजे मन खंत, ए खट नापा वरो वसंत ॥ ए४ ॥ प्रक्तका हसी ने . मी . कर्णाटो गूजरी सिंधकी, वेलानाल खट जाया लहे, तेहनो स्वामी पंचम कहे ॥ एए.॥ त्रिगण कंकन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५२ ) खंजायती, जेरी सामेरी सती, वयरामी खट जाषा वली, जावे भैरव सरसी मली ॥ ए६ ॥ बंगाली देवज महूारी, दोषशाटिका देवजगिरी, कामोदा खट जाषा एह, मेघ राग सरिखो सन्नेद ॥ १ ॥ तोडी तोमकी ने जुपाल, माहिम डुंबी मत्री माल; खट जाषा नव नव परी जी, ए ए नटनारायणी ॥ ए८ ॥ खट रागे इम जाख बत्रीस, बोल्या राग सदस बत्रीस; बोल्या मिश्रानामे बहु होय, तेहनो पार न पामे कोय ॥ एए ॥ रिद्धिमान जिन पूजा कही, खाठे सतर दें सही, एकवीस ने श्रोतरी, सहस लाख परि को करी ॥ १०० ॥ दहे पाप उखेवे धूप, दीप नसामे दुर्गती रूप, पूजा राज्य रिद्धि रस रंग दे नैवेद्य सौख्य सपत्तंग ॥ १०१ ॥ तव नियमा लहे मुगती विशाल, दाने नव नव जोग रसाल, देव जगति जली राणिम जोय, पण मरण इ उ मे होय ॥ १०३ ॥ दे गुरू सही सुतो आहार, मात तात त Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५३) करे सार; सतर अढार जोज्य रसवती, तिह अजद टाले जिनमती ॥ १०३ ॥ घट फली कणसडु प्रधान, त्रिहुं प्रकारे टाले धान; कंद पुप्फ फूल शाखा पत्र, पंचाशक ते कह्यां विचित्र ॥१०४ ॥ जल थल खचर जीव जग नणे, त्रिदुंना आमिष त्रण जे गणे; तीखो मधुरो कटु कसाय, खट खार खट रस कहेवाय ॥१५॥ सतर नोज्य ए पूरां थयां, सुण अढार जे जिण परि कह्यां; वाव्यां वेमि धानजिदोय, त्रण आमिष पर सिध्धां जोय ॥ १०६ ॥ गोरस शाक चिहुं चिहुं परे, तेल हिंग कुरस आदरे; लवण वार नव नव विस्तार, मस्यां नोज्य एटले अढार ॥ १० ॥ पीलुं अन्न तेहु नवि जमे, तेहy नाम विदल उपजे; तेम जमो दधी तक मजार, एम बोल्युं गौतम गणधार ॥ १० ॥ जीव तणी नितु जयणा चणी, खप कीजे चंञो. दय तणी, जल दल खल खंगण रांधणे, शिका थानक संकेरणे ॥ १० ॥ जोजन जुमि घणी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५४) ववराय, सुण समु देवाला थाय; कर चोदय चोपट चंग, जो मन जिन धरमनो रंग ॥ ११० ॥ जमतां अन्न न विखोडीए, विण सवाद मुख नवि मोडीए; प्रीशुं नोजन नवि गडीए, वातजी हरस नवि मांडीए ॥ १११ ॥ बेगे थासणथी मम चले, नोजन अवर साथे मम नले; उणो उठे को लिए वे कोलिए, मुख पवित्र कीजे तंबोलए ॥ ११५ ॥ देह शुकि नवी धारी खरी, पढ़े जिनवर दर्शन करी; वाम अंग धरि धरि विवेक, जय सिज्या पोढे क्षण एक ॥ १९३ ॥ उठ्यो वली करे व्यव. हार, नीच सरोसो नही व्यापार; नवि लोपे जिनवरनो धर्म, प्री पन्नरे खर कर्म ॥ ११४ ॥ बाली काठ करे अंगार, वेचे करमज ते के कुंनार; वाह सोनार लोहार, अगनि कर्म इंगाल विचार ॥ ११५ ॥ पाटा आंबा रायण तणा, वन बेद्यां अणद्यां घणां; वामी काळा करसण करे, पान फल वन कर्मजि हरे ॥..११६ ॥ घमें घमाबे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५५) धुंसर शकट, शाडी कर्म कयुं ते वीकट; नामे बलद उंट गाडलां, वादे नाडी कर्म न जलां ॥ ११७ ॥ कूप तलाव खणावी खाण, पाहण फेोड मेमि बल जाण, फोफी कर्म ते नूमिशुं मले, पंच कुकर्म कह्यां एटले ॥ ११७ ॥ आगरि दंत चर्म ने चमर, वोहरी जीव अंगज अवर; मोती हिंग कवम शंखला, ए वाणिज्य दंत केटलां ॥ ११ ॥ लाख गलि मणसिल ने खार, लख वाणिज्य करो परिहार; मधु मांखण घृत गुल नही संहरो, ढीला रस वाणिज्य परिहरो ॥ १० ॥ पशु पंखी मानव विवशाय, केश वाणिज्य वरो कदेवाय; विष पाखर आंगां हथीयार, थाट विष वाणिज्य विचार ॥ ११ ॥ ए वाणिज्य पंच मम करे, वली सामा. न्य पंच परिहरे; उखल मुसल नीसा वाट, कोहलु घाणी घरंटी घाट ॥ १५ ॥ करे वाणि ज्य कांकसीा कोश, पीलणं कर्म कहीने सोश, पुश अंगे पडावे आंक, समरावे फोडावे नाक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५६ ) ॥ १२३ ॥ कान पुन वेदे खफणी, पूठ कलावे करदा तणी; दाण वोलावी थाई तलार, लिगोतिहरानो व्यापार ॥ १२४ ॥ पाटा गाम मकाते करे, हुंता कराकर करे, निर्दयपणां तपां जे काम, ते निलंबन कहीये नाम ॥ १२५ ॥ धर्मबुद्ध के वयरे कर के बाले उगंति हरी; दे दावानल ते दव कर्म, किम पामे जिनवरनो धर्म ॥ १२६ ॥ सरोवर यह सुकविया कुत्र्या, के उलीच्यां जल जूजू कास निक वालतां अधर्म, ए कहीये सवि सोसण कर्म ॥ १२७ ॥ हिंसा करे जीव ते सदी, पोसे सुडा ने सालही; कूकम स्वान मोर मांजार, पृष्ट नारि सवि परिवार || ॥ १२८ ॥ पोसे दास दीकोलां घरि, जाणे वेचुं मातां करी; माबी तेली ने तेरमा, बाबर कठिन कसाई समा ॥ १२९ ॥ वागरीयां सरीसो व्यवहार, सती पोष म क़रो लगार, ए पनरे खर कर्मादान, टाले श्रावक सोइ प्रधान ॥ १३० पहोर पाढली वेला लही, सामायक पडिकम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५७) सही; घरी निर्मल काजो उझरी, आवे सिरि साचवणी करी ॥ १३१ ॥ पुर मंदिर चिंता परिहरे, समता सामायक श्रादरे, गुरु विरहे उपहारि थाप, जीव योन खमावे आप ॥ १३॥ पंच सहस खट शत ने त्रीस, जीव नेद बोले जगदीश; मिला उकम जेद विचार; विगते वर्ण बिलाख अढार ॥ १३३ ॥ पूरा परठे सहस चो. वीस, एकसो उपर अधिका वीस; मिठा पुक्कड थरथे करी, खामो तो पामो सीव पुरी ॥१३४॥ मि मृमुनावि घणमां कोये, बा पर दोष सकल ढांकीय; मि कहेतां मर्यादा रह्यो, उ श्रापोपुं मर्यादा ग्रह्यो ॥ १३५ ॥ क कहिजे जे कीधुं पाप, म ते उवसम आणी आप; अरथ सहित जे एणी परे लह्यो, सुधो मिला मुक्कम कह्यो ॥१३६ पुढवि काय अप तेन वाय, सात सात लाख कहे जिन राय; वणसर दश लाख बाहर वली, चौद लाख अनंते मती ॥ १३॥ बि ति चरिंदी दो दो लाख, तिरि पंचिंदी चुलख जाख; सुर नारय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५७ ) चल चल लख कवी, चौद लाख जेदे मानवी ॥ ॥ १३७ ॥ सामायक पुंठे पचखाण, चौद नीम संगारे जाण; प्रह उगते लीधा मन रूली, (ते) संध्याए संखेपे वली ॥ १३५ ॥ सचित प्रव्य विगे पारखां, वस्त्र कुसम वाहन सारखां; शयन विलेपन दिसि अंघोल, ब्रह्म जगति संख्या तंबोल ॥ १४० ॥ वांदी देव अध्धुं जव बिंब, लही वेला गई अविरंब; अतिचार एकसो चवीस, बालोश्ए करि नामी सीस ॥ ११॥ समकित आदे व्रत ग्यार, संलेखणा सरिसा बार; पंच पंच बोल्या नव मिळ, अतिचार पो हता पांसह ॥ १४२ ॥ व्रत सातमे वीस विस्तार, तपाचारना बोल्या बार: वीर्याचार तणा त्रण नेल, अतीचार शत पूरा मेल ॥ १४३ ॥ ज्ञान श्रने दर्शन चारित्र, आठ आठ बोला पवित्र मनस्यूं आलो निसि दिस, अतिचार एकसो चोवीस ॥ १४४ ॥ सामायक पुहते संज थयो, पारी पागे मंदिर गयो; अणसण समकित गाथा जणी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १५ए ) पोढे निघा अलप न घणी ॥ १४५ ॥ आवे परवे पोसह धरे, त्रण काल जिन वंदण करे; बहु सावध योग परिहार, सहगुक सरिसो अर्थ विचार ॥ १४६ ॥ जुर्म श्म श्रावकनो आचार, पाले पामे मोद दूधार; पनि मोह तणे जंजाल, नर जव गमे अमूलिक आल ॥ १७ ॥ केनुं राज केना गज तुगे, गयो रावण जे लंकेशरी; गया राम राजा हरिचंद, मुंज नोज गणपति गोविंद ॥ १४ ॥ गया देव चोवीसे आज, गया नल विक्रम मेली राज; गयो राम दशरथ जे तात, गयो नरत जे जग विख्यात ॥ १४ ॥ महारी महारी म करीश धरा, नहि आपणा देह पाधरा; नवे नंद ने नव इंगरी, ते कहो कुण साथे संचरी ॥ १५० ॥ गाम देशनो करे संहार, आगल नरवू पेट नंडार; एक जीव वधतां जे पाप, जाणिश परनव देतो जाप ॥ १५१॥ करे राज मद आणे हीये, करतां पाप आप नवि बिहे; कुण मोटा न्हाना यातमा, परजव राय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६० ) रंक ते समा ॥ १५२ ॥ वेला घडी पहोर जे जाय, ते श्राउ उडं थाय; खलहल जल वूग गिरि ढले, ते निफरणां पाठां वले ॥ १५३ ॥ सहगुरु वाणि श्रवणे सांजले, तिम तिम विमल नयण जल नरे; कर्यां कर्म नस्यो प्राणी, फुःख सहित पुर्गति ताणी ॥ १५४ ॥ दान सिल तप ने नावना, करतां दिन आये जेहनां; तेहनु माम जपो मन मांड, जिम ए काया निर्मल थाय ॥ १५५ ॥ ज्यां खग धन त्यां लग सगां मले, धन विण सगां सहोदर टले; बेटा बेटो बहिनर जाय, धन विण नारि पियारी थाय ॥ १५६ ॥ जे करशे जोगवशे सोय, पाप न वहेंची लेशे कोय; देह उख जिम वसमुं थाय, वेदन विसु. कणई न लेवाय ॥ १५७ ॥ सुणी वाणी सहगु. रुनी घणी, पगे लाग्यो चंद्रावई धण); स्वामी एक वीनतमी करूं, द्यो आलोअप जिम जव तरूं ॥ १५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ___ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६१) ॥ वस्तु ॥ सुगुरु वाणी सुगुरु वाणी, सुणी नर राज मन वईराग्यो अति घणुं, कां कर्म कठिण गाढां; हवे मन श्राव्यो उरतो, सुणियां श्रवणे गुरु वचन टाढा; विमल मंत्रो इम विनवे, पाय न बोj हेव; पाप करी हवे ऊसनो, यो श्राखो. यण देव ॥१॥ ॥ ढाल ॥ ॥ करि पमिकमj, करि पडिकमणुं ॥ ए राह ॥ _हुं श्रशरण प्रनु तुं ताप हरणो, तुं समरथ गुरु राय; कर जोमीने करुं वीनती, सेवककरो सगुरु सुपसाय ॥१॥ द्यो आलोअण द्यो बालो. अण, (ए श्रांकणी) मागे विमल प्रधान; धर्मघोष सूरीश्वर पासे, आणी उपशम ध्यान ॥ यो थाम् ॥२॥ गुरु जंपे तुज किसि आलो. श्रण, कीधां कर्म अपार; सहस लाख लेखां नवि सहीये, जीव तणा संहार ॥ यो श्रा० ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६२ ) मांज्या देश नगर तें लुसियां, माय विठोह्यां बाल छाण चिंतवे घण आग लगाई, पशूच खुटो काल ॥ द्यो या० ॥ ४ ॥ खांडाने बेते होणितो, लीधी परधन को मि; तें दंड्या पृथ्विपति पोढा, लागी पातक कोमि ॥ द्यो य० ॥ ५ ॥ बोल्या कूरु मर्म तें मोसा, कीधा अति घण सोन; गुरु बोले सुप पृथ्वीपति, तुझ शी कीजे योज | यो ० ॥ ६ ॥ ॥ चोपाई ॥ धर्मघोष सूरी बोले इसी, तुऊ आलोखण किसी; महारंज कीधा लख कोम, देतां चालो अम्द खोड ॥ १ ॥ पण आगम बोल्युं बे तोय, मिथ्या दृष्टी यानक होय; त्यां जिन मंदिर किम्हे कराय, तो नरवर आराधक थाय ॥ २ ॥ ऊ बेलोनी खंत, धर्म वस्यो बे तारे चंत; वर मिथ्याती सरसो वाद, करतां जो निपजे प्रासाद ॥ ३ ॥ अर्बुद सिखर बेजिन, तेनो महिमा शुं वर्णकुं; ए बोल्युं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६३ ) बे उत्तम ठाम, करतां उद्यम सीजे काम ॥ ४ ॥ अचलेश्वर जे आगल छाडे, ए पर्वत थान्यो ढें पछे; तापस तप करता एणे वाय, तेह तपी नितु चरति गाय ॥ ५ ॥ मोटी खाम हती अडवडी, चरती गाय वरांसे पडी; तेणे धूमके धरती धडहडी, श्राव्या रिषि तापस दमवडी ॥ ॥ ६ ॥ नवि पेसाये नवि निसरे, डांग देखाने डचका करे; कामधेनु तत्र खीर ऊरी, जरी खाडने यावी तरी ॥ 9 ॥ संकट सोई सुखे उतरी, आवी रिषि आश्रम पाधरी; चिंते रिषि ए याव्यां मात, पण थी ए दोहली वात ॥ ॥ मल्या रिषिश्वर रावें गया, जो देमाचल कीधी मया; तुम्ह दी हे निर्मल कया, सजान मांहिं समुद्दता यया ॥ ए ॥ श्रम्ह घर रिद्धि बे तुम्ह ती, कहो कारण याव्या जेद जणी; कहे रिषि हे अर्बुद गिरि रहुँ, कामधेनु चावा नवि लहु ॥ १० ॥ अम्ह खागल प्रगटी पोढी खाड, पडे गाय ने जांजे हाड तहारा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) बेटा तुं बोलाव, धरी खंत ने खाम पूराव ॥११॥ निसुणी गोहत्यानी वात, लघू बेटो बोलावे तात; श्राव्यो अचल न लागो वार, श्राम तातने किध जुहार ॥ १५ ॥ ते रिषिने सुंपी आपीले, तेणे ते थानक थापीजे; गुरु जंपे चंदावई धणी, एह वात पर शासन तणी ॥ १३ ॥ अर्बुद सिखर रहे अर्बुदा, तेह तणुं ए थानक सदा; श्रोमाता जे पासे रहे, तेनी वात केटलाए कदे ॥४॥ श्रीमाता डे झप निधान, आठयो रसि देव प्रधान; बोलावी श्रीमाता माय, ढुं रसि आ. व्यो वर राय ॥ १५ ॥ जाणुं ताहर। बेटी वरं, वरि ढुं काम कहुं ते करुं हुं रसि बुं लील विलास, तुऊ बेटीनी पुरिश आश ॥ १६ ॥ सासू जाणे जोई हाथ, तो बेटी वलगाउँ साथ; तव सास रसिया सारखं, राखी रात करे पार ॥ १७ ॥ बार गाम वासो वर राज, चिहुं पोहरे जुङ बारे पाज; आवो गिरि निपाई नवी, तो पुत्री परणावू हवि ॥ १७ ॥ ज्यां क्रूकड नवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६५ ) वासे वली, शब्द कहीने सासू वली; सुंड्यो रसि वास्यां गाम, बार पाजनां कीधां ठाम ॥ ॥ १५ ॥ बांधी पाज सकल जब समी, थोडी थाके ले बारमी; सासू मन पेठो अंदोद, श्रीमाता उपर यति मोह ॥ २० ॥ में ए चापी बेटी करी, ए वर लेई जाशे वरी; हुं सती एकली निटोल, मुऊ बीजो कुण देशे बोल ॥२१ ममडोलो पेठो मन मांहिं, ए वर नयणे दीगे कोई; दीर्घं काम कर्पु ततकाल, दीघो बोल थाये विसराल ॥ २२ ॥ जे दीधा नारीना बोल, ते जावा जांगी ढोल; मांहिं पोला बाहिर नाद, वनिता सरिसो केहो वाद ॥ २३ ॥ पतली सासू तव प्रहसमा, करि कूकम वाश्या कारमा; रंगे रस लिखो थयो, श्रीमाता आगल जइ रह्यो ॥ २४ ॥ दृष्टोदृष्ट रह्यां वे जणां, चित्ते चित्त मां आपणां; अंग तो टलीउ संजोग, मनशुं मांगे मोटा जोग ॥ २५ ॥ बोल थकी चूकी तव धरी, सासू पंच ईटालि करी; लोक तणो पि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६६) परवाह, गुरु बाल सुण विमलज शाह ॥ २६ ॥ देव प्रते ए पर्वत अदृष्ट, गौतम रिषि नर रह्या विशिष्ट; तेह तणां ने थानक वडा, डुंगर मांहिं रह्या एकतमां ॥ १७ ॥ ए अर्बुद मिथ्याते प्रह्यो, सदगुरु बोल विमलने कह्यो; पहोतो विमल गयो अंबाव, ध्यान धरि बेगे महानुनाव ॥२०॥ त्रिहुं उपवासे प्रत्यक्ष हुई, मागो वर तुह्म तूरी सही; पहिलो वर मागो प्रासाद, अर्बुद सिखर सरीसो वाद ॥श्ए॥ बोलाव) जिन मंदिर नार, वात पडी डे वडे विचार; कहो तो सुत मागो वर लछ, कहो तो जिनमंदिर प्रसिद्ध ॥ ३० ॥ खी कहे सांजलो जरतार, सुत मागे वाधे संसार; के सुत जन्म्या कुल मंगणा, के खंपण उपाये घणा ॥३१॥ विरला बेटा लगता होय, विरला सुत कुल करमि जोय; केनी बेटी केनी मात, केना बेटा केना तात ॥ ३५ ॥ वेगे करि मागा प्रासाद, बेटानो माणो विषवाद; विमले पाणी मनट पणो, वर माग्यो प्रासावह तपो।।३३॥ 2 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६७) श्राव्यो विमल सहित परिवार, अर्बुद जिन प्रासाद विचार पुजारा नवि लाने पार, जरमा मल्या सहस ग्यार ॥ ३४ ॥ ए थानक शिव शासन तणुं, मदेता तुम्हे म करशो घj: रुवा मंत्रि लेशो प्राण, गम न आपुं शिवनी वाण ॥ ३५ ॥ करे अरमि ने मरडे बोल, वरि विसामार निटोल; बोले शिव थया एक मती, नूमि न श्रापुं अम्हे एक रती ॥३६ ॥ मंड्यो कल. कल नरडे मली, वारी विमल मनावे वली; को बोलो जाउँ उताप, धर्म काज खप नही संताप ॥ ३३ ॥ कहुं बोल जे तुम्हे सांजलो, मेली मनह तणो श्रांमलो; जो जोतां ए थानक थकुं, काई प्रकट हुए श्रावकुं ॥ ३० ॥ तुम्हे करवा यो प्रासाद, नहितर अम्ह सरिसो नही वाद; बीजं गम सविसेसुं ग्रह्यु, श्रीमाता श्रागल जई रघु ॥ ३५॥ ते. नुं शिव कहे एटले, जोईजो तम्हे तेटले; श्म कहीने जरमा वल्या, मंत्रीश्वर अंधाई मल्या ॥ ४० ॥ धरी ध्यान करि बेने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६० ) यक्ष, अंबाई यावी परत: विमले वात जणावी ताम, पूजाराशुं परव्यं श्रम ॥ ४१ ॥ कड़े अंबाई हूया तुम्ह जला, श्रीमाता आगल जे शिला; ते aral xari नाख, पासे करना जरमा राख ॥ ४२ ॥ इम बोले बाई अंब, ते देवल दादानुं बिंब, लाख ईग्यार वरसुं घमपुं, कर्मे कर तुम्हारे चमधुं ॥ ४३ ॥ खेत्रपाल अंबाई तणी, पासे मुरति काढे घणी ; ईम कही अंबाई वल्या, जरडा सरसा मंत्रि मया ॥ ४४ ॥ की धुं कर्यु बाई तणुं, जरमा मन मनाव्या घणुं; मोटो गढ कराव्यो तिहां, Jषण दीसे दादो जिहां ॥ ४५ ॥ खेत्रपाल बाई तणी, दीती दान मुरति आपणी; कामिपि सहित करावी जू, तीरथ जैन थापना हुइ ॥ ४६ ॥ श्रगल आलेख्यो प्रासाद, जरके सरमे मांड्यो वाद; भूमि ह्मारी वढ़ेंचण पमी, विण गरथे नावे एवम ॥ ४७ ॥ सोवन टंका मांडी जेल, ज्यां प्रासाद तो करो पोल; खपती चमि तुम्हारी करो, तो लेशो जो करशो बरो ॥ * Jain Educationa International For Personal and Private Use Only . Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६९) ॥ ४० ॥ तव सोवन टंका पाथरी, जाणे जिम मांडी साथरी; जे वच्चे अलग अगासी रहे, नूमि न आपुं जरमा कहे ॥४ए ॥ सोनैथा मांड्या चोकडे, ते उपर जो पंचम चके, आपुं जुमि तो अम्हे हसी, काम तुम्हारूं करशो धसी ॥ ५० ॥ विमले ते वर मानी वात, सोनैए जो चमशे धात; मांम्युं काज सरामे चमे, कुण गजुं सोनैया वडे ॥ ५१ ॥ आप्या सोनैया जिम कडा, संतोष्या सवि जरमा गया; तेड्या सिलावट से सात, जे जाणे वरतारावात ॥५॥ विद्या वास्तु विशेषे लहे, जे उत्तर पुढगाना कहे; पूजया मंत्रि जे जे जेद, आपे उत्तर में विद ॥ ५३॥ ॥उदा ॥ वर प्रासाद अनेक डे, सुण मंत्रिसर सार; एक बार दो बार हुए, त्रि बारो चो बार ॥१॥ मंडप मंस मंडीए, सोल सोल जो थंना थंज यंज.पण पुतली, माटिक करती. रंज ॥१॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७० ) चिहुं दिसि मंरुप मंग, त्रिहुं दिसि पोल सुरंग; मेल्या मंरुप उपजे, खोत्तर सुचंग ॥३॥ चार अह त्यां उपजे, बार सोल त्यां वीस; तो पंच्यासी उपजे, जो दिसि दिसि एकवीस ॥४॥ ॥ चोपाई ॥ inप प्रथम शिला ते कह्यो, आगल गुढ inप ते रह्यो; त्रीजो तेह नीवेद वखाण, चोथो तंदूल मंरुप जाए ॥ १ ॥ मंडप सनात्र पंचम जोय, बो चोकी मंडप होय, मंडप समोसरण सातमो, नाटक मंडप ते आठमो ॥ २ ॥ नुमो तुंगी मंडप जाण, दशमो मंडप वाजित्र वखाप; कोतुक मंडप अग्यारमो, बोल्यो ईंद्र मंडप बारमो ॥ ३ ॥ माला छत्र जे जे कह्या, मंडप पन्नर पूरा थया; रंग मंडप ने मंडप नाल, सोल सतर सुधा संजाल ॥ ४ ॥ मंडप कह्या बलापा वली, मेघनाद पूरो मन रूली; माली मंरुप जे वीसमे, मंरुप पोल पोलने गमे ॥ ५ ॥ चिदु दिसिना मेल्या जूजुआ, चो मंडप चोरासी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only ይ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७१) दृया; शिखर तणुं मंम्प डे जेह, चिर्बु पासे वली सरिखां तेह ॥६॥ जो नेद चोरासी मांग, तो पंच्यासी पूरा थाय; चो मुख चिहुं चिहुंनी प्रसिक, जेता मुख दुए तेती वृहि ॥ ॥७॥ सांजल मंत्रि वली विचार, नूमि देखी कीजे विस्तार; उपर शिखर शिखर नवि चडे, जो कीजे तो त्रुटो पडे ॥ ॥ नूमि नाग जोई जसवाद, थाप्यो पूरव मुख प्रासाद; सवि सावटु दिया सिणगार, सोवन कलस नस्या जंमार ॥ ए॥ कर सोवन सांकलां उदार, शिलावट मन हरष अपार, लाग्या लाख गमे मजुर, करे काम अति उलट पूर ॥ १० ॥ सात पूरुष तल पाया तणो, थयो अवसर पूरणी तणो; वहेली विमल जणावी वात, नरी सांढ सो श्रावी सात ॥ ११॥ सोनैया झपैया तणा, दयो बदरा पूरणीए घणा; आव्यो विहिषण देखी साढ, स्वामी बदरा अलगा काढ॥ १२ ॥ एणे बदरे पेजें गमगे, मांज्यां घर नवि आवे वगे; सोवन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७) रुप गलावी करी, तेहनी ईट करावो खरी॥