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________________ (१७१) दृया; शिखर तणुं मंम्प डे जेह, चिर्बु पासे वली सरिखां तेह ॥६॥ जो नेद चोरासी मांग, तो पंच्यासी पूरा थाय; चो मुख चिहुं चिहुंनी प्रसिक, जेता मुख दुए तेती वृहि ॥ ॥७॥ सांजल मंत्रि वली विचार, नूमि देखी कीजे विस्तार; उपर शिखर शिखर नवि चडे, जो कीजे तो त्रुटो पडे ॥ ॥ नूमि नाग जोई जसवाद, थाप्यो पूरव मुख प्रासाद; सवि सावटु दिया सिणगार, सोवन कलस नस्या जंमार ॥ ए॥ कर सोवन सांकलां उदार, शिलावट मन हरष अपार, लाग्या लाख गमे मजुर, करे काम अति उलट पूर ॥ १० ॥ सात पूरुष तल पाया तणो, थयो अवसर पूरणी तणो; वहेली विमल जणावी वात, नरी सांढ सो श्रावी सात ॥ ११॥ सोनैया झपैया तणा, दयो बदरा पूरणीए घणा; आव्यो विहिषण देखी साढ, स्वामी बदरा अलगा काढ॥ १२ ॥ एणे बदरे पेजें गमगे, मांज्यां घर नवि आवे वगे; सोवन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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