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________________ (३५) पेसे परएयाने कान, हाली कह्यं ब्रह्मारूं मान॥ ॥ ए॥ बोरू घर कुंआरा सात, केदनो तातने केहनी मात; रले खपे तुहिज घर जरे, ते खाई घर गलां करे ॥ १० ॥ आपण बेहुनो केहो वरो, मानो बोल अह्मारो खरो; माय बापथी था जुथा, धन मेलीने जरीये कूया ॥ ११॥ रात दिवस रलस्युं घर नणी, किसि चिंत मावित्रह तणी; राब पीब वलि पीहर तणां, आणी घर नरिसुं हुं घणां ॥ १५ ॥ मोटी कोटी माने मात, मुज पीहरनी मोटी वात; वढूयारूने बोले फस्यो, बापे बोलाव्यो रोसे नस्यो ॥१३॥ कहो काका करगर शी करो, श्युं करशो तेडिने अरो, वेगे वच्छ टाली वांकमो, तुहि तणो के घर सांकमो ॥ १४ ॥ बेटो बोले बांगम बोल, विनय गयो सिरमांहिं निटोल; में नवि चाले घरनो जार, करशुं ब्रह्मे अगलो व्यवहार ॥ १५ ॥ माय ताय तव पड्यां गलाण, पुत्रतणुं ब्रह्म टल्यु पराण; जोज्यो कलयुग करणी शां, माय Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005391
Book TitleVimal Mantri no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages180
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size10 MB
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