१३॥ तेहन चेजुं संपट रहे, ते भगवा किम्हे नवि लहे; सोवन टंक गलावे जाम, विमल कसोटी पुहतो ताम ॥ १४ ॥ सूत्रधार जोए घण कठी, विमल शाह पण गाढो हगी; जे जे बोल कह्या मुखज में, ते मरणांत न मुकुं किमें ॥ १५ ॥ ॥ वस्तु ॥ सत्त समरथ सत्त समरथ, सत्त गढ माहिं सत्त पडा तेण कारणे, सत्त क्षेत्र निज वित्त वावे; सुगुरु बाण सिरे धरे, दान शील तप नाव नावे, रण राउल सूरा सदा; देवी अंबाई प्रमाण, पोरुयाड प्रकट मल; मरे न मुके माण ॥१॥ ॥ चोपाई॥ स्वामी सोवन बदरा जेह, हवां श्रलगां रखावो तेह; अवसर वात कहसि वसी, चेनुं चाले तव मन रुली ॥१॥ नूमि धणी ने वाली नाह, तेणे बंपट बायो वाहा जे जे चेजुंदीसे चढे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७३) ते ते राते पाळु पडे ॥२॥ श्म करतां हया मास, थया शिलावट सवे निरास; श्रावी पुढे विमलड शाह, तेटखे बोदयो बाली नाह ॥३॥ कलकलतो क्रोधे धम धमे, महारं गम न मुकं किम्हें; कहिना जिन कहिना प्रासाद, कुण मंडे मुज सरिसो वाद ॥ ४ ॥ में जित्या सुर किंनर घणा, नाद उतार्या नरवर तणा; विमल वणिक सरिखा शा लोक, महारे मन त्रिवन ते फोक ॥५॥ विमल जणे सुण वाली नाह, खीर खांड मोदक व्यो लाह; आधुं बलि जो श्रापुं धीर, तेटले वोल्या खेतल वीर ॥ ६ ॥ जीव तणी बलि द्यो मंत्रीश, तो हुं वलतो नाणुं रीश; रह्यो मंत्रि दिन गाली सोय, चेजें सदा संचारे होय ॥७॥ पमी रयणी कर खां करी, दीवी बाह रह्यो सत धरी; आठयो वाली वीर विकराल, पायो मंत्री गयो देश फाल ॥७॥ त्यां गिरिवर ते गर्जित करे, थर थर पाणि सालिरि धरे, पुंज गुंड मोटुं सिर धरी. ज्यां करडु नावे केशरी ॥॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) खेतल वीर हतो जे वंक, दी विमल थयो ते रंक; राव करे अंबा कह्वे, विमल न माने जो मुहने ॥ १० ॥ अंबाइ कहे खेतल तुं जाण, एहशुं कोश् न पुढचे प्राण; संतोषी कीधो सांसतो, निवेज देशे मन जावतो ॥ ११ ॥ जो तुं वलतो मागिस जीव, तो नही बुटे करतो रीव; एहनी हाके फाटे आन, एहशुं बल करतां नवि लान ॥ १२ ॥ जो तुं कांई जान करेश, जो तुं एहशु बल मंमेश; ए वणीग नही केहने हाथ, धरी नाक नाथे सनाथ ॥१३॥ फोकट तुंबल घालिम मुंब, तुऊ नाखेसी साही पुंब; निर्दय नर नवि माने आण, ए तहारं विनय वखाण ॥ १४ ॥ तुम्हे म थाशो अति कला, देवरावीश तिलवट बाकला: वडां वेढम अने लापसी, दीधी बलि खेतल गयो इसी ॥ १५ ॥ वाली नाह मनाव्यो जुऊ, तव प्रासाद गजारो हुरी, धन थोडं लागे आपणुं, करो काम सवि सोना तणु ॥ १६ ॥ मोटा संघ पुरुष के कहे, सोवन जिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११५ ) रास ऊघाको रहकल मंदिर किम रहे; हवे श्रावशे पकतो काल, तुफ सरिखा क्यांथा भूपाल ॥ १७ ॥ खाण, नीपार्क तेहने पाषाण; जोतरी संचरे, बलद बेठा कूलिर चरे ॥ १० ॥ कीजे सबलां नांगर दोर, कीजे जण जे जाणे जोर; रासायी ऊंचा चके, पाइण ते कृपा मूल प ॥ १७ ॥ मांड्या मंडप ते थिर थंज, घमी पुतली रुपे रंज घाट पाट तोरण कोरणी, मंग कलश पति धणी ॥ २० ॥ दीपे दहेरी जाक कमाल, छागल चोक रच्यो चोसाल; शेत्रुंज अष्टापद गिरनार, तेह तथा मांड्या अवतार ॥ ॥ ५१ ॥ नेढा वेढा बंधव जोम, तेह तथा सुतने थयुं कोम; दशरथ नाम प्रसिधुं जोय, विमल तणो जत्रीजो सोय ॥ २२ ॥ हस्तोशाला जे आागल खडी, विमल मूर्त्ति त्यां घोमे चमी; जोतां उपजे अधिक रंग, थानक थानक मूरति चंग ॥ २३ ॥ कुसुम कल उतरे अनेक, वारू वामि तथा विवेक, विमल मंत्रि मन उलट घणो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७६) विस्तार करे प्रतिष्टा तणो ॥२४॥ लोक सक थावे अजिराम, धर्मघोष सूरी तेड्या ताम ॥२५ ॥ वस्तु ॥ विमल वसही विमल वसही, विमल प्रासाद; पीतल जार अढार मई, आदिनाथ प्रतिमा प्रतिष्टीय; संवत चौद अट्यासोए, वर प्रतिष्टा शुन लगन कोधी, मंग कलश धजा लद लहे, उडव मेरू समान, मूल नायक थिर थापीआ, जिम उदयाचले जाण ॥ १॥ ॥ चोपाई॥ विमल मनोरथ चड्यो प्रमाण, याचक बोले मंगल गण; संघ लोक पहिराव्युं सह, महीथल उडव कीधो बहु ॥ १॥ मेघ सरिसो मांड्यो वाद, ईनुवन अधिको प्रासाद; जोतां चिंतन महीअल जाय, श्राव्योउलट अंग न माय ॥२॥ अर्बुद शिखर अनोपम कीध, तेकी संघ जला. मण दीध; ग्राम तणा के गरासीआ, पोकथाम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७७ ) पासे वासीया ॥ ३ ॥ श्रादि जनम कल्याणक सुणो, चैत्र अंधारी श्रावम मुणो; तिहां जिनवर पूज्या हता, पूजारा पामे कहता ॥ ४ ॥ आज लगे ते चाले रीत, अमरब कोई न आणे चितः तिरथ वाक्य विमल प्रधान, सहु संतोष्यो मोटे दान ॥ ५ ॥ मुझे मुडे वाध्यो व्याप, चिहुं दिसि अर्बुद चड्यो प्रताप लूणिग वसहीए जूजूआ, ए प्रासाद पढी शव हुआ ॥ ६ ॥ संघलोक वलि परिवार, साथे धर्मघोष गणधार; दरष्यो विमल चंद्रावई धणी, पाठा श्राव्या मंदिर मणी ॥ ७ ॥ मागत लोके माग्यो दूर्ज, करमी कल्प वृक्ष ते हूर्ज करे राज ते लील विलास, चिंतामणि परें पुरे वास ॥ ८ ॥ श्रलस निद्रा लगी करो, कविता बोल कहे ते धरो; विमल श्री कहीये सुप्रजात, ते तणो बोलीश वदात ॥ ९ ॥ नवे खंडनो अवसर दुर्ज, ए प्रस्ताव कही सि जून; किहां वर्णन श्री नारी तपुं. नाम विवेके राख्युं घणुं ॥ १०॥ मेरु तणे मस्तक चूलिका, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७७) सोहे सिरवर जिम वेणिका; लक्ष्मी पूरी जो घर गजा, पूरे प्रासादे हुई धजा ॥१९॥ नवे खंड पूरा प्रमाण, जो सुणीये श्री तणुं वखाण; स्त्रीने सोह चमादी घणी, कहीये कट्य वेल कुल तणी॥१॥ खंड खंड मति ले निर्मली, नणतां गुणतां संपत वली; मुनि लावण्य समयची वाण, एटले नुमो खंग वखाण ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥खए॥ ॥ इति श्री पंमित लावण्यसमय गणि कृते, विमल मंत्री मनोहर प्रगट प्रबंधे, नव रंग नव खंडे, स्वप्नाधिकारे; श्राफ धर्म प्रतिपती प्रासादोपदेसे, अचलेश्वरोत्पत्ती; अंबावी श्राराधन, जरडक मनापने; वाली नाह खेतलवीर मनापने, प्रासाद परिपूर्णने, प्रतिष्टा करणीय करणे, नवमं खंडे संपूर्णम् १ ॥ इति श्री विमल मंत्रि रास संपूर्णम् ॥ एं Paracanaurunaravaanane neeeeeeeeee Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